📍नई दिल्ली | 4 months ago
Sheikh Hasina Extradition: बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने भारत को एक डिप्लोमैटिक नोट भेजकर पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को वापस भेजने का अनुरोध किया है। 77 वर्षीय अवामी लीग की नेता शेख हसीना, जो अपने 16 साल लंबे शासन के बाद बड़े विरोध प्रदर्शनों के चलते 5 अगस्त को भारत आई थीं, लेकिन अब प्रत्यर्पण की मांग ने भारत और बांग्लादेश के बीच एक नया कूटनीतिक और कानूनी मोर्चा खोल दिया है। अब बड़ा सवाल यह है कि क्या भारत शेख हसीना को बांग्लादेश वापस भेजने के लिए प्रत्यार्पण प्रक्रिया शुरू करेगा या पुरानी दोस्त के लिए बांग्लादेश की मांग को नजरअंदाज करेगा?
Sheikh Hasina Extradition: शेख हसीना के खिलाफ आरोप और अंतर्राष्ट्रीय ट्रिब्यूनल
ढाका स्थित अंतरराष्ट्रीय अपराध ट्रिब्यूनल (ICT) ने शेख हसीना और उनके मंत्रियों, सलाहकारों, पूर्व सैन्य और सिविल अधिकारियों के खिलाफ “मानवता के खिलाफ अपराध” और “नरसंहार” के आरोपों में गिरफ्तारी वारंट जारी किया है।
विदेश मामलों के सलाहकार तौहीद हुसैन ने कहा, “हमने भारत को नोट वर्बेल (राजनयिक संदेश) भेजकर अनुरोध किया है कि शेख हसीना को वापस भेजा जाए ताकि उनके खिलाफ न्यायिक प्रक्रिया शुरू हो सके।”
Sheikh Hasina: शेख हसीना को वापस भेजें ढाका, बांग्लादेश ने की भारत से मांग
इस बीच, बांग्लादेश के गृह सलाहकार जहांगिर आलम ने बताया कि उनके कार्यालय ने भारतीय विदेश मंत्रालय को एक पत्र भेजा है, जिसमें शेख हसीना की प्रत्यर्पण प्रक्रिया को तेज करने की मांग की गई है।
भारत-बांग्लादेश प्रत्यर्पण संधि, 2013 और भारत का प्रत्यर्पण अधिनियम, 1962
शेख हसीना के प्रत्यर्पण का मामला दो प्रमुख कानूनों पर आधारित है:
- भारत-बांग्लादेश प्रत्यर्पण संधि, 2013: इस संधि के अनुच्छेद 1 और 2 के अनुसार, प्रत्यर्पण का अनुरोध तभी किया जा सकता है जब संबंधित व्यक्ति के खिलाफ औपचारिक आरोप लगाए गए हों। शेख हसीना के मामले में, अंतरराष्ट्रीय अपराध ट्रिब्यूनल ने उनके खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया है।
- भारत का प्रत्यर्पण अधिनियम, 1962: इस अधिनियम के सेक्शन 31 में स्पष्ट किया गया है कि “किसी भी राजनीतिक कारण से अपराध के आरोपी व्यक्ति को प्रत्यर्पित नहीं किया जा सकता।” इसी के तहत, भारत यह तर्क दे सकता है कि शेख हसीना पर लगाए गए आरोप राजनीतिक प्रकृति के हैं।
Sheikh Hasina Extradition: क्या हैं भारत के पास विकल्प
भारत-बांग्लादेश संधि और भारत के प्रत्यर्पण अधिनियम के तहत, भारत को शेख हसीना को प्रत्यर्पित करने का कोई कानूनी दायित्व नहीं है, खासकर जब आरोप राजनीतिक प्रकृति के माने जा सकते हैं।
संधि के अनुच्छेद 6 (1) के तहत, यदि अपराध राजनीतिक चरित्र का हो, तो भारत प्रत्यर्पण से इनकार कर सकता है। इसके अतिरिक्त, अनुच्छेद 8 (3) के तहत यह साबित करना आवश्यक है कि आरोप “न्याय के हित में” और “सद्भावना” के तहत लगाए गए हैं।
शेख हसीना ने युनुस को बताया तानाशाह
शेख हसीना ने अंतरिम सरकार और उनके प्रमुख, नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद युनुस पर गंभीर आरोप लगाए हैं। शेख हसीना ने बांग्लादेश की अंतरिम सरकार पर “तानाशाही” का आरोप लगाया है। उन्होंने एक वर्चुअल संबोधन में कहा कि युनुस उनके शासन को गिराने के पीछे “मुख्य साजिशकर्ता” हैं और “बांग्लादेश अब एक तानाशाही शासन के कब्जे में है, जहाँ लोगों के लोकतांत्रिक अधिकार समाप्त कर दिए गए हैं।”
उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि अल्पसंख्यकों और धार्मिक स्थलों पर हमले बढ़ गए हैं, जिससे बांग्लादेश का लोकतांत्रिक ढांचा खतरे में है। इन परिस्थितियों में, भारत के लिए यह तय करना कठिन हो जाता है कि वह शेख हसीना को प्रत्यर्पित करे या नहीं।
