📍नई दिल्ली | 3 months ago
Explainer ALH Dhurv Crash: गुजरात के पोरबंदर में भारतीय तटरक्षक बल का एडवांस्ड लाइट हेलीकॉप्टर (ALH) ध्रुव क्रैश होने से दो पायलट और एक अन्य क्रू मेंबर की मौत हो गई। यह दुर्घटना उस वक्त हुई जब नियमित ट्रेनिंग के दौरान हेलीकॉप्टर में तकनीकी खराबी आ गई। यह पहली बार नहीं है जब HAL (हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड) का बनाया यह हेलीकॉप्टर हादसे का शिकार हुआ है।
पिछले कुछ वर्षों में ALH ध्रुव और इसके दूसरे वर्जन के कई हादसे हुए हैं। इन दुर्घटनाओं ने एएलएच के सुरक्षा मानकों और डिजाइन खामियों पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। ALH ध्रुव का इस्तेमाल भारतीय सशस्त्र बल खोज और बचाव अभियान, रेकी, ऊंचाई वाले क्षेत्रों में सामान और हथियार पहुंचाने जैसे कार्यों के लिए इस्तेमाल करते हैं।
Explainer ALH Dhurv Crash: तीन दशक में 200 से अधिक हेलिकॉप्टर हादसे
केंद्रीय रक्षा मंत्रालय (MoD) द्वारा संसद को दिए गए आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक पिछले 20 सालों में, 22 ALH दुर्घटनाग्रस्त हो चुके हैं और कई को आपातकालीन लैंडिंग करनी पड़ी। MoD के आंकड़ों के अनुसार, 2017 और 2021 के बीच ALH से जुड़ी छह दुर्घटनाओं की सूचना दी गई। कुल मिलाकर, भारतीय सेना को इन हेलीकॉप्टर हादसों से बड़ा नुकसान हुआ है। पिछले तीन दशकों में, 200 से अधिक हेलिकॉप्टर दुर्घटनाओं में 297 लोगों की जान चली गई है। पिछले पांच वर्षों में, भारतीय सेना ने देश के पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत सहित 40 कर्मियों को हेलिकॉप्टर दुर्घटनाओं में खो दिया है।
2023 में पूरे बेड़े को कर दिया था ग्राउंड
गुजरात के पोरबंदर में हाल ही में हुए हादसे में भारतीय तटरक्षक बल का एक ALH ध्रुव हेलीकॉप्टर दुर्घटनाग्रस्त हो गया, जिसमें दो पायलट और एक क्रू मेंबर की मौत हो गई। शुरुआती रिपोर्टों के अनुसार, उड़ान के दौरान तकनीकी खराबी के कारण यह हादसा हुआ। हालांकि यह पहली बार नहीं है जब ALH ध्रुव किसी दुर्घटना का शिकार हुआ है। 2022 में अरुणाचल प्रदेश में एक एएलएच का आर्मर्ड वर्जन ‘रूद्र’ दुर्घटनाग्रस्त हुआ था, जिसमें पांच जवान मारे गए थे। इसके बाद 2023 में तीन अलग-अलग हादसे हुए, जिनमें नौसेना, सेना और तटरक्षक बल के ALH शामिल थे। इन घटनाओं के बाद 250 से अधिक ALH ध्रुव और इसके आर्मर्ड वर्जन ALH रुद्र के पूरे बेड़े को विस्तृत जांच के लिए अस्थाई तौर पर ग्राउंडेड कर दिया गया।
ALH ध्रुव: क्या है इसकी खासियत?
