📍नई दिल्ली | 4 months ago
Shivaji Maharaj Statue row: 28 दिसंबर को लद्दाख की पेंगोंग झील के किनारे भारतीय सेना ने छत्रपति शिवाजी महाराज की 30 फीट ऊंची प्रतिमा स्थापित की, जिसके बाद सोशल मीडिया पर यूजर तरह-तरह के कमेंट्स करने लगे। इनमें न केवल स्थानीय लद्दाखी लोग शामिल थे, बल्कि रिटायर्ड सैन्य अधिकारियों ने भी सेना के इस कदम पर सवाल उठाए। इस प्रतिमा को सेना ने चीन के साथ लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LAC) के पास 14,300 फीट की ऊंचाई पर स्थापित किया है। कुछ यूजर्स का मानना है कि इस जगह पर डोगरा जनरल जोरावर सिंह की प्रतिमा अधिक उपयुक्त होती, जिन्होंने लद्दाख पर जीत हासिल की थी और तिब्बत में लड़ाई लड़ी थी। रक्षा समाचार डॉट कॉम ने सबसे पहले इस खबर को प्रकाशित किया था।
शिवाजी महाराज की इस प्रतिमा का उद्घाटन भारतीय सेना की फायर एंड फ्यूरी कोर (14 कोर) के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल हितेश भल्ला ने किया, जो मराठा लाइट इन्फैंट्री के कर्नल भी हैं। उन्होंने इस अवसर पर कहा कि शिवाजी महाराज के साहस, रणनीति और न्याय के आदर्श आज के मिलिट्री ऑपरेशंस के लिए भी प्रासंगिक हैं। बता दें कि लेफ्टिनेंट जनरल हितेश भल्ला उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में जन्मे हैं, और उनके पिता रिटायर्ड ब्रिगेडियर रहे हैं। दो बार शौर्य चक्र (1996, 2002) और सेना पदक से सम्मानित चुके हैं।
हालांकि, इस प्रतिमा की प्रासंगिकता पर सवाल उठाए जा रहे हैं। सोशल मीडिया पर लोगों ने कहा कि पेंगोंग झील पर शिवाजी महाराज की जगह जनरल जोरावर सिंह की प्रतिमा होनी चाहिए थी, जिन्होंने 1800 के दशक में लद्दाख और तिब्बत में अपनी वीरता दिखाई थी।
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Shivaji Maharaj Statue row: स्थानीय काउंसलर ने जताई नाराजगी
पेंगोंग के नजदीक ही चुशुल इलाके के काउंसलर कोनचोक स्टैंजिन ने इस प्रतिमा को लेकर अपनी नाराज़गी जताई। उन्होंने ट्वीट किया,
“एक स्थानीय निवासी के रूप में, मुझे पेंगोंग पर शिवाजी महाराज की प्रतिमा लगाने से आपत्ति है। यह बिना स्थानीय समुदायों की सहमति के स्थापित की गई है। हमें ऐसे प्रोजेक्ट्स को प्राथमिकता देनी चाहिए, जो हमारी संस्कृति और पर्यावरण का सम्मान करें।”
वहीं स्टैनजिन के इस बयान ने राष्ट्रीय प्रतीकवाद और स्थानीय पहचान के बीच संतुलन पर व्यापक बहस छेड़ दी है।
राजनीतिक कार्यकर्ता और 2019 में लद्दाख से संसदीय उम्मीदवार रह चुके सज्जाद कारगिली ने कहा:
“लद्दाख में श्री छत्रपति शिवाजी महाराज की कोई सांस्कृतिक या ऐतिहासिक प्रासंगिकता नहीं है। हम उनकी विरासत का सम्मान करते हैं, लेकिन ऐसे सांस्कृतिक प्रतीकों को यहां थोपना गलत है। हम स्थानीय ऐतिहासिक शख्सियतों जैसे ख्री सुल्तान चो, अली शेर खान अंचेन और सेंगे नामग्याल की प्रतिमाएं लगाने का समर्थन करेंगे।”
सज्जाद ने यह भी कहा, “हालांकि, इन प्रतिमाओं को भी पर्यावरणीय रूप से संवेदनशील क्षेत्रों जैसे पैंगोंग में नहीं लगाना चाहिए, क्योंकि ऐसे स्थानों को संरक्षित करने की आवश्यकता है।”
Shivaji Maharaj Statue row: रिटायर्ड सैन्य अफसरों ने भी जताई आपत्ति
रिटायर्ड मेजर जनरल बीएस धनोआ ने कहा, “सशस्त्र बलों में किसी भी प्रतीक को राष्ट्रीय ध्वज और रेजिमेंटल ध्वज से ऊपर नहीं होना चाहिए। 14 कॉर्प्स में यह निर्णय क्यों लिया गया और इसे सोशल मीडिया पर प्रचारित क्यों किया गया?”
