📍नई दिल्ली | 3 months ago
ALH Dhruv Crash: इंडियन आर्म्ड फोर्सेस ने अपने सभी 330 एडवांस लइट हेलीकॉप्टर (ALH) ‘ध्रुव’ के बेड़े की उड़ान पर अस्थायी तौर पर रोक लगा दी है। सशस्त्र बलों ने यह कदम पोरबंदर में तटरक्षक बल के हेलिकॉप्टर हादसे के बाद उठाया है, जिसमें दो पायलट और एक एयरक्रू गोताखोर की मौत हो गई। हादसे के बाद हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) की एक टीम जांच के लिए घटनास्थल पर भेजी गई है।
बता दें कि रविवार को हुए इस हादसे से पहले एएलएच हेलिकॉप्टर अपनी ट्रेनिंग उड़ान पर था। लगभग 90 मिनट की ट्रेनिंग के दौरान 200 फीट की ऊंचाई पर उड़ते समय, हेलिकॉप्टर नाक के बल जमीन पर गिर गया और उसमें आग लग गई। हादसे के तुरंत बाद, हेलिकॉप्टर के फ्लाइट डेटा रिकॉर्डर (FDR) और कॉकपिट वॉयस रिकॉर्डर (CVR) बरामद कर लिए गए। इन उपकरणों को दुर्घटना के कारणों की जांच के लिए भेजा गया है।
ALH Dhruv Crash: एचएएल और कोस्ट गार्ड ने शुरू की जांच
पिछले चार महीनों में एएलएच हेलिकॉप्टरों के साथ यह दूसरी बड़ी दुर्घटना है। हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) और भारतीय तटरक्षक बल ने हादसे की अलग-अलग जांच शुरू कर दी है। विशेषज्ञों का मानना है कि इन घटनाओं के पीछे डिजाइन, मैन्युफैक्चरिंग और मेंटेनेंस से जुड़ी दिक्कतें हो सकती हैं। एक वरिष्ठ सैन्य अधिकारी ने कहा, “इन दुर्घटनाओं में डिजाइन, क्वॉलिटी कंट्रोल, और पायलटों की ट्रेनिंग से जुड़े मामलों की गहराई से जांच होनी चाहिए।”
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वहीं एचएएल सूत्रों का कहना है कि एएलएच ने अपने आप को साबित किया है। उन्होंने एएलएच का बचाव करते हुए कहा है कि यह विभिन्न उपयोगिता भूमिकाओं में अच्छा प्रदर्शन कर चुका है। वहीं इन हेलिकॉप्टरों की दुर्घटनाओं की दर अंतरराष्ट्रीय मानकों से कम है। उनके अनुसार, प्रति एक लाख उड़ान घंटों में दुर्घटनाओं की संख्या अंतरराष्ट्रीय मानकों से कम है।
ALH Dhruv Crash: एएलएच हेलिकॉप्टर भारतीय सशस्त्र बलों की रीढ़
देश में निर्मित डबल इंजन वाले 5.5 टन वजनी एएलएच हेलिकॉप्टर भारतीय सशस्त्र बलों की रीढ़ माने जाते हैं। ये हेलिकॉप्टर विभिन्न उपयोगी भूमिकाओं में तैनात हैं, इनका इस्तेमाल बचाव कार्य, निगरानी और लॉजिस्टिक सपोर्ट में किया जाता है। खास बात यह है कि 2002 में शामिल किए जाने के बाद से, इसने लगभग 4 लाख उड़ान घंटे पूरे किए हैं। लेकिन हाल में हुए के हादसों ने उनकी विश्वसनीयता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। रविवार को हुई दुर्घटना के बाद विशेषज्ञों ने कहा कि स्वतंत्र और व्यापक जांच के लिए बाहरी विशेषज्ञों को भी शामिल करना चाहिए।
2023 में भी बेड़े को किया था ग्राउंड