ALH ध्रुव का निर्माण हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) ने किया है। ध्रुव एक मल्टीरोल हेलीकॉप्टर है, जिसे भारतीय सशस्त्र बलों की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए डिजाइन किया गया है। इसका उपयोग सैनिकों और रसद की आपूर्ति, चिकित्सा निकासी, और राहत कार्यों के लिए किया जाता है। पांच टन वजनी डबल इंजन मल्टीरोल हेलीकॉप्टर का कार्यक्रम भारतीय वायुसेना द्वारा 1979 में शुरू किया गया था। एचएएल को 1984 में इसे डेवलप करने के लिए कहा गया था, और जर्मनी के मेसर्सचिट-बी-ल्को-ब्लोहम को एडवइजर बनाया गयाा। लेकिन यह व्यवस्था 1995 तक समाप्त हो गई। पहले प्रोटोटाइप ने 1992 में उड़ान भरी। हालांकि, इस परियोजना में कई देरी हुई। अंत में, लगभग 55 फीसदी स्वदेशी सामग्री के साथ, एएलएच ध्रुव को 2002 में सशस्त्र बलों में शामिल किया गया; इसके सशस्त्र संस्करण एमके-IV रुद्र को 2013 में शामिल किया गया था। इसके चार वैरिएंट हैं। जिनमें Mk-I और Mk-II पारंपरिक कॉकपिट के साथ आते हैं। जबकि Mk-III और Mk-IV इसका मिलिट्री वर्जन रूद्र है, जो आधुनिक ग्लास कॉकपिट और विपन सिस्टम के साथ आता है।
Indian Army: भारतीय सेना ने सिविलयन हेलीकॉप्टर्स का इस्तेमाल किया शुरू; रसद, सैनिकों की आवाजाही और इमरजेंसी सेवाओं के लिए कर रहे यूज
हालांकि, इनकी खूबियों के बावजूद, ALH ध्रुव बार-बार हादसों का शिकार हो रहा है, जिससे इसकी विश्वसनीयता पर सवाल उठ रहे हैं।
Explainer ALH Dhurv Crash: हादसों की मुख्य वजहें
हाल ही में पोरबंदर में हुए हेलीकॉप्टर क्रेश में जो शुरुआती वजह सामने आई है उसमें तकनीकी गड़बड़ी को बताया गया है। इससे पहले भी हुए हादसों में ध्रुव हेलीकॉप्टर के डिजाइन और निर्माण में कई तकनीकी खामियां सामने आई हैं। इनमें सबसे प्रमुख है ‘बूस्टर कंट्रोल रॉड’ और ‘कलेक्टिव’ जैसे महत्वपूर्ण कंपोनेंट्स में खामियां पाई गई हैं। ये हिस्से हेलीकॉप्टर की स्थिरता को बनाए रखने में अहम भूमिका निभाते हैं। यदि इनमें कोई समस्या हो, तो उड़ान के दौरान हेलीकॉप्टर अस्थिर हो सकता है।
इसके अलावा, हालिया हादसों में ‘टेल रोटर वाइब्रेशन वॉर्निंग सिस्टम’ के सही तरीके से काम न करने की शिकायतें भी सामने आई हैं। यह सिस्टम हेलीकॉप्टर के पायलट को किसी भी संभावित समस्या के संकेत देता है। लेकिन, इसकी विफलता के कारण कई बार पायलट समय रहते आवश्यक कदम नहीं उठा पाते।
Sukhoi-30: अब सुखोई-30 भी चला LCA तेजस की राह पर! सुस्त HAL ने 12 SU-30 की डिलीवरी को भी लटकाया! आत्मनिर्भरता पर उठे सवाल
4 मई को जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ में हुए एएलएच. हादसे में टेल रोटर वाइब्रेशन वॉर्निंग सिस्टम ने पायलट को सचेत नहीं किया था। नौसेना का एएलएच., जो 8 मार्च को अरब सागर में गिरा था, माना जाता है कि बूस्टर कंट्रोल रॉड में तकनीकी खराबी के कारण ऐसा हुआ था।
रखरखाव की कमी
हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) द्वारा निर्मित ध्रुव हेलीकॉप्टरों के रखरखाव को लेकर भी गंभीर चिंताएं हैं। रिपोर्ट्स के अनुसार, पुराने पुर्जों का उपयोग और खराब गुणवत्ता वाले स्पेयर पार्ट्स दुर्घटनाओं का मुख्य कारण बनते हैं।
सेना और अन्य बलों ने HAL पर बार-बार हेलीकॉप्टरों के नियमित रखरखाव में कोताही बरतने का आरोप लगाया है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर रखरखाव के मानकों का सही तरीके से पालन किया जाए, तो इन हादसों को रोका जा सकता है।
कठिन भौगोलिक परिस्थितियां