हसीना ने आरोप लगाया कि उनके शासन के दौरान गरीबी उन्मूलन और आधारभूत ढांचे के विकास के क्षेत्र में हुई प्रगति को मुहम्मद यूनुस की अगुवाई वाली सरकार ने नुकसान पहुँचाया है।
भारत के लिए कूटनीतिक चुनौती
भारत और बांग्लादेश के संबंध ऐतिहासिक हैं। भारत और बांग्लादेश के बीच लंबे समय से घनिष्ठ संबंध रहे हैं। बांग्लादेश के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भारत ने अहम भूमिका निभाई थी। लेकिन मौजूदा हालात से दोनों देशों के संबंधों में तनाव बढ़ सकता है। हाल ही में, भारतीय विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने ढाका का दौरा किया और अंतरिम सरकार के साथ इस मुद्दे पर चर्चा की। रिपोर्ट के अनुसार, भारत ने बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर हो रहे हमलों पर अपनी चिंता व्यक्त की।
मिसरी ने कहा, “हमने इस संबंध में ईमानदारी और रचनात्मकता के साथ चर्चा की।” हालांकि, इस बैठक में शेख हसीना के भारत में ठहरने का मुद्दा भी उठा, जिससे मामला और जटिल हो गया।
प्रत्यर्पण का संभावित परिणाम
विशेषज्ञों का मानना है कि कानूनी दृष्टिकोण से देखा दजाए तो भारत के पास शेख हसीना को प्रत्यर्पित करने के लिए कोई कानूनी बाध्यता नहीं है। लेकिन राजनीतिक दृष्टिकोण से देखा जााए तो यह मामला भारत और बांग्लादेश के संबंधों पर दीर्घकालिक प्रभाव डाल सकता है। वहीं, अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य से देखा जाए तो, भारत को यह सुनिश्चित करना होगा कि उसके फैसले से उसकी निष्पक्षता और पड़ोसी देशों के साथ उसके संबंध प्रभावित न हों।
पूर्व विदेश सचिव कंवल सिब्बल ने कहा,
“बांग्लादेश जानता है कि भारत ऐसा नहीं करेगा। यह एक राजनीतिक चाल है। राजनीतिक प्रत्यर्पण भारत-बांग्लादेश प्रत्यर्पण संधि के दायरे में नहीं आता। बांग्लादेश की अंतरिम सरकार इस अव्यवस्थित कदम से भारत को राजनीतिक रूप से चुनौती देने पर तुली हुई लगती है। इससे दोनों देशों के संबंधों में लगातार समस्याएं पैदा होंगी। यूनुस सरकार को उन ताकतों से समर्थन मिल रहा है जिन्होंने बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन का समर्थन किया था, और अब वह भारत का सामना करने के लिए प्रोत्साहित महसूस कर रही है। यह घटना विदेश सचिव मिसरी की सौहार्दपूर्ण बांग्लादेश यात्रा के बाद हुई है, जो दिखाती है कि वहां के इस्लामवादी भारत के साथ संबंधों को सुधारने के लिए तैयार नहीं हैं और संबंधों को पीछे ले जाने पर आमादा हैं।”
विदेश मामलों के जानकार ब्रह्मा चेलानी ने बांग्लादेश का तमाशा करार दिया है। उन्होंने मौजूदा युनुस सरकार के लिए कहा,
“एक ऐसा शासन, जिसे न तो संवैधानिक वैधता प्राप्त है और न ही जनादेश, जो भीड़ हिंसा के बल पर सत्ता में आई है, ने भारत को एक नोट वर्बेल भेजकर निष्कासित प्रधानमंत्री की वापसी का अनुरोध किया है, जिन्हें सेना ने उनके इस्तीफा देने से पहले ही भारत भेज दिया।”
क्या कहता है भारत का प्रत्यर्पण अधिनियम 1962?
भारत का प्रत्यर्पण अधिनियम, 1962, प्रत्यर्पण के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश प्रदान करता है। इसमें कहा गया है कि किसी भी व्यक्ति को प्रत्यर्पित नहीं किया जा सकता यदि:
- अपराध राजनीतिक प्रकृति का हो।
- आरोप न्याय और सद्भावना के हित में न लगाए गए हों।
क्या होगा भारत का फैसला?
शेख हसीना का प्रत्यर्पण न केवल एक कानूनी मामला है, बल्कि यह भारत के लिए कूटनीतिक संतुलन की परीक्षा भी है।कानूनी दृष्टिकोण से भारत इस मामले में प्रत्यर्पण से इनकार कर सकता है। वहीं, राजनीतिक दृष्टिकोण से भारत को यह सुनिश्चित करना होगा कि उसके फैसले से उसके पड़ोसी देशों के साथ उसके संबंध प्रभावित न हों। अब देखने वाली बात होगी कि क्या भारत अपनी पुरानी दोस्त शेख हसीना को वापस भेजेगा या उनके लिए कूटनीतिक समर्थन जारी रखेगा? यह देखना दिलचस्प होगा कि भारत इस संवेदनशील मुद्दे को कैसे हल करता है।