📍नई दिल्ली | 4 months ago
Sukhoi-30: भारत के स्वदेशी हल्के फाइटर जेट तेजस के इंजन की डिलीवरी में हो रही देरी से पहले ही भारतीय एयरफोर्स फाइटर स्क्वाड्रन की कमी से जूझ रही है। वहीं अब सुखोई-30 को लेकर भी भारतीय वायुसेना को बड़ा झटका लगा है। सूत्रों के मुताबिक सरकारी विमान निर्माता कंपनी हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) अब भारतीय वायुसेना (IAF) के लिए नए सुखोई-30 विमानों की डिलीवरी अप्रैल 2027 में शुरू करेगी। रक्षा मंत्रालय ने हाल ही में 12 सुखोई-30 विमानों के लिए HAL के साथ 13,500 करोड़ रुपये के अनुबंध पर दस्तखत किए थे। लेकिन डिलीवरी की समयसीमा और देरी पर अब सवाल उठ रहे हैं।
वहीं, इन विमानों की डिलीवरी में होने वाली देरी ने सरकार की आत्मनिर्भर भारत योजना और रक्षा उत्पादन में स्वदेशीकरण की दिशा में उसके प्रयासों पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
Sukhoi-30: क्यों हो रही है देरी?
सरकार के आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत इस कॉन्ट्रैक्ट को “देश में रक्षा उत्पादन को बढ़ावा देने वाला” बताया गया है। लेकिन असलियत में, HAL के नासिक स्थित उत्पादन केंद्र को फिर से एक्टिव करने और उत्पादन प्रक्रिया शुरू करने में लंबा वक्त लगने वाला है। सूत्रों के अनुसार, पहला सुखोई विमान 2027 में रोल आउट होगा, जबकि आखिरी विमान 2029 तक तैयार होगा। HAL के एक अधिकारी ने बताया, “तैयारी अब शुरू हो रही है। अधिकांश स्ट्रक्चरल हिस्सा और कंपोनेंट्स स्थानीय विक्रेताओं द्वारा निर्मित और सप्लाई किए जाएंगे। जबकि कुछ सामान रूस से आयात किया जाएगा।” जबकि ओडिशा के कोरापुट में AL-31FP इंजनों का निर्माण किया जाएगा, लेकिन इसमें भी समय लगेगा। बता दें कि HAL ने नासिक स्थित अपने सुखोई उत्पादन लाइन को दोबारा शुरू करने का निर्णय लिया है। यह वही लाइन है जहां पहले भी MIG और सुखोई जैसे लड़ाकू विमान बनाए गए थे।
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Sukhoi-30 की देरी से होगी ऑपरेशनल क्षमता प्रभावित
IAF पहले ही 260 सुखोई-30 विमानों का बेड़ा संचालित करता है। जिनमें से 50 रूस से आए थे और बाकी HAL द्वारा भारत में बनाए गए थे। ये 12 अतिरिक्त विमान उन विमानों की भरपाई के लिए हैं, जो दुर्घटनाओं में खो गए। लेकिन देरी के कारण वायुसेना की ऑपरेशनल क्षमताओं पर असर पड़ सकता है।
IAF के लिए सुखोई-30 विमान का महत्व किसी से छिपा नहीं है। लेकिन 2027 तक पहले विमान की डिलीवरी और 2029 तक अंतिम विमान के तैयार होने का मतलब है कि वायुसेना को मौजूदा संसाधनों के साथ काम करना होगा।
स्वदेशीकरण पर बड़े दावे, लेकिन हकीकत क्या है?
HAL ने दावा किया है कि सुखोई-30 विमानों में 62.6 फीसदी स्वदेशी सामग्री होगी। लेकिन महत्वपूर्ण हिस्से और सामग्री अभी भी रूस से आयात किए जाएंगे। इससे पहले सितंबर 2024 में, रक्षा मंत्रालय ने HAL के साथ 26,000 करोड़ का कॉन्ट्रैक्ट साइन किया था, जिसके तहत 240 सुखोई-30 विमानों के लिए इंजन तैयार किए जाएंगे। इन इंजनों का उत्पादन उड़ीसा के कोरापुट संयंत्र में किया जाएगा। लेकिन यहां भी, कच्चे माल का आयात रूस से होगा।
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बता दें कि HAL भारतीय वायुसेना के सुखोई बेड़े को अपग्रेड करने की योजना बना रहा है, जिसमें स्वदेशी “उत्तम रडार” और अन्य आधुनिक उपकरण लगाए जाएंगे। इस पर लगभग 65,000 करोड़ रुपये का खर्च अनुमानित है।
सरकार की योजनाओं पर सवाल
विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार के आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत रक्षा उत्पादन के दावों और वास्तविकता में बड़ा अंतर है। HAL को सुखोई-30 विमानों का उत्पादन शुरू करने में चार साल का समय लग रहा है, जो कि सरकार की बातों के विपरीत है। विशेषज्ञ सवाल उठ रहे हैं कि जब भारत “मेक इन इंडिया” पर जोर दे रहा है, तो जरूरी कंपोनेंट्स और कच्चे माल के लिए अब भी रूस पर निर्भर क्यों है।
रिपोर्ट के अनुसार, अर्मेनिया जैसे देशों ने भारत से सुखोई-30 विमानों को अपग्रेड करने में मदद मांगी है। लेकिन अगर HAL को अपने उत्पादन में ही चार साल लग रहे हैं, तो भारत की अंतरराष्ट्रीय सहयोग क्षमताओं पर भी सवाल खड़े होते हैं।
विशेषज्ञों ने इस देरी को लेकर सरकार पर निशाना साधा है। उनका कहना है, “जब सरकार आत्मनिर्भर भारत की बात करती है, तो HAL जैसे संस्थानों को समय पर डिलीवरी और उत्पादन में सक्षम बनाना चाहिए। लेकिन वास्तविकता यह है कि हम अभी भी रूस और अन्य देशों पर निर्भर हैं। यह किस प्रकार की आत्मनिर्भरता है?”
उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि IAF की जरूरतों को पूरा करने में देरी से देश की सुरक्षा पर क्या असर पड़ेगा।
क्या वायुसेना की जरूरतों को पूरा कर पाएगा HAL?
IAF के 12 नए सुखोई-30 विमानों का अनुबंध उन विमानों की भरपाई के लिए है जो हादसों का शिकार हुए हैं। लेकिन यह केवल शुरुआत है। वायुसेना को वर्तमान और भविष्य की जरूरतों को पूरा करने के लिए बड़े पैमाने पर उत्पादन की आवश्यकता है। वहीं 2027 से डिलीवरी शुरू होने से वायुसेना की ऑपरेशनल क्षमताओं पर सीधा असर पड़ेगा। वइसके अलावा पुराने सुखोई विमानों को अपग्रेड करने का काम भी अभी शुरुआती चरण में है, जिसमें कई साल लग सकते हैं।
क्या हैं विकल्प?
रक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि भारत को HAL जैसे संस्थानों को अधिक पारदर्शिता और जवाबदेही के साथ काम करने की आवश्यकता है। निजी कंपनियों को बड़े पैमाने पर रक्षा उत्पादन में शामिल करना एक संभावित समाधान हो सकता है। साथ ही, तकनीकी हस्तांतरण और विदेशी सहयोग के माध्यम से उत्पादन क्षमता बढ़ाई जा सकती है।