यह पहली बार नहीं है जब ALH ध्रुव किसी बड़े हादसे का शिकार हुआ है। 2022 में अरुणाचल प्रदेश में ALH के आर्मर्ड वर्जन ‘रुद्र’ की दुर्घटना में पांच जवानों ने अपनी जान गंवाई थी। इसके बाद 2023 में चार अलग-अलग हादसे हुए, जिनमें नौसेना, सेना और तटरक्षक बल के ALH हेलिकॉप्टर शामिल थे।
इन लगातार घटनाओं के चलते सशस्त्र बलों ने 250 से अधिक ALH ध्रुव और इसके आर्मर्ड वर्जन ALH रुद्र के पूरे बेड़े को विस्तृत तकनीकी जांच के लिए अस्थाई रूप से ग्राउंडेड कर दिया था। जांच में हेलिकॉप्टर के “कलेक्टिव कंट्रोल” जैसे महत्वपूर्ण हिस्सों में समस्याएं पाई गई थीं। इसके बावजूद, दुर्घटनाएं जारी रहीं।
वहीं, सशस्त्र बल अभी भी लगातार एएलएच हेलिकॉप्टरों के नए वैरिएंट्स की लगातार खरीद कर रहे हैं। पिछले साल मार्च में, सेना के लिए 25 एएलएच मार्क-III और तटरक्षक बल के लिए 9 हेलिकॉप्टरों के निर्माण के लिए एचएएल के साथ 8,073 करोड़ रुपये के अनुबंध पर हस्ताक्षर किए गए। इसके अलावा, तटरक्षक बल के लिए 6 नए हेलिकॉप्टरों को मंजूरी दी गई है।
तीन दशकों में 200 से अधिक हेलिकॉप्टर हादसे
भारतीय रक्षा मंत्रालय (MoD) द्वारा संसद में प्रस्तुत आंकड़ों के अनुसार, पिछले 20 वर्षों में 22 एडवांस्ड लाइट हेलिकॉप्टर (ALH) दुर्घटनाग्रस्त हुए हैं। इन हादसों के अलावा, कई हेलिकॉप्टरों को आपातकालीन लैंडिंग करनी पड़ी है। 2017 से 2021 के बीच, ALH से जुड़ी छह प्रमुख दुर्घटनाओं की रिपोर्ट दी गई थी।
भारतीय सेना को इन हेलिकॉप्टर हादसों के कारण भारी नुकसान झेलना पड़ा है। पिछले तीन दशकों के आंकड़ों पर नजर डालें तो 200 से अधिक हेलिकॉप्टर दुर्घटनाओं में कुल 297 लोगों की जान चली गई है।
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कैसे शुरू हुआ ALH ध्रुव का सफर?
पांच टन वजनी इस डबल इंजन मल्टीरोल हेलीकॉप्टर की शुरुआत 1979 में भारतीय वायुसेना के एक कार्यक्रम के तहत हुई थी। 1984 में एचएएल को इसे विकसित करने की जिम्मेदारी सौंपी गई, जिसमें जर्मनी की मेसर्सचिट-बी-ल्को-ब्लोहम को तकनीकी सलाहकार के रूप में शामिल किया गया। हालांकि, यह साझेदारी 1995 में समाप्त हो गई।
पहला प्रोटोटाइप 1992 में उड़ाया गया, लेकिन परियोजना को पूरा करने में कई देरी हुई। अंततः, लगभग 55% स्वदेशी सामग्री के साथ, ALH ध्रुव को 2002 में भारतीय सशस्त्र बलों में शामिल किया गया। इसका सशस्त्र संस्करण, एमके-IV रुद्र, 2013 में सेना का हिस्सा बना।
ALH ध्रुव के चार प्रमुख संस्करण
- Mk-I और Mk-II: पारंपरिक कॉकपिट के साथ ये शुरुआती संस्करण भारतीय सशस्त्र बलों की बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा करते हैं।
- Mk-III: आधुनिक ग्लास कॉकपिट के साथ आता है और तटरक्षक बल में इसका उपयोग खोज और बचाव मिशनों के लिए किया जाता है।
- Mk-IV रुद्र: यह इसका सशस्त्र संस्करण है, जो उन्नत हथियार प्रणालियों और सटीक हमले की क्षमताओं से लैस है।
मल्टीरोल हेलीकॉप्टर की जरूरत क्यों है?
