📍नई दिल्ली | 5 months ago
Delhi High Court Fines MOD: दिल्ली हाईकोर्ट ने रक्षा मंत्रालय (MoD) और भारतीय नौसेना पर 50,000 रुपये का जुर्माना ठोका है। यह जुर्माना एक ऐसे मामले में लगाया गया है, जहां दोनों संस्थानों ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा पहले से तय कानून के खिलाफ अपील दायर की थी। मामला एक पूर्व नौसेना कमांडर एके श्रीवास्तव से जुड़ा है, जिन्हें पहले ही आर्म्ड फोर्स ट्रिब्यूनल (AFT) ने विकलांगता पेंशन देने का आदेश दिया था।
क्या है मामला?
पूर्व नौसेना अधिकारी एके श्रीवास्तव ने अपनी सेवा के दौरान हुई विकलांगता के लिए पेंशन का दावा किया था। AFT ने सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का हवाला देते हुए उनके पक्ष में निर्णय दिया। सुप्रीम कोर्ट के कानून के अनुसार, यदि सेवा के दौरान कोई स्वास्थ्य समस्या होती है, तो उसे सेवा से संबंधित माना जाएगा, जब तक कि यह साबित न हो जाए कि यह समस्या पहले से मौजूद थी और सेवा में शामिल होने से पहले इसका उल्लेख किया गया हो।
इसके बावजूद, रक्षा मंत्रालय और नौसेना ने इस आदेश को दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दी। हाईकोर्ट ने 12 नवंबर को इस अपील को खारिज कर दिया और इसे बेवजह और समय की बर्बादी करार दिया।
हाईकोर्ट की सख्त टिप्पणी
न्यायमूर्ति नवीन चावला और न्यायमूर्ति शलिंदर कौर की पीठ ने यह अपील खारिज करते हुए कहा कि पहले से तय कानून के खिलाफ अपील दायर करना न केवल सार्वजनिक धन की बर्बादी है, बल्कि न्यायालय का समय भी बरबाद होता है। कोर्ट ने पहले ही अक्टूबर में रक्षा मंत्रालय को चेतावनी दी थी कि अगर ऐसे मामलों में अपील जारी रही तो भारी जुर्माना लगाया जाएगा।
रक्षा मंत्रालय पर पहले भी लग चुका है जुर्माना
यह पहली बार नहीं है जब रक्षा मंत्रालय को अदालत की सख्त टिप्पणियों का सामना करना पड़ा है।
- 2017 में, सुप्रीम कोर्ट ने सैनिकों को विकलांगता पेंशन देने के खिलाफ अपील दायर करने पर MoD पर 1 लाख रुपये का जुर्माना लगाया था।
- 2022 में भी, सुप्रीम कोर्ट ने रक्षा मंत्रालय की लगातार अपील दायर करने की आदत पर नाराजगी जताई थी।
- हाल ही में, केरल और पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने भी MoD और रक्षा सेवाओं की अपीलों को खारिज किया है।
रक्षा मंत्रालय का असंवेदनशील रवैया
यह घटना बताती है कि सरकारी संस्थानों को न केवल पहले से तय कानूनों का सम्मान करना चाहिए, बल्कि अनावश्यक मुकदमों से बचना चाहिए। जब सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही इस तरह के मामलों पर कानून स्पष्ट कर दिया है, तो बार-बार अपील दायर करना न केवल अनैतिक है, बल्कि यह उन सैनिकों के लिए भी असंवेदनशील है, जिन्होंने देश की सेवा में अपना स्वास्थ्य गंवाया।
सैनिकों के अधिकारों की सुरक्षा
हाईकोर्ट के इस फैसले ने एक बार फिर यह स्पष्ट किया है कि सैनिकों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए न्यायपालिका हमेशा तत्पर है। विकलांगता पेंशन जैसे मामलों में, सैनिकों को सेवा के दौरान हुई स्वास्थ्य समस्याओं के लिए लाभ दिया जाना चाहिए।
न्यायपालिका की कड़ी चेतावनी
दिल्ली हाईकोर्ट का यह फैसला सरकारी संस्थानों को अनावश्यक मुकदमों से बचने और पहले से तय कानूनों का सम्मान करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण संदेश है। अदालत ने यह भी साफ किया कि इस तरह की बेवजह अपीलों पर भविष्य में और भी सख्त कार्रवाई की जाएगी।
रक्षा समाचार की राय
रक्षा मंत्रालय और अन्य सरकारी संस्थानों को अब यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वे कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग न करें। समय और संसाधनों का सही उपयोग करते हुए, उन्हें देश की सेवा में लगे सैनिकों और उनके अधिकारों का सम्मान करना चाहिए।
यह घटना हमें यह भी सिखाती है कि न्यायपालिका का उद्देश्य सिर्फ कानून का पालन करवाना नहीं है, बल्कि लोगों के अधिकारों की रक्षा करना और सरकारी संस्थानों को जवाबदेह बनाना भी है।