Indian Navy Project-76: क्या है भारतीय नौसेना का ये खास Project-76? समुद्र के नीचे चीन-पाकिस्तान को टक्कर देने की कर रही बड़ी तैयारी!

By हरेंद्र चौधरी

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📍नई दिल्ली | 14 Dec, 2024, 3:43 PM

Indian Navy Project-76: भारतीय नौसेना अपनी समुद्र संबंधी ताकत को और मजबूत करने के लिए कई महत्वपूर्ण योजनाओं पर काम कर रही है। इन योजनाओं में से एक खास प्रोजेक्ट है, जिसे “Project-76” के नाम से जाना जाता है। यह प्रोजेक्ट भारतीय नौसेना की समुद्र के अंदर युद्धक्षमता (undersea warfare capabilities) को और अधिक बढ़ाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। खास बात यह है कि इस प्रोजेक्ट के तहत भारतीय नौसेना पूरी तरह से स्वदेशी तकनीक का इस्तेमाल करने की योजना बना रही है, ताकि देश की सुरक्षा में आत्मनिर्भरता बढ़े और रक्षा क्षेत्र में स्वदेशी उद्योगों को बढ़ावा मिले।

Indian Navy Project 76: India’s Major Plan to Improve Undersea Warfare Capabilities

Indian Navy Project-76 का उद्देश्य

भारतीय नौसेना का Project-76 एक नई श्रेणी के डीजल-इलेक्ट्रिक अटैक पनडुब्बियों के निर्माण पर फोकस है। ये पनडुब्बियां भारतीय नौसेना की समुद्र में गहराई में रणनीतिक ताकत को बढ़ाने में सहायक होंगी। इन पनडुब्बियों का प्रमुख उद्देश्य दुश्मन के जहाजों और पनडुब्बियों से मुकाबला करना और समुद्र में भारतीय नौसेना की उपस्थिति को मजबूत करना है।

स्वदेशी डीजल इंजन का महत्व

इस प्रोजेक्ट में सबसे बड़ी खासियत यह है कि इन पनडुब्बियों के लिए स्वदेशी डीजल इंजन विकसित किए जाएंगे। भारत में एक निजी क्षेत्र की कंपनी है, जिसने पहले ही औद्योगिक डीजल इंजन विकसित किए हैं और वह अब भारतीय नौसेना के साथ मिलकर Project-76 के लिए आवश्यक इंजन तैयार करने की प्रक्रिया में है। यह इंजन पनडुब्बियों को ताकत देगा और इनकी क्षमता 1231-1300 किलोवाट तक हो सकती है। प्रत्येक इंजन का वजन लगभग 6 टन होगा।

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इन पनडुब्बियों को दो ऐसे इंजन की आवश्यकता होगी, जिनका मुख्य कार्य लिथियम-आयन बैटरी को रिचार्ज करना होगा, जब पनडुब्बी स्नॉर्कल गहराई (snorkel depth) पर ऑपरेट कर रही होगी। यह एक बहुत महत्वपूर्ण कार्य है, क्योंकि पनडुब्बियों को बिना सतह पर आए लंबे समय तक समुद्र के नीचे रहने की आवश्यकता होती है।

भारतीय नौसेना को स्वदेशी इंजन पर जोर देने की एक बड़ी वजह है – सप्लाई चेन की विश्वसनीयता में सुधार, आयात पर निर्भरता को कम करना और रक्षा क्षेत्र में घरेलू उद्योग को बढ़ावा देना। स्वदेशी इंजन बनाने से न केवल तकनीकी आत्मनिर्भरता बढ़ेगी, बल्कि देश के रक्षा उद्योग को भी एक नई दिशा मिलेगी। एक बार तकनीकी आवश्यकताएं पूरी हो जाने के बाद, इंजन के विकास का चरण शुरू हो जाएगा, जो भारत के समुद्री रक्षा क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर होगा।

Project-77 की तैयारी

यह स्वदेशी डीजल इंजन सिर्फ Project-76 के लिए ही महत्वपूर्ण नहीं होगा, बल्कि इसके भविष्य में और भी महत्वपूर्ण उपयोग हो सकते हैं। सूत्रों के अनुसार, इन इंजन का इस्तेमाल Project-77 में भी हो सकता है, जो भारत के न्यूक्लियर अटैक पनडुब्बी (SSN) के लिए विकसित किया जा रहा है। यहां तक कि न्यूक्लियर पनडुब्बियों में भी डीजल इंजन बैकअप पावर सिस्टम के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये इंजन पनडुब्बी के रिएक्टर कूलिंग जैसे महत्वपूर्ण सिस्टम को चलाने के लिए इमरजेंसी पावर प्रदान करते हैं। इसके अलावा, अगर रिएक्टर में कोई खराबी आती है, तो यह इंजन इमरजेंसी प्रोपल्शन (propulsion) की सुविधा भी देते हैं।

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ये इंजन न्यूक्लियर पनडुब्बियों के लिए एक सिक्योरिटी सिस्टम के तौर पर भी कार्य करेंगे, जिससे पनडुब्बी के ऑपरेशन में कोई संकट न हो। इसके कारण, इन इंजन का विकास सिर्फ Project-76 के लिए ही नहीं, बल्कि भविष्य में होने वाली न्यूक्लियर पनडुब्बियों के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।

इन स्वदेशी इंजन को बनाने के पीछे नौसेना का लक्ष्य एक विश्वसनीय, बहु-उद्देशीय और स्वदेशी पनडुब्बी बेड़ा तैयार करना है। यह पनडुब्बी केवल दुश्मन से लड़ने के लिए नहीं, बल्कि भारतीय समुद्री क्षेत्रों की रक्षा करने के लिए भी तैयार की जा रही हैं। भारत का यह कदम सैन्य क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की दिशा में एक बड़ा कदम है।

स्वदेशी इंजन तकनीक का उपयोग न केवल भारतीय नौसेना को ताकतवर बनाएगा, बल्कि यह रक्षा क्षेत्र में एक बड़ी उपलब्धि होगी। Project-76 भारतीय नौसेना के लिए एक ऐसे प्रोजेक्ट के रूप में उभर कर सामने आ रहा है, जो न केवल देश की समुद्री ताकत को बढ़ाएगा, बल्कि भारत को एक मजबूत और आत्मनिर्भर राष्ट्र बनाने की दिशा में भी बड़ा योगदान देगा।

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