📍नई दिल्ली | 3 months ago
Indian Army: भारतीय सेना में सेवा करने का सपना बहुत से युवाओं का होता है, लेकिन कुछ ही लोग अपने सपनों को साकार कर पाते हैं। मेजर राधिका सेन ऐसी ही एक शख्सियत हैं, जिन्होंने एक शानदार करियर विकल्प को छोड़कर देश की सेवा को प्राथमिकता दी। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) बॉम्बे से बायोटेक्नोलॉजी में मास्टर डिग्री हासिल करने के बावजूद उन्होंने कॉर्पोरेट दुनिया की ऊंचाइयों को छोड़कर भारतीय सेना की वर्दी पहनने का फैसला किया। गणतंत्र दिवस परेड के दौरान रक्षा समाचार डॉट कॉम ने मेजर राधिका से मुलाकात भी की थी।

हिमाचल प्रदेश की रहने वाली भारतीय सेना की मेजर राधिका सेन को हाल ही में संयुक्त राष्ट्र (United Nations) के प्रतिष्ठित ‘मिलिट्री जेंडर एडवोकेट ऑफ द ईयर’ (United Nations Gender Advocate Award) पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।
Indian Army: आईआईटी बॉम्बे से ली बायोटेक्नोलॉजी में मास्टर डिग्री
मेजर राधिका सेन का जन्म 1993 में हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले के सुंदरनगर में हुआ था। वह बचपन से ही पढ़ाई में अव्वल रहीं और हमेशा नई ऊंचाइयों को छूने का सपना देखा। उनकी प्रारंभिक शिक्षा सेंट मैरी स्कूल, सुंदरनगर में हुई, जिसके बाद उन्होंने माउंट कार्मेल स्कूल, चंडीगढ़ से आगे की पढ़ाई की। विज्ञान में रुचि रखने वाली राधिका ने बायोटेक्नोलॉजी में मास्टर डिग्री प्राप्त करने के लिए आईआईटी बॉम्बे में दाखिला लिया।
राधिका के माता-पिता भी शिक्षा के क्षेत्र से जुड़े रहे। उनके पिता ओंकार सेन, एनआईटी हमीरपुर में कार्यरत थे, जबकि उनकी माता निर्मला सेन चौहार घाटी के कथोग स्कूल में प्रधानाचार्य थीं। माता-पिता के आदर्शों और मेहनत की प्रेरणा से उन्होंने अपने लक्ष्य को पूरा किया।
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आईआईटी बॉम्बे से उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद, राधिका के पास कॉर्पोरेट जगत में एक शानदार करियर बनाने के कई अवसर थे, लेकिन उन्होंने देशसेवा का मार्ग चुना। भारतीय सेना में शामिल होने की उनकी इच्छा बचपन से ही थी, जिसे उन्होंने हकीकत में बदल दिया।
Indian Army: 2016 में भारतीय सेना में बनीं लेफ्टिनेंट
राधिका ने 2015 में चेन्नई स्थित ऑफिसर्स ट्रेनिंग एकेडमी (OTA) में प्रशिक्षण लिया और सफलतापूर्वक इसे पूरा करने के बाद 2016 में भारतीय सेना में लेफ्टिनेंट के पद पर नियुक्त हुईं। अपनी सेवा के दौरान, उन्होंने जम्मू-कश्मीर, लद्दाख और सिक्किम जैसे विभिन्न क्षेत्रों में तैनाती के दौरान महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां निभाईं।
राधिका ने भारतीय सेना में आठ साल पहले अपनी सेवाएं शुरू कीं और अपने समर्पण व कड़ी मेहनत से न केवल देश का गौरव बढ़ाया बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी पहचान बनाई। उन्होंने विभिन्न सैन्य अभियानों में भाग लिया और कठिन परिस्थितियों में भी अपने कर्तव्यों का निष्ठा से पालन किया।
संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन में योगदान
मेजर राधिका सेन के इन उल्लेखनीय योगदानों के लिए, उन्हें मई 2024 में संयुक्त राष्ट्र के ‘मिलिट्री जेंडर एडवोकेट ऑफ द ईयर’ (United Nations Gender Advocate Award) पुरस्कार से सम्मानित किया गया। संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने उन्हें “सच्ची नेता और रोल मॉडल” के रूप में प्रशंसा की। यह पुरस्कार महिलाओं की समानता और शांति रक्षा अभियानों में उनके अतुलनीय योगदान के लिए दिया जाता है। राधिका इस पुरस्कार को प्राप्त करने वाली दूसरी भारतीय शांति सैनिक हैं; उनसे पहले मेजर सुमन गवानी को 2019 में यह सम्मान मिला था।
मार्च 2023 में, मेजर राधिका सेन को डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कॉन्गो (DRC) में संयुक्त राष्ट्र संगठन स्थिरीकरण मिशन (MONUSCO) के तहत तैनात किया गया था। यहां उन्होंने भारतीय रैपिड डिप्लॉयमेंट बटालियन की एंगेजमेंट प्लाटून कमांडर के रूप में सेवा की।
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कई युद्धग्रस्त इलाकों में जहां सुरक्षा के हालात नाजुक थे, वहां मेजर राधिका न केवल अपनी टीम का सफलतापूर्वक नेतृत्व दिया, बल्कि महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कई प्रभावी कदम भी उठाए। उन्होंने वहां लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाए और स्थानीय महिलाओं को सशक्त बनाने के प्रयास किए।
उन्होंने कम्युनिटी अलर्ट नेटवर्क की स्थापना की, जिससे स्थानीय लोग अपनी सुरक्षा और मानवीय चिंताओं को साझा कर सकें। साथ ही, उन्होंने बच्चों के लिए अंग्रेजी कक्षाओं और वयस्कों के लिए स्वास्थ्य, लिंग और व्यावसायिक प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन किया, जिससे महिलाओं को अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाने के लिए प्रेरित किया।
मेजर राधिका सेन की कहानी उन सभी युवाओं के लिए प्रेरणादायक है, जो अपने सपनों को पूरा करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। उन्होंने यह साबित किया कि अगर इच्छाशक्ति मजबूत हो तो किसी भी चुनौती को पार किया जा सकता है।
उनकी सफलता न केवल उनकी मेहनत का परिणाम है, बल्कि यह इस बात का भी प्रमाण है कि भारतीय महिलाएं किसी भी क्षेत्र में पीछे नहीं हैं। वह भारत की उन बेटियों में से हैं, जिन्होंने अपने कर्मों से यह दिखा दिया कि महिलाओं को अब केवल सीमाओं में नहीं बांधा जा सकता।