वहीं, रिटायर्ड कर्नल अनिल तलवार ने कहा, “सेना को अपने मुख्य मिशन और मूल्यों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, न कि ऐसे आयोजन करने चाहिए जो राष्ट्रीय रक्षा और एकता के व्यापक उद्देश्यों से संबंधित नहीं हैं।”
रक्षा विशेषज्ञ मन अमन सिंह चिन्ना ने लिखा, “डोगरा जनरल जोरावर सिंह, जिन्होंने लद्दाख पर विजय प्राप्त की और तिब्बत में युद्ध लड़ा, की प्रतिमा यहां अधिक उपयुक्त होती।”
SHRI CHHATRAPATI SHIVAJI MAHARAJ STATUE AT PANGONG TSO, LADAKH
On 26 Dec 2024, a majestic statue of Shri Chhatrapati Shivaji Maharaj was inaugurated on the banks of Pangong Tso at an altitude of 14,300 feet.
The towering symbol of valour, vision and unwavering justice was… pic.twitter.com/PWTVE7ndGX
— @firefurycorps_IA (@firefurycorps) December 28, 2024
सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाएं
एक सोशल मीडिया यूजर ने लिखा, “पेंगोंग झील एक रणनीतिक स्थान है और इसे ऐसे नायक की प्रतिमा से सजाया जाना चाहिए, जिसका इस क्षेत्र में ऐतिहासिक महत्व हो। जनरल जोरावर सिंह ने तिब्बत तक जाकर मानसरोवर को आज़ाद कराया और लद्दाख को भारत का हिस्सा बनाया।”
एक अन्य यूजर ने कहा, “शिवाजी महाराज का सम्मान है, लेकिन यह प्रतिमा उनकी कर्मभूमि से बहुत दूर है। जनरल जोरावर सिंह की प्रतिमा यहां ज्यादा प्रासंगिक होती।”
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कौन थे जनरल जोरावर सिंह?
जनरल जोरावर सिंह को लद्दाख और तिब्बत पर विजय प्राप्त करने के लिए जाना जाता है। वह महाराजा रणजीत सिंह की सेना के एक महान सेनापति थे। उनके नेतृत्व में लद्दाख, तिब्बत और मानसरोवर पर विजय हासिल की गई, जो भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
मेजर जनरल (रिटायर्ड) कुलदीप संधू ने कहा, “छत्रपति शिवाजी महाराज एक महान नेता थे, लेकिन उनका लद्दाख से कोई ऐतिहासिक संबंध नहीं था। पेंगोंग झील पर जनरल जोरावर सिंह की प्रतिमा लगाई जाती तो ज्यादा बेहतर होता।”
कर्नल राजेंद्र भादुड़ी (सेवानिवृत्त) ने लिखा: “… पैंगोंग त्सो में शिवाजी के खिलाफ कुछ नहीं, बस इतना है कि वह अपनी कर्मभूमि से बहुत दूर हैं। जनरल जोरावर सिंह कहलूरिया की एक प्रतिमा उपयुक्त होती, जिन्होंने पश्चिमी तिब्बत के 500 मील से अधिक हिस्से पर विजय प्राप्त की थी।”
रिटायर्ड कर्नल संजय पांडे भी कहते हैं, “जोरावर सिंह पेंगोंग त्सो से होते हुए खुरनाक किले तक गए, मानसरोवर तक चौकियाँ स्थापित कीं। तिब्बत में लड़ते हुए उनकी मृत्यु हो गई। लेह किले को जोरावर किला कहा जाता है। वहां शिवाजी की प्रतिमा क्यों? मैं एक शुद्ध डोगरा यूनिट से महाराष्ट्रीयन हूं, महाराजा गुलाब सिंह की पहली यूनिट। श्रीनगर के लाल चौक में शिवाजी की एक और प्रतिमा क्यों नहीं? या द्रास में? या कारगिल में? जोरावर सिंह ने 180 साल पहले युद्ध लड़े थे, मौसम आज जैसा ही था। वह वहाँ होने के हकदार हैं।”
सोशल मीडिया पर एक इंजीनियर ने लिखा, “पैंगोंग त्सो वह जगह है, जिसके पास 1962 के नायक मेजर शैतान सिंह ने चीनियों से लड़ते हुए अपने प्राण न्यौछावर किए थे। यही वह जगह है, जहां से जनरल जोरावर सिंह ने चीनी तिब्बत पर आक्रमण के लिए अपनी सेना के साथ मार्च किया था।”
रिटायर्ड कर्नल रोहित वत्स नाम का कहना है, “मैं छत्रपति शिवाजी महाराज का बहुत सम्मान करता हूं, लेकिन मुझे नहीं लगता कि उनकी प्रतिमा लगाने के लिए यह सही स्थान है। इस जगह के इतिहास को देखते हुए, जनरल जोरावर सिंह की प्रतिमा यहां लगाना अधिक उपयुक्त होता। उनकी निर्भीकता, सामरिक और रणनीतिक कौशल की वजह से ही लद्दाख आज भारत का हिस्सा है।”
क्या कहती है सेना?
