📍नई दिल्ली | 4 months ago
Indian Navy Warships: भारतीय नौसेना के लिए नए साल की शुरुआत बड़ी उपलब्धियों के साथ होने जा रहीहै। हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) में चीन की बढ़ती गतिविधियों और इसके प्रभाव को संतुलित करने के लिए जनवरी में दो स्वदेशी फ्रंटलाइनर युद्धपोत और एक डीजल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बी भारतीय नौसेना में कमीशन के लिए तैयार है। इसके अलावा, रूस निर्मित फ्रिगेट INS तुशील भी भारत पहुंचने की तैयारी में है।
Indian Navy Warships: स्वदेशी युद्धपोत ‘सूरत’ और ‘नीलगिरी’
नए कमीशन किए जाने वाले युद्धपोतों में सबसे बड़ा होगा 7,400 टन वजन वाला गाइडेड-मिसाइल डिस्ट्रॉयर ‘सूरत’। इसके बाद 6,670 टन वजन वाला स्टील्थ फ्रिगेट ‘नीलगिरी’ और 1,600 टन वजनी पनडुब्बी ‘वाग्शीर’। ये सभी एडवांस सेंसर और हथियारों से लैस हैं, जो इन्हें बेहद घातक बनाते हैं। हाल ही में मुंबई स्थित मझगांव डॉक (MDL) ने सूरत और नीलगिरी को नौसेना को सौंप दिया है।
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सूरत: पहला AI-एनेबल्ड युद्धपोत
‘सूरत’ भारतीय नौसेना का पहला ऐसा युद्धपोत है जो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) से लैस है। इस युद्धपोत के आने से नौसेना की ऑपरेशनल कैपेबिलिटी में कई गुना इजाफा होगा। इसमें 72% स्वदेशी सामग्री का उपयोग किया गया है। इसकी लंबाई 164 मीटर है और यह 4,000 नॉटिकल मील की दूरी तक सफर कर सकता है। ‘सूरत’ को ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल, बराक-8 मध्यम दूरी की सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइलें, 76mm सुपर रैपिड गन और पनडुब्बी रोधी हथियार जैसे रॉकेट और टॉरपीडो से लैस किया गया है।
नीलगिरी: मल्टी-रोल फ्रिगेट
‘नीलगिरी’ सात मल्टी-रोल फ्रिगेट्स में से पहला है, जो प्रोजेक्ट-17ए के तहत निर्मित हो रहा है। इनमें से चार को मुंबई के मझगांव डॉक (MDL) और तीन को कोलकाता के गार्डन रीच शिपबिल्डर्स एंड इंजीनियर्स (GRSE) में बनाया जा रहा है। लगभग 45,000 करोड़ रुपये की लागत से निर्मित इस फ्रिगेट को इस तरह से डिज़ाइन किया गया है कि दुश्मनों के लिए खोज पाना बेहद कठिन होगा। सभी मल्टी-रोल सात फ्रिगेट्स को 2026 के अंत तक तैयार कर दिया जाएगा।
Indian Navy Warships: पनडुब्बी ‘वाग्शीर’: स्कॉर्पीन श्रेणी की अंतिम पनडुब्बी
‘वाग्शीर’ फ्रांसीसी मूल की स्कॉर्पीन या कलवरी-श्रेणी की छठवीं और अंतिम पनडुब्बी है, जिसे मझगांव डॉक पर 23,000 करोड़ रुपये के प्रोजेक्ट-75 के तहत निर्मित किया गया है। भारत और फ्रांस वर्तमान में तीन और स्कॉर्पीन पनडुब्बियों के लिए समझौता वार्ता कर रहे हैं, जिनमें से पहली पनडुब्बी छह साल में तैयार होगी। पहली पनडुब्बी छह वर्षों में तैयार होगी, और उसके बाद हर साल एक नई पनडुब्बी शामिल की जाएगी।
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INS तुशील: रूस निर्मित फ्रिगेट का आगमन
रूसी निर्मित 3,900 टन वजनी फ्रिगेट INS तुशील बाल्टिक सागर, उत्तरी सागर, अटलांटिक महासागर और हिंद महासागर से होकर भारत आ रही है। इसके बाद मार्च-अप्रैल 2025 में रूस से एक और फ्रिगेट ‘तामल’ की डिलीवरी होगी। इसके बाद मार्च-अप्रैल 2025 में एक और रूसी फ्रिगेट ‘तामल’ की डिलीवरी की जाएगी।
भारतीय नौसेना वर्तमान में 251 विमानों और हेलीकॉप्टरों के साथ 130 से अधिक युद्धपोतों का संचालन कर रही है। इसके साथ ही, भारतीय शिपयार्ड में 60 युद्धपोत और जहाज निर्माणाधीन हैं। भविष्य के लिए 31 और युद्धपोतों का अप्रूवल हो चुका है, जिसमें सात नई पीढ़ी के फ्रिगेट, आठ कॉर्वेट और छह स्टील्थ डीजल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बियां शामिल हैं।
हालांकि, 2030 तक भारतीय नौसेना के युद्धपोतों की संख्या केवल 155-160 तक पहुंच पाएगी। इसकी वजह भारतीय शिपयार्ड में निर्माण की धीमी गति और पुराने जहाजों का चरणबद्ध तरीके से हटना है।
चीन से मुकाबला: एक बड़ी चुनौती
चीन अपनी नौसैनिक ताकत को तेजी से बढ़ा रहा है और हिंद महासागर क्षेत्र में अपनी गतिविधियों को जारी रखे हुए है। चीन के पास वर्तमान में 370 से अधिक युद्धपोत और पनडुब्बियां हैं, जिनमें से 140 प्रमुख सरफेस फाइटर जेट हैं,, जो भारतीय नौसेना की तुलना में बहुत अधिक हैं।
वहीं, चीन नए युद्धपोतों और पनडुब्बियों को रिकॉर्ड समय में तैयार कर रहा है। इसके साथ ही, चीन ने अपनी नौसैनिक ताकत को बढ़ाने के लिए विदेशी ठिकानों की तलाश तेज कर दी है।
भारतीय नौसेना को आने वाले सालों में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। आधुनिक युद्धपोतों और पनडुब्बियों के निर्माण में तेजी लाना और नौसैनिक क्षमताओं को अपग्रेड करना समय की मांग है। नए युद्धपोत और पनडुब्बियां नौसेना की ताकत बढ़ाने में मदद करेंगी, लेकिन चीन जैसे प्रतिद्वंद्वी के मुकाबले यह प्रयास काफी धीमा है।
इससे यह साफ है कि भारत को अपनी समुद्री रणनीति में तेजी लानी होगी ताकि क्षेत्रीय सुरक्षा और स्थिरता को बनाए रखा जा सके। प्रोजेक्ट-15बी और प्रोजेक्ट-17ए जैसे योजनाएं सही दिशा में कदम हैं, लेकिन इन्हें तय समय सीमा के भीतर पूरा करना भी जरूरी है।