भारत के ऊंचाई वाले और दुर्गम क्षेत्रों में ध्रुव हेलीकॉप्टर का व्यापक उपयोग होता है। विशेष रूप से, सियाचिन ग्लेशियर और लद्दाख जैसे इलाकों में, जहां अत्यधिक ठंड और कम ऑक्सीजन के कारण मशीनों पर अधिक दबाव पड़ता है।
इन कठिन परिस्थितियों में हेलीकॉप्टरों को अधिक दक्षता और स्थिरता की जरूरत होती है। हालांकि, ध्रुव जैसी मशीनें, जो सामान्य परिस्थितियों में बेहतरीन प्रदर्शन करती हैं, इन चुनौतीपूर्ण इलाकों में अक्सर दबाव का सामना नहीं कर पातीं।
पायलट प्रशिक्षण की कमी
ALH जैसे एडवांस हेलीकॉप्टर को ऑपरेट करने के लिए विशेष और व्यापक प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है। लेकिन, कई मामलों में पायलटों को पर्याप्त प्रशिक्षण नहीं मिलता। इससे आपात स्थितियों में सही निर्णय लेने की उनकी क्षमता प्रभावित होती है।
मैदान और पहाड़ के लिए बनाएं अलग-अलग वैरिएंट
विशेषज्ञों का मानना है कि अगर पायलटों को उचित प्रशिक्षण और अनुभव प्रदान किया जाए, तो दुर्घटनाओं की संभावना को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
एयर वाइस मार्शल मनमोहन बहादुर (सेवानिवृत्त) कहते हैं, “हम अपने लोगों को खो रहे हैं। अब समय आ गया है कि हम जांच करें कि भारत के सबसे उन्नत हेलीकॉप्टर माने जाने वाले एएलएच क्यों दुर्घटनाग्रस्त हो रहे हैं।”
वहीं, आर्मी एविएशन के पूर्व अतिरिक्त महानिदेशक और अनुभवी हेलीकॉप्टर पायलट मेजर जनरल संदीपन हांडा (सेवानिवृत्त) का कहना है, “ऐसे हेलीकॉप्टर को डिजाइन करना बेहद चुनौतीपूर्ण है, जो एक तरफ -40 डिग्री सेल्सियस की कड़क ठंड में ऊंचाई वाले इलाकों में काम कर सके और दूसरी तरफ +50 डिग्री सेल्सियस की तपती गर्मी वाले रेगिस्तानी इलाकों में भी। हर तरह की परिस्थितियों के लिए एक ही प्रकार का हेलीकॉप्टर बनाने की बजाय, दो अलग-अलग वैरिएंट पर विचार करना अधिक समझदारी होगी, एक ऊंचाई वाले इलाकों के लिए और दूसरा मैदानी इलाकों के लिए।”
लेह स्थित 14 कोर के रसद विभाग के प्रमुख रहे मेजर जनरल ए.पी. सिंह (सेवानिवृत्त) का कहना है, “सेना को चीता और चेतक जैसे हल्के हेलीकॉप्टरों के एक आधुनिक बेड़े की जरूरत है, लेकिन उनकी रफ्तार में सुधार होना चाहिए।” हालांकि, चीता हेलीकॉप्टर बहुत अधिक ऊंचाई पर केवल 20 किलोग्राम का पेलोड ले जा सकता है। इसका मतलब है कि सेना को सिर्फ 20 किलोग्राम सामान ले जाने के लिए प्रति उड़ान 60,000 रुपये का खर्च करना पड़ता है।
मेजर जनरल सिंह आगे कहते हैं, “हमारे अधिकांश हेलीपैड छोटे हैं, जो 5 टन से अधिक वजन वाले बड़े हेलीकॉप्टरों को नहीं संभाल सकते। ऐसे में हमें ऐसे हेलीकॉप्टर की जरूरत है, जो छोटे हेलीपैड पर उतरने में सक्षम हो और साथ ही ज्यादा पेलोड ले जा सके।”
ALH के निर्यात पर पड़ सकता है असर
हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) ने ALH को भारतीय सशस्त्र बलों की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए डिजाइन किया था। यह हेलीकॉप्टर ‘मेक इन इंडिया’ अभियान का एक प्रमुख उदाहरण है। HAL का दावा है कि हर दुर्घटना के बाद व्यापक जांच और सुधार किए जाते हैं।
भारत ALH ध्रुव का निर्यात बढ़ाने की योजना बना रहा है। फिलीपींस जैसे देशों के साथ बातचीत चल रही है, लेकिन इक्वाडोर का अनुभव इस परियोजना के लिए एक सबक है। इक्वाडोर ने 2009-2012 के बीच सात ALH खरीदे थे, लेकिन चार दुर्घटनाओं के बाद उसने 2015 में कॉन्ट्रैक्ट खत्म कर दिया। अगर भारत को इस हेलीकॉप्टर को अंतरराष्ट्रीय बाजार में सफल बनाना है, तो सुरक्षा और गुणवत्ता में सुधार करना बेहद जरूरी है।