📍नई दिल्ली | 4 months ago
Pangong Tso: पूर्वी लद्दाख में पैंगोंग त्सो झील के किनारे 14,300 फीट की ऊंचाई पर छत्रपति शिवाजी महाराज की एक भव्य प्रतिमा का अनावरण किया गया है। 26 दिसंबर 2024 को इस ऐतिहासिक प्रतिमा का उद्घाटन भारतीय सेना के फायर एंड फ्यूरी कोर के जनरल ऑफिसर कमांडिंग (GOC) लेफ्टिनेंट जनरल हितेश भल्ला ने किया। वह मराठा लाइट इन्फैंट्री के कर्नल भी हैं। सेना के इस प्रयास को ‘कर्म क्षेत्र’ थीम से जोड़ कर देखा जा रहा है, जिसमें सेना को एक “धर्म के रक्षक” के रूप में दिखाया गया है, जो केवल राष्ट्र का रक्षक नहीं बल्कि न्याय की रक्षा और देश के मूल्यों की सुरक्षा के लिए लड़ती है।

सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व
श्री छत्रपति शिवाजी महाराज भारतीय इतिहास के ऐसे शासक थे, जिन्होंने न केवल युद्ध कौशल में महारत हासिल की बल्कि न्याय और शासन के उच्च मानदंड स्थापित किए। इस प्रतिमा के अनावरण का उद्देश्य न केवल उनके जीवन और उपलब्धियों को याद करना है, बल्कि वर्तमान समय में उनके मूल्यों को बढ़ावा देना भी है। वहीं यह प्रतिमा साहस, न्याय और भारत के महान शासक की विरासत का प्रतीक है।
SHRI CHHATRAPATI SHIVAJI MAHARAJ STATUE AT PANGONG TSO, LADAKH
On 26 Dec 2024, a majestic statue of Shri Chhatrapati Shivaji Maharaj was inaugurated on the banks of Pangong Tso at an altitude of 14,300 feet.
The towering symbol of valour, vision and unwavering justice was… pic.twitter.com/PWTVE7ndGX
— @firefurycorps_IA (@firefurycorps) December 28, 2024
Pangong Tso: लगातार ऐसी पहल कर रही है भारतीय सेना
यह आयोजन भारतीय सेना की फायर एंड फ्यूरी कॉर्प्स के प्रयासों का हिस्सा है, जो लद्दाख क्षेत्र में सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विकास को बढ़ावा देने के लिए लगातार काम कर रही है। इससे पहले इसी साल, पूर्वी लद्दाख के लुकुंग और चुशुल क्षेत्रों में भगवान बुद्ध की प्रतिमाओं का अनावरण किया गया था। यह पहल न केवल क्षेत्र के सांस्कृतिक मूल्यों को प्रोत्साहित करती है, बल्कि भारत के सीमावर्ती क्षेत्रों में स्थायित्व और शांति को भी बढ़ावा देती है।
इसी साल जुलाई में भारत ने चीन के खिलाफ एक मनोवैज्ञानिक ऑपरेशन (साइकोप) या साइकोलॉजिकल ऑपरेशन शुरू करते हुए पूर्वी लद्दाख में एलएसी से सटे दो हॉटस्पॉट-लुकुंग और चुशुल में भगवान बुद्ध की मूर्तियां स्थापित की थीं।

वहीं ये दोनों जगहें बेहद खास भी हैं। 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान लुकुंग और चुशुल, इन दोनों ही जगहों पर भीषण जंग हुई थी। भारतीय सैनिकों ने इन दोनों जगहों पर चीनियों को रोके रखा था। एक जुलाई को वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) के पास लुकुंग और चुशुल इलाकों में भूमिस्पर्श मुद्रा में बुद्ध की मूर्तियों का अनावरण किया गया। लुकुंग पैंगोंग त्सो के उत्तर-पश्चिमी किनारे ‘फिंगर 4’ के पास है, जबकि चुशुल में मूर्ति स्पैंगगुर गैप के सामने है, जो दोनों सेनाओं का सीमा मीटिंग प्वॉइंट है। मोल्डो में चीनी गैरिसन वहां से लगभग 8 किमी दूर है।
सूत्रों ने बताया कि इसी तरह की दो और प्रतिमाएं स्थापित की जाएंगी। इनमें से एक डेमचोक में स्थापित की जाएगी, जबकि दूसरी प्रतिमा के लिए अभी जगह का चयन नहीं किया गया है।
सेना के सूत्रों ने उस वक्त बताया था, “फायर एंड फ्यूरी कोर ने सीमावर्ती क्षेत्र में पर्यटन को बढ़ावा देने, सामाजिक-आर्थिक स्थिति को उन्नत करने और प्रमुख सीमावर्ती गांवों के आध्यात्मिक मूल्यों को सुदृढ़ करने के लिए लद्दाख के लोगों के साथ भारतीय सेना के लंबे सहयोग की स्मृति में लुकुंग और चुशुल के सीमावर्ती गांवों में ध्यान कॉर्नर्स को समर्पित किया है। यह पूर्वी लद्दाख के अग्रिम क्षेत्रों में एकजुटता को बढ़ावा देने, आध्यात्मिक मूल्यों और शाश्वत शांति को बनाए रखने के लिए वसुधैव कुटुम्बकम (दुनिया एक परिवार है) के सार को कायम रखने की पहल है।”
