📍नई दिल्ली | 26 Feb, 2025, 7:26 PM
Landing Helicopter Docks: भारतीय नौसेना अपनी युद्ध क्षमताओं को और बढ़ाने के लिए हेलिकॉप्टर कैरियर (Landing Helicopter Docks – LHDs) कैरियर को अपने बेड़े में शामिल करने की योजना बना रही है। ये कैरियर आम लैंडिंग हेलीकॉप्टर डॉक्स नहीं होंगे, बल्कि इन्हें खास तौर पर ड्रोन ऑपरेशन के लिए कस्टमाइज्ड किया जाएगा यानी ये ड्रोन-फ्रेंडली होंगे। यह कदम हिंद महासागर क्षेत्र (Indian Ocean Region – IOR) में भारत की समुद्री ताकत और निगरानी क्षमताओं को मजबूत करने के लिए उठाया जा रहा है।

क्या हैं Landing Helicopter Docks और क्यों है इनकी जरूरत?
लैंडिंग हेलीकॉप्टर डॉक्स आमतौर पर मल्टीपर्पज वॉरशिप होते हैं, जो सैनिकों, हेलिकॉप्टरों और लैंडिंग क्राफ्ट को तैनात करने में सक्षम होते हैं। परंतु भारतीय नौसेना इनका इस्तेमाल एक मोबाइल ड्रोन बेस के तौर पर करना चाहती है। इसका मतलब है कि इन वॉरशिप्स से बड़ी संख्या में मानव रहित एरियल व्हीकल्स (Unmanned Aerial Vehicles – UAVs) लॉन्च किए जा सकेंगे, जो लंबे समय तक निगरानी, रेकनाइसेन्स और यहां तक कि कॉम्बैट ऑपरेशंस को अंजाम दे सकेंगे।
INS Tamal: ‘बायर्स नेवी’ से ‘बिल्डर्स नेवी’ बनी भारतीय नौसेना, जून में कमीशन होगा आईएनएस तमाल, अब बाहर से नहीं खरीदे जाएंगे वॉरशिप
ड्रोन ऑपरेशन के लिए Landing Helicopter Docks क्यों?
दुनिया भर की नौसेनाएं अब अनमैंड वॉर सिस्टम्स को अपना रही हैं। पिछले साल दिसंबर में इटली की नौसेना ने भी लैंडिंग हेलीकॉप्टर डॉक ट्राइस्टे को सर्विस में शामिल किया था। ट्राइस्टे LHD का वजन 38,000 टन है, औऱ इसकी लंबाई 245 मीटर और चौड़ाई 55.5 मीटर है। जहाज पर 1,064 लोगों के रहने की व्यवस्था है, जिसमें 360 लोगों का चालक दल शामिल है। इसमें दो 36 मेगावाट रोल्स-रॉयस MT30 गैस टर्बाइन इंजन लगे हैं।
वहीं, भारत भी इसी रणनीति के तहत अपने लैंडिंग हेलीकॉप्टर डॉक्स को मॉडर्न ड्रोन ऑपरेशन के लिए कस्टमाइज्ड करना चाहता है। LHD जहाज पारंपरिक रूप से amphibious operations (जलीय और स्थलीय दोनों अभियानों) के लिए बनाए जाते हैं। इनका इस्तेमाल सैनिकों की तैनाती, हेलीकॉप्टर ऑपरेशन और अन्य मरीन ऑपरेशंस के लिए किया जाता है। लेकिन अब भारतीय नौसेना इन प्लेटफार्मों को ड्रोन-बेस्ड नेवल ऑपरेशन्स के लिए कस्टमाइज्ड करने की योजना बना रही है।
ड्रोन-आधारित LHD की सबसे बड़ी खासियत इसकी मल्टीलेयर फंक्शनैलिटी है। इसे इस तरह से मॉडिफाई किया जा सकता है कि यह नेवल ऑपरेशन्स के साथ-साथ ड्रोन बेस्ड ऑपरेशंस में भी अहम भूमिका निभा सके। इससे नौसेना के बेड़े को नई तरह की फ्लेक्सिबिलिटी मिलेगी, जिससे वह अलग-अलग परिस्थितियों में तेजी से रेस्पॉन्स दे सके।
इसके अलावा ड्रोन-बेस्ड LHDs की सबसे बड़ी खूबी यह होगी कि वे पारंपरिक एयरक्राफ्ट कैरियर की तुलना में कम खर्च में बेहतर ऑपरेशन कर सकेंगे। ड्रोन टेक्नोलॉजी काफी एडवांस हो गई है, ड्रोन की लंबी दूरी तक उड़ान भरने और ज्यादा समय तक हवा में टिके रहने की क्षमता, इन्हें मरीन ऑपरेशंस में महत्वपूर्ण बना रही है। साथ ही, बिना पायलट वाले ड्रोन का इस्तेमाल करने से ऑपरेशनल लागत में भारी कमी आएगी। वहीं, मैन-पावर्ड मिशनों की तुलना में इनका जोखिम भी कम होगा।
INS Aridhaman: भारत गुपचुप कर रहा इस खास पनडुब्बी का समुद्री ट्रायल! भारतीय नौसेना को जल्द मिलेगी तीसरी न्यूक्लियर बैलिस्टिक मिसाइल सबमरीन
भारतीय नौसेना के मिलेगी बढ़त
