📍नई दिल्ली | 5 months ago
Women COs in Indian Army: भारतीय सेना में महिला कमांडिंग अधिकारियों (सीओ) की भूमिका को लेकर एक बड़ी बहस छिड़ गई है। सेना की 17वीं कोर के जीओसी लेफ्टिनेंट जनरल राजीव पुरी ने सेना के ईस्टर्न आर्मी कमांडर सहित सेना के एमएस (मिलिट्री सेक्रेटरी) और एजी (Adjutant General)) को भेजे गए फीडबैक में कहा है कि महिला अधिकारियों को सेना की यूनिट कमांड करते हुए एक साल से ज्यादा का वक्त हो गया है। यह जरूरी है कि उनकी परफॉर्मेंशन का प्रैक्टिकल तरीके से मूल्यांकन किया जाए। लेफ्टिनेंट जनरल राजीव पुरी ने महिला सीओ के प्रदर्शन और उनसे जुड़े मुद्दों पर अपने अनुभव साझा किए हैं। यह पत्र उन्होंने 17वीं कोर के कोर कमांडर के रूप में पूर्वी कमान के जीओसी-इन-चीफ लेफ्टिनेंट जनरल राम चंदर तिवारी को लिखा था।
1 अक्टूबर 2024 को लिखा गए इस पत्र में लेफ्टिनेंट जनरल पुरी ने महिला अधिकारियों के प्रदर्शन के एक साल का विश्लेषण लिखा है। पत्र में उठाए गए मुद्दों ने सेना और रक्षा विशेषज्ञों के बीच महिला नेतृत्व को लेकर व्यापक चर्चा को जन्म दिया है। पत्र में महिला अधिकारियों के नेतृत्व में आने वाली चुनौतियों और कमियों पर विस्तार से चर्चा की गई है।
1. आपसी संबंध और संवाद की कमी
लेफ्टिनेंट जनरल पुरी ने कहा कि महिला सीओ के नेतृत्व वाली यूनिटों में ऑफिसर मैनेजमेंट की समस्याएं बढ़ गई हैं। उन्होंने इसे महिला अधिकारियों की पर्सनल और प्रोफेशनल जरूरतों को समझने में कमी से जोड़ा। उनका कहना था कि महिला सीओ अक्सर विवादों को संवाद से हल करने की बजाय अधिकारवादी दृष्टिकोण अपनाती हैं।
2. बार-बार शिकायतें करना
पत्र में यह भी उल्लेख किया गया है कि महिला सीओ छोटी-छोटी समस्याओं को सीनियर अधिकारियों तक ले जाती हैं, बजाय इसके कि वे उन्हें अपनी यूनिट में हल करें। इसे ह्यूमन रिसोर्स मैनेजमेंट की कमी के रूप में देखा गया।
3. केंद्रीकृत नेतृत्व शैली
महिला सीओ के नेतृत्व में निर्णय लेने की प्रक्रिया में अधीनस्थ अधिकारियों को शामिल नहीं किया जाता। पत्र में इसे “My Way or Highway” मानसिकता कहा गया, जो अधीनस्थ अधिकारियों में असंतोष का कारण बनती है।
4. अधिकार और एंपैथी का संतुलन
पत्र में कुछ घटनाओं का जिक्र है, जहां महिला सीओ ने व्यक्तिगत सुविधाओं को प्राथमिकता दी। उदाहरण के तौर पर, एक महिला सीओ ने यूनिट के सूबेदार मेजर से अपनी गाड़ी का दरवाजा खोलने को कहा। यह अपने अधिकारों के अनुचित इस्तेमाल का संकेत है।
5. एंपैथी की कमी
पत्र में कहा गया कि महिला सीओ संवेदनशीलता की कमी के कारण अपने अधीनस्थ कर्मचारियों की वास्तविक जरूरतों को समझने में असफल रहीं हैं।
6. नेतृत्व में अधिक सख्ती
महिला अधिकारी, पारंपरिक रूप से पुरुष-प्रधान वातावरण में खुद को साबित करने के प्रयास में, अधिक सख्त नेतृत्व शैली अपनाती हैं, जो संतुलित नेतृत्व में बाधा डालती है।
7. छोटी उपलब्धियों का अधिक उत्सव
महिला अधिकारियों की छोटी-छोटी उपलब्धियों का ज्यादा जश्न मनाने की प्रवृत्ति ने गलत उम्मीदें पैदा की हैं, जिससे नेतृत्व की गतिशीलता प्रभावित होती है।
सुधारात्मक उपायों के सुझाव
पत्र में इन समस्याओं को हल करने के लिए कई सुझाव दिए गए हैं:
- जेंडर-न्यूट्रल पोस्टिंग नीति: महिलाओं और पुरुषों दोनों के लिए एक समान नीति लागू की जाए।
- बेहतर प्रशिक्षण: महिला अधिकारियों को नेतृत्व और निर्णय लेने के कौशल में बेहतर प्रशिक्षण दिया जाए।
- प्रतीकात्मकता कम करना: महिला अधिकारियों को केवल सशक्तिकरण दिखाने के लिए प्रतीकात्मक भूमिकाओं में नहीं रखा जाए।
- स्पाउस कोऑर्डिनेटेड पोस्टिंग पर पुनर्विचार: इस नीति को अधिक व्यावहारिक बनाया जाए।
चर्चा और विवाद
लेफ्टिनेंट जनरल पुरी का यह पत्र सेना के भीतर और रक्षा विशेषज्ञों के बीच चर्चा का विषय बन गया है। यह पत्र तब आया है जब सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद महिला अधिकारियों को कमांड भूमिकाओं में नियुक्त किया गया है।
हालांकि, सेना के कुछ अधिकारियों का कहना है कि यह पत्र सिर्फ लेफ्टिनेंट जनरल पुरी के व्यक्तिगत अवलोकन हो सकते हैं, क्योंकि इसका आधार 17वीं कोर की केवल 7 महिला अधिकारियों पर आधारित है। सेना में वर्तमान में लगभग 100 महिला अधिकारी कमांडिंग भूमिकाओं में हैं।
भारतीय सेना में महिला अधिकारियों को नेतृत्व भूमिकाएं देना लैंगिक समानता की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है। हालांकि, यह प्रक्रिया शुरुआती दौर में है और इसमें सुधार की गुंजाइश है। वहीं, महिला अधिकारियों के सामने आईं चुनौतियां न केवल उनके नेतृत्व कौशल को मजबूत करने की जरूरत को दर्शाती हैं, बल्कि यह भी दिखाती हैं कि सेना को अपनी नीतियों और प्रशिक्षण प्रक्रियाओं में बदलाव करना होगा। यह पहल महिला सशक्तिकरण के साथ-साथ सेना को अधिक मजबूत और समावेशी बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।