ALH ध्रुव को बहु-भूमिकाओं के लिए डिजाइन किया गया है। यह ऊंचे पहाड़ी क्षेत्रों में सैनिकों और उपकरणों की सप्लाई करने के साथ-साथ युद्ध और आपदा राहत अभियानों में भी उपयोगी है। यह हेलीकॉप्टर भारतीय सशस्त्र बलों के लिए बेहद अहम है क्योंकि यह दुर्गम और कठिन क्षेत्रों में पहुंचने की क्षमता रखता है।
हादसों की वजहें
हाल ही में पोरबंदर में हुए हादसे के पीछे तकनीकी खराबी मुख्य वजह मानी जा रही है। इससे पहले भी कई दुर्घटनाओं में ALH ध्रुव के डिजाइन और निर्माण में खामियां सामने आई हैं। इनमें सबसे प्रमुख हैं बूस्टर कंट्रोल रॉड और कलेक्टिव जैसे महत्वपूर्ण कंपोनेंट्स की समस्याएं। ये हेलीकॉप्टर की स्थिरता बनाए रखने के लिए बेहद जरूरी हैं। इन हिस्सों में खामी आने से हेलीकॉप्टर उड़ान के दौरान अस्थिर हो सकता है।
इसके अलावा, टेल रोटर वाइब्रेशन वॉर्निंग सिस्टम की विफलता भी हालिया दुर्घटनाओं का कारण रही है। यह सिस्टम पायलट को हेलीकॉप्टर में किसी संभावित समस्या के संकेत देता है, लेकिन इसके सही से काम न करने पर पायलट समय रहते आवश्यक कदम नहीं उठा पाते।
ध्रुव हेलीकॉप्टर का उपयोग ऊंचाई वाले और दुर्गम क्षेत्रों में सबसे ज्यादा होता है। सियाचिन ग्लेशियर और लद्दाख जैसे इलाकों में इसका व्यापक उपयोग किया जाता है, जहां तापमान -40°C तक गिर सकता है। इन कठिन परिस्थितियों में मशीनों पर अधिक दबाव पड़ता है।
इन क्षेत्रों में हेलीकॉप्टरों को अत्यधिक दक्षता और स्थिरता की जरूरत होती है। हालांकि, ध्रुव जैसे हेलीकॉप्टर सामान्य परिस्थितियों में बेहतरीन प्रदर्शन करते हैं, लेकिन इन चुनौतीपूर्ण इलाकों में इन्हें कठिनाई का सामना करना पड़ता है।
ALH ध्रुव जैसे उन्नत हेलीकॉप्टर को उड़ाने के लिए व्यापक प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है। लेकिन कई मामलों में पायलटों को पर्याप्त प्रशिक्षण नहीं मिलता। इससे आपातकालीन परिस्थितियों में पायलट सही निर्णय नहीं ले पाते।
विशेषज्ञों का कहना है कि पायलटों को बेहतर प्रशिक्षण और अनुभव प्रदान कर दुर्घटनाओं की संभावना को कम किया जा सकता है।
डिजाइन में सुधार और नए वेरिएंट्स का सुझाव
एयर वाइस मार्शल मनमोहन बहादुर (सेवानिवृत्त) का कहना है, “हम अपने पायलटों और जवानों को खो रहे हैं। अब समय आ गया है कि हम जांच करें कि ALH जैसे उन्नत हेलीकॉप्टर क्यों दुर्घटनाग्रस्त हो रहे हैं।”
मेजर जनरल संदीपन हांडा (सेवानिवृत्त) के अनुसार, “ऐसे हेलीकॉप्टर का डिजाइन करना चुनौतीपूर्ण है, जो -40°C की ठंड में ऊंचाई वाले इलाकों में काम कर सके और +50°C की गर्मी में भी। एक ही वेरिएंट के बजाय, ऊंचाई और मैदान के लिए अलग-अलग वेरिएंट पर विचार करना अधिक व्यावहारिक होगा।”
वहीं, लेह स्थित 14 कोर के रसद विभाग के प्रमुख रहे मेजर जनरल ए.पी. सिंह (सेवानिवृत्त) का कहना है कि सेना को चीता और चेतक जैसे हल्के हेलीकॉप्टरों के एक आधुनिक बेड़े की जरूरत है। हालांकि, चीता हेलीकॉप्टर की पेलोड क्षमता सीमित है।
उन्होंने कहा, “हमारे अधिकतर हेलीपैड छोटे हैं, जो 5 टन से अधिक वजन वाले हेलीकॉप्टरों को संभालने में सक्षम नहीं हैं। हमें ऐसे हेलीकॉप्टर की जरूरत है, जो छोटे हेलीपैड पर उतर सके और ज्यादा पेलोड ले जा सके।”