Robotic Mules: भारतीय सेना के वेटरंस बोले- जब खच्चर बन जाते थे दोस्त! क्या भावनात्मक जुड़ाव दे पाएंगे रोबोटिक म्यूल्स?

By हरेंद्र चौधरी

Kindly Promote Us:

📍नई दिल्ली | 24 Jan, 2025, 10:05 PM

Robotic Mules: पुणे में सेना दिवस परेड के दौरान जब भारतीय सेना ने अपने नए रोबोटिक म्यूल्स यानी खच्चरों को पहली बार आम जनता के सामने पेश किया, तो नजारा देखने लायक था। दशकों तक भारतीय सेना के पहाड़ी इलाकों और दुर्गम रास्तों पर रसद पहुंचाने वाले खच्चरों ने अपना फर्ज निभाया। लेकिन अब भारतीय सेना ने लेटेस्ट टेक्नोलॉजी को अपनाते हुए अपनी ऐतिहासिक ‘म्यूल कॉर्प्स’ को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से लैस रोबोटिक खच्चरों से बदलने का फैसला किया है।

Robotic Mules: Can They Replace the Emotional Bond Veterans Shared with Army Mules?

Robotic Mules: खच्चरों ने हर चुनौती में दिया साथ

भारतीय सेना के लिए खच्चरों का योगदान असाधारण रहा है। बर्फीली ऊंचाइयों से लेकर घने जंगलों तक, खच्चरों ने अपनी पीठ पर राशन, गोला-बारूद, और दवाइयों का भार उठाया। चाहे वह कारगिल का युद्ध हो या सियाचिन की ठंडी बर्फीली हवाएं, खच्चरों ने हर चुनौती में सैनिकों का साथ दिया।

करीब दो शताब्दियों तक खच्चर भारतीय सेना के अहम सहयोगी रहे हैं। उन्होंने हिमालय की ऊंचाईयों से लेकर बर्मा के घने जंगलों और कठिन युद्धक्षेत्रों तक, रसद और हथियारों की आपूर्ति सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आज भी लगभग 4,000 खच्चरों की ताकत वाली म्यूल कॉर्प्स सेना की लॉजिस्टिक जरूरतों का अहम हिस्सा है।

सेना के एक पूर्व अधिकारी, कर्नल विक्रम सिंह, ने याद करते हुए कहा, “जब रास्ते बर्फ से ढके होते थे, तब खच्चरों की मदद के बिना सामान पहुंचाना असंभव था। ये जानवर हमारे साथी थे, जो कभी थकते नहीं थे। उनकी मेहनत और निष्ठा ने हमें कई बार युद्ध में जीत दिलाई।”

एडवाांस नेविगेशन सिस्टम से लैस हैं Robotic Mules

वहीं, अब सेना ने खच्चरों की जगह ‘मल्टी-यूटिलिटी लेग्ड इक्विपमेंट’ (MULE) नामक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से लैस रोबोट को अपनाया है। 51 किलो वजनी ये रोबोट एडवाांस नेविगेशन सिस्टम से लैस हैं, जो दुर्गम इलाकों में भी आसानी से काम कर सकते हैं। इन्हें राशन, दवाइयां, गोला-बारूद, और अन्य सामग्रियों को सैनिकों तक पहुंचाने के लिए डिजाइन किया गया है।

ये रोबोटिक म्यूल आम खच्चरों की तुलना में अधिक एफिशिएंसी एंड स्टेबिलिटी प्रदान करते हैं। इनकी ऑटोनोमी एंड एक्यूरेसी दुर्गम इलाकों में रसद आपूर्ति को सुरक्षित और प्रभावी बनाती है। जहां पारंपरिक खच्चर की रफ्तार औऱ क्षमता सीमित होती है, वहीं ये रोबोटिक इक्विपमेंट्स अधिक भार उठाने और तेजी से काम करने में सक्षम हैं।

जब खच्चर बन जाते थे दोस्त

लेकिन सेना के इस बदलाव कई पूर्व सैन्य अधिकारी भी भावुक हैं। सियाचिन में तैनात रहे हवलदार मोहन सिंह ने कहा, “खच्चर केवल सामान ढोने वाले जानवर नहीं थे। वे हमारी टीम का हिस्सा थे। जब रास्ता मुश्किल होता था और मौसम खराब होता था, तो वे हमारी आखिरी उम्मीद बनते थे।”

Robotic Mules: सेना दिवस परेड के बाद अब रिपब्लिक डे परेड में कर्तव्य पथ पर सेना के जवानों संग कदमताल करते दिखेंगे ये रोबोटिक खच्चर

उनका कहना था कि खच्चरों के साथ बिताए गए पल कभी भुलाए नहीं जा सकते। जब एक सैनिक खच्चर के साथ ऊंचाई पर चढ़ता था, तो दोनों के बीच एक अनकहा दोस्ताना संबंध बन जाता था।

रोबोटिक खच्चरों की एंट्री ने सेना में एक नई शुरुआत की है, लेकिन यह बदलाव परंपराओं के अंत का भी संकेत है। खच्चरों से जुड़ी कहानियां और उनकी वीरता अब इतिहास का हिस्सा बन जाएंगी। उनके साहस और निष्ठा की कहानियां पीढ़ियों तक सैनिकों की प्रेरणा रही हैं।

क्या भावनात्मक जुड़ाव दे पाएंगे रोबोट?

हालांकि, यह सवाल भी उठता है कि क्या रोबोट वही भावनात्मक जुड़ाव दे पाएंगे जो खच्चर देते थे? सैनिकों के लिए खच्चर केवल काम करने वाले साथी नहीं थे, बल्कि वे कठिन समय में उनके मानसिक सहारे के तौर पर भी काम करते थे।

Mountain Artillery: अब भारतीय सेना का हिस्सा नहीं रहेंगे खच्चर, ड्रोन, ATV और रोबोटिक म्यूल ने ली जगह, सेना ने ऐसे दी विदाई

जैसे-जैसे तकनीक आगे बढ़ रही है, युद्ध के मैदान में जानवरों की भूमिका कम होती जा रही है। रोबोटिक खच्चरों का इस्तेमाल न केवल रसद पहुंचाने में किया जाएगा, बल्कि भविष्य में यह निगरानी और अन्य सामरिक उद्देश्यों में भी सहायक हो सकते हैं।

Kindly Promote Us:

Leave a Comment Cancel reply

Share on WhatsApp
Exit mobile version