डिफेंस सूत्रों के मुताबिक, पैंगोंग झील के किनारे शिवाजी महाराज की प्रतिमा मराठा यूनिट के स्वैच्छिक योगदान से लगाई गई है। इस पर कोई पब्लिक फंड खर्च नहीं हुआ। उन्होंने बताया, “इन्फैंट्री (पैदल सेना) यूनिटों में अपनी यूनिट से संबंधित प्रतीक लगाने की लंबी परंपरा रही है। यह सैनिकों को प्रेरित करने के लिए किया जाता है।”
पैंगोंग झील का यह क्षेत्र मराठा यूनिट के तहत आता है, जो एक प्रतिबंधित क्षेत्र है। यहां की यूनिट के सैनिकों और पूर्व सैनिकों ने मिलकर स्वैच्छिक योगदान से यह प्रतिमा स्थापित की है।
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पेंगोंग झील का सामरिक महत्व
पेंगोंग झील भारत और चीन के बीच सीमा विवाद का प्रमुख स्थान है। 2020 में सीमा विवाद के दौरान यह क्षेत्र सुर्खियों में था। हाल ही में, भारतीय सेना प्रमुख के लाउंज में पेंगोंग झील की पेंटिंग लगाई गई थी, इससे पहले वहां 1971 के पाकिस्तानी सेना के आत्मसमर्पण की एतिहासिक पेंटिंग लगी थी। लेकिन जब इसे हटाए जाने को लेकर विवाद बढ़ा तो 1971 की पेंटिंग को नई दिल्ली स्थित मानेकशॉ सेंटर में शिफ्ट कर दिया गया।
स्थानीय नायकों की अनदेखी?
एक सोशल मीडिया यूजर मनु खजूरिया ने लिखा, “शिवाजी महाराज के प्रति मेरी गहरी श्रद्धा है, लेकिन यह ऐसा है जैसे रायगढ़ किले पर डोगरा जनरल जोरावर सिंह की मूर्ति लगाई जाए। जनरल जोरावर सिंह और कर्नल मेहता बस्ती राम ने महाराजा गुलाब सिंह के नेतृत्व में लद्दाख पर विजय पाई और पश्चिमी तिब्बत में चीनी-तिब्बती सेना से युद्ध किया। डोगरा सेना, जो पर्वतीय युद्ध में माहिर थी, ने यहां अपना खून बहाया। यह समझ नहीं आता कि स्थानीय इतिहास और नायकों को क्यों नज़रअंदाज़ किया जा रहा है।”
हिस्ट्री ऑफ़ राजपूताना नाम के एक अन्य सोशल मीडिया अकाउंट ने लिखा, “पैंगोंग एक रणनीतिक जगह है। इसे ऐसे व्यक्ति की प्रतिमा से सजाया जाना चाहिए, जिसका इस स्थान से ऐतिहासिक संबंध हो। जनरल जोरावर सिंह तिब्बत तक गए और सैकड़ों वर्षों बाद मानसरोवर को मुक्त कराया। लद्दाख आज भारत का हिस्सा है, यह उनकी वजह से है। हमें खुद को बेवकूफ बनाने की जरूरत नहीं है।”
सेना को मजबूत करने की पहल
पेंगोंग झील पर शिवाजी महाराज की प्रतिमा का अनावरण सेना की उस व्यापक पहल का हिस्सा है, जिसमें लद्दाख क्षेत्र में अपनी स्थिति को मजबूत करने के प्रयास शामिल हैं। सेना द्वारा बेहतर बुनियादी ढांचा, निगरानी और सैनिकों की तैनाती की क्षमता को बढ़ाने के कदम उठाए गए हैं।
इस प्रतिमा को स्थापित करना एक रणनीतिक संदेश के रूप में भी देखा जा रहा है, जो भारतीय सेना की ताकत और सीमा की सुरक्षा के प्रति उसकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है। हालांकि, स्थानीय और राष्ट्रीय प्रतीकों के बीच संतुलन बनाना एक चुनौतीपूर्ण मुद्दा बनकर उभरा है।
पहले भी लग चुकी हैं शिवाजी की प्रतिमाएं:
नवंबर 2023 में जम्मू-कश्मीर के लेफ्टिनेंट गवर्नर मनोज सिन्हा और महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने कश्मीर के कुपवाड़ा जिले में एलओसी के पास 10.5 फीट ऊंची शिवाजी की प्रतिमा का अनावरण किया था। यह प्रतिमा मुंबई से भेजी गई थी और 41 राष्ट्रीय राइफल्स (मराठा लाइट इन्फैंट्री) के मुख्यालय में लगाई गई।
दिसंबर 2022 में नेवी डे के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महाराष्ट्र के सिंधुदुर्ग में 35 फीट ऊंची शिवाजी की प्रतिमा का अनावरण किया था। हालांकि, यह प्रतिमा अगस्त 2023 में ढह गई।