भगवान बुद्ध की मूर्तियों को “भूमिस्पर्श मुद्रा” में दिखाया गया है। स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के न्यूज़लेटर “महान बुद्ध की मुद्राएं: प्रतीकात्मक इशारे और मुद्राएं” में “भूमिस्पर्श मुद्रा” को “पृथ्वी को छूना” बताया गया है। इसमें आगे कहा गया है, “यह बोधि वृक्ष के नीचे बुद्ध के ज्ञानोदय का प्रतीक है, जब उन्होंने पृथ्वी देवी स्थावरा को अपने ज्ञानोदय की गवाही देने के लिए बुलाया था।”
सेना प्रमुख के कमरे में Pangong Tso की पेंटिंग
इससे पहले इसी महीने 16 दिसंबर को विजय दिवस से पहले सेना प्रमुख के कमरे से 1971 में पाकिस्तानी सेना के सरेंडर वाली पेंटिंग हटा कर एक दूसरी पेंटिंग लगई गई थी। जिसकी काफी आलोचना भी हुई थी। बाद उस पेंटिंग को दिल्ली में मानेकशॉ सेंटर में स्थापित किया गया था। वहीं सेना प्रमुख के कमरे में लगााई गई नई पेंटिंग में पेंगोंग त्सो को दिखाया गया है। पेंटिंग बर्फ से ढकी पहाड़ियां पृष्ठभूमि में दिख रही हैं, दाएं ओर पूर्वी लद्दाख की पैंगोंग त्सो झील और बाएं ओर गरुड़ा और श्री कृष्ण की रथ, साथ ही चाणक्य और आधुनिक उपकरण जैसे टैंक, ऑल-टेरेन व्हीकल्स, इन्फैंट्री व्हीकल्स, पेट्रोल बोट्स, स्वदेशी लाइट कॉम्बेट हेलीकॉप्टर्स और एच-64 अपाचे अटैक हेलीकॉप्टर्स दिखाए गए हैं।
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नई पेंटिंग में माइथोलॉजिकल और फ्यूचरिस्टिक तत्वों का समावेश है। इसमें एक ऋषि, जिन्हें चाणक्य का रूप दिया गया है, आक्रोशित मुद्रा में आदेश देते हुए दिखाई देते हैं। उनके पीछे महाभारत का रथ, श्रीकृष्ण और अर्जुन का प्रतीक, और ऊपर गरुड़ जैसी संरचना नजर आती है।
पेंटिंग के निचले हिस्से में आधुनिक सैन्य उपकरण जैसे T-90 टैंक, अपाचे हेलीकॉप्टर, ड्रोन और पैरा-कमांडो दर्शाए गए हैं। यह पेंटिंग भविष्य की सेना की तकनीकी क्षमताओं और आधुनिक युद्ध के लिए तैयार भारत का संदेश देने की कोशिश करती है।
सेना के सूत्रों ने कहा कि नई पेंटिंग, ‘कर्म क्षेत्र– कर्मों का क्षेत्र’, जिसे 28 मद्रास रेजिमेंट के लेफ्टिनेंट कर्नल थॉमस जैकब ने बनाई है। इस पेंटिंग में सेना को एक “धर्म के रक्षक” के रूप में दर्शाया गया है, जो केवल राष्ट्र का रक्षक नहीं बल्कि न्याय की रक्षा और देश के मूल्यों की सुरक्षा के लिए लड़ती है। यह पेंटिंग बताती है कि सेना तकनीकी रूप से कितनी एडवांस हो गई है।
भारतीय सेना और भारत की सांस्कृतिक विरासत को मिलेगी मजबूती
सेना सूत्रों के मुताबिक भारत सरकार के वाइब्रेंट विलेज प्रोग्राम ने सीमावर्ती गांवों में तेजी से विकास किया है। अरुणाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर के केरन सेक्टर जैसे क्षेत्रों में इस कार्यक्रम ने अच्छे परिणाम दिए हैं। यह पहल न केवल इंफ्रास्ट्रक्चर में सुधार कर रही है, बल्कि पर्यटन को भी बढ़ावा दे रही है।
सैन्य सूत्रों के मुताबिक छत्रपति शिवाजी महाराज की प्रतिमा और भगवान बुद्ध की मूर्तियों का अनावरण भारतीय सेना और भारत की सांस्कृतिक विरासत के बीच एक मजबूत संबंध को दर्शाता है। ये पहलें न केवल क्षेत्र में मनोबल बढ़ाने का काम करती हैं, बल्कि एकता, शांति और सांस्कृतिक मूल्यों को भी बढ़ावा देती हैं। यह प्रयास दिखाता है कि कैसे भारत अपनी सैन्य ताकत को सांस्कृतिक प्रतीकों के साथ जोड़कर एक सशक्त संदेश दे रहा है। छत्रपति शिवाजी महाराज की प्रतिमा और भगवान बुद्ध की मूर्तियां लद्दाख में न केवल मनोवैज्ञानिक ताकत का प्रतीक हैं, बल्कि एक मजबूत और आत्मनिर्भर भारत की झलक भी प्रस्तुत करती हैं।