Anti-Drone Ammunition: ‘ड्रोन वॉरफेयर’ से निपटने को तैयार भारतीय सेना, ZU-23 एंटी-एयरक्राफ्ट गन को देश में ही मिलेगा अपडेटेड गोला-बारूद

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📍नई दिल्ली | 4 months ago

Anti-Drone Ammunition: दुनियाभर में चल रहे हालिया युद्धों में ड्रोन के इस्तेमाल को लेकर तेजी देखी गई है। ड्रोन छोटे आकार, कम लागत और एडवांस टेक्नोलॉजी के चलते दुश्मन के एयर डिफेंस सिस्टम को कमजोर करने और सटीक हमले करने में सक्षम हैं। इन खतरों से निपटने के लिए भारतीय सेना अब बड़ी तैयारी कर रही है। भारतीय रक्षा मंत्रालय ने भारतीय उद्योगों से 23mm एंटी-ड्रोन गोला-बारूद की सप्लाई के लिए रिक्वेस्ट फॉर प्रपोजल (RFI) जारी किया है। (RFI) जारी किया है। भारतीय सेना ड्रोन और लोइटरिंग म्यूनिशन जैसे हवाई खतरों से निपटने के लिए अब बड़ी तैयारी में जुट गई है।

Anti-Drone Ammunition: Indian Army issued RFI for manufacturing of ZU-23 mm Anti-Drone ammunition
Shilka एंटी-एयरक्राफ्ट गन
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क्या है ZSU-23-4 Shilka एंटी-एयरक्राफ्ट गन

ZSU-23-4 शिल्का वेपन सिस्टम एक ऑटोमैटिक एंटी-एयरक्राफ्ट गन सिस्टम है, जिसे सोवियत संघ ने डिजाइन किया था। इसमें चार 23 मिमी की ऑटोमौटिक तोपें (2A7) लगी हैं, जो तेज रफ्तार से फायरिंग करने और कम ऊंचाई पर उड़ने वाले हवाई खतरों जैसे लड़ाकू विमान, हेलीकॉप्टर और ड्रोन को मार गिरा सकती हैं। इसकी प्रभावी फायरिंग रेंज 2.5 किमी है और फायरिंग स्पीड 4,000 राउंड प्रति मिनट तक पहुंच सकती है।

शिल्का प्रणाली में इन-बिल्ट रडार और इलेक्ट्रो-ऑप्टिकल फायर कंट्रोल सिस्टम है, जो दिन और रात के किसी भी समय दुश्मन के लक्ष्यों को ट्रैक कर सकता है। इसे किसी भी गाड़ी पर लगाया जा सकता है, जिससे इसे आसानी से सीमावर्ती क्षेत्रों और ऊंचाई वाले स्थानों पर तैनात किया जा सकता है।

Anti-Drone Ammunition: Indian Army issued RFI for manufacturing of ZU-23 mm Anti-Drone ammunition
ZU 23mm

Anti-Drone Ammunition: क्या है ZU 23mm सिस्टम

ZU 23mm सिस्टम एक डबल बैरल एंटी-एयरक्राफ्ट ऑटोकैनन है, जिसे रूसी मूल का माना जाता है। इसका पूरा नाम “जेनिटनाया उस्तानोवका” है। भारतीय सेना के पास लगभग 470 ZU-23 सिस्टम हैं, जिन्हें सोवियत संघ से खरीदा गया था और भारत में ही अपग्रेड किया गया। इस अपग्रेड में इलेक्ट्रो-ऑप्टिकल फायर कंट्रोल सिस्टम जोड़ा गया, जो दुश्मन को ट्रैक कर उसकी पहचान करने और सटीक हमला करने की क्षमता प्रदान करता है।

यह सिस्टम कम ऊंचाई पर उड़ने वाले हवाई खतरों को खत्म करने में सक्षम है। इसका काम करने का तरीका “गैस ऑपरेटेड एक्शन” पर आधारित है। इस ऑटोकैनन का वजन लगभग 0.95 टन है, जबकि इसकी लंबाई 10 फीट और बैरल की लंबाई 6.5 फीट है, जो इसे लंबी दूरी तक मारक क्षमता प्रदान करती है। पूरे सिस्टम की चौड़ाई 9.5 फीट और ऊंचाई 4 फीट है।

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इस सिस्टम को संचालित करने के लिए दो लोगों की जरूरत होती है- एक गनर और एक कमांडर। यह 23 मिमी कैलिबर के गोले दागने में सक्षम है और माइनस 10 डिग्री से प्लस 90 डिग्री तक के कोण पर हमला कर सकता है। इसके अलावा, यह 360 डिग्री घूमकर दुश्मन के हर दिशा में निशाना साध सकता है।

यह सिस्टम एक मिनट में 2,000 गोलियां दागने की क्षमता रखता है। इसके गोले 50 राउंड की बेल्ट में लोड किए जाते हैं। इसकी मारक दूरी ढाई किलोमीटर तक होती है, जहां यह सटीकता के साथ हमला कर सकता है।

ZU 23mm सिस्टम को किसी भी गाड़ी पर लगाया जा सकता है, जिससे इसे आसानी से सीमा पर तैनात किया जा सकता है। इसे ट्रक से बांधकर या विमान में लोड करके ऊंचाई वाले स्थानों तक पहुंचाया जा सकता है।

भारत में इस सिस्टम के 320 यूनिट खींचकर तैनात करने वाले सिस्टम हैं, जबकि बाकी ट्रकों पर लगाए गए हैं। यह बहुमुखी सिस्टम दुश्मन के हवाई खतरों से निपटने के लिए एक महत्वपूर्ण हथियार है, जो सेना की ताकत को बढ़ाता है।

Anti-Drone Ammunition: क्यों चाहिए 23mm एंटी-ड्रोन गोला-बारूद?

23mm एंटी-ड्रोन गोला-बारूद मौजूदा ZU-23 और शिल्का हथियार प्रणालियों जैसे एंटी-एयरक्राफ्ट गन के साथ इस्तेमाल के लिए डिज़ाइन किया गया है। लेकिन इनसे दागे जाने वाले मौजूदा गोला-बारूद के हिट करने का संभावित औसत काफी कम है। इन गनों के ऑपरेट करने में इंसानों की भूमिका होने की वजह से सटीकता की कमी रहती है। इस कमी को पूरा करने के लिए 23 मिमी एंटी-ड्रोन गोला-बारूद तैयार किया जा रहा है, जिसमें आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल होगा। बता दें कि इन एंटी-एयरक्राफ्ट गन में 23 मिमी आर्मर पियर्सिंग इनसेन्डियरी ट्रेसर (एपीआईटी) और हाई एक्सप्लोसिव इनसेन्डियरी ट्रेसर (एचईआईटी) एम्युनिशन का इस्तेमाल किया जाता है।

यहां देखें सेना की तरफ से जारी RFI

ये गोला-बारूद छोटे आकार और कम रडार क्रॉस-सेक्शन वाले ड्रोन को नष्ट करने में सक्षम होने चाहिए। मौजूदा गोला-बारूद की तुलना में इसमें हाई “हिट प्रॉबेबिलिटी” होगी, जिससे