जानकारों का कहना है कि इस रणनीति के कई फायदे हैं। सबसे पहले, यह हिंद महासागर क्षेत्र में भारत की समुद्री मौजूदगी को मजबूत करेगा। यह क्षेत्र वैश्विक व्यापार और रणनीतिक हितों की दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है, जहां लगातार निगरानी और सुरक्षा की आवश्यकता होती है। इसके अलावा LHD से संचालित ड्रोन निगरानी अभियानों के लिए बेहद फायदेमंद साबित होंगे। इनका उपयोग समुद्री जहाजों की गतिविधियों पर नजर रखने, पनडुब्बियों की खोज, और संभावित खतरों की पहचान के लिए किया जा सकेगा।
इसके अलावा, इन ड्रोन का इस्तेमाल युद्ध के दौरान इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर और सटीक हमलों के लिए भी किया जा सकता है। इससे नौसेना को किसी भी संभावित हमले का जवाब देने में एक नई ताकत मिलेगी।
कम खर्च में ज्यादा काम
LHD से ड्रोन ऑपरेट करना कम खर्चीला भी है। पारंपरिक लड़ाकू विमानों की तुलना में ड्रोन ऑपरेशन की लागत काफी कम होती है। इसके अलावा, ये बिना पायलट के उड़ते हैं, जिससे जोखिम भी कम हो जाता है। ड्रोन के इस्तेमाल से युद्धपोतों की ऑपरेशन रेंज भी बढ़ जाएगी, जिससे नौसेना को दूरदराज के समुद्री इलाकों में भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में मदद मिलेगी।
LHDs को भविष्य की तकनीकों को ध्यान में रखते हुए डिजाइन किया जाएगा। इनमें वर्टिकल टेक-ऑफ और लैंडिंग (VTOL) वाले UAVs, लॉइटरिंग म्यूनिशन (जो एक निर्धारित क्षेत्र में मंडराते रहते हैं और जरूरत पड़ने पर हमला कर सकते हैं), और यहां तक कि मानव रहित लड़ाकू हवाई वाहन (UCAVs) के लिए भी जगह होगी। इसके अलावा दुश्मन पर सटीक हमले (precision strikes) और स्वायत्त (autonomous) वॉर मिशंस में इनका अहम योगदान रहेगा।
AI-बेस्ड ड्रोन स्वार्म
भविष्य में, इन LHDs का इस्तेमाल एक साथ कई ड्रोन को लॉन्च करने के लिए किया जा सकता है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) की मदद से, ये ड्रोन पूरी तरह से ऑटोनॉमस (स्वायत्त) तरीके से काम कर सकते हैं और टीम बनाकर दुश्मन पर हमला कर सकते हैं। इस तकनीक को ड्रोन स्वार्मिंग कहा जाता है, जिसमें सैकड़ों ड्रोन एक साथ ऑपरेशन कर सकते हैं और दुश्मन के रडार और डिफेंस सिस्टम को चकमा दे सकते हैं।
LHDs को एक प्रयोगशाला के तौर पर देख रही है भारतीय नौसेना
भारतीय नौसेना LHDs को एक प्रयोगशाला के तौर पर भी देख रही है, जहां विभिन्न ड्रोन कॉन्फिगरेशन और ऑपरेशनल रणनीतियों का ट्रायल किया जा सकता है। LHD आधारित ड्रोन ऑपरेशन भारतीय समुद्री सुरक्षा और रणनीतिक बढ़त के लिए एक महत्वपूर्ण बदलाव साबित हो सकते हैं। इन युद्धपोतों से दुश्मन की पनडुब्बियों की निगरानी और उन पर हमले किए जा सकते हैं, जिससे भारतीय नौसेना की पनडुब्बी रोधी युद्ध क्षमता कई गुना बढ़ जाएगी। इससे भारतीय नौसेना को 24×7 निगरानी, लंबी दूरी की टारगेटिंग और हाइब्रिड युद्ध संचालन की नई संभावनाएं मिलेंगी। इस कदम से भारत को हिंद महासागर क्षेत्र में आधुनिक तकनीकों के साथ उभरती चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार किया जाएगा।
चीन की बढ़ती नौसैनिक गतिविधियों और उसके समुद्री विस्तार को देखते हुए भारतीय नौसेना को हिंद महासागर क्षेत्र में अपनी उपस्थिति मजबूत बनाए रखने की आवश्यकता है। चीन पहले ही साउथ चाइना सी में ड्रोन-बेस्ड समुद्री ऑपरेशन कर रहा है और भारत के लिए यह समय उपयुक्त है कि वह इस तकनीक में महारत हासिल कर अपनी सुरक्षा को और सुदृढ़ करे। भारतीय नौसेना LHDs पर UAVs तैनात कर हिंद महासागर में अपनी निगरानी और सैन्य प्रभाव को बढ़ा सकती है। अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन और चीन पहले ही अपने नौसैनिक बेड़ों में ड्रोन ऑपरेशन को प्राथमिकता दे रहे हैं, ऐसे में भारत का यह कदम उसकी नौसैनिक क्षमता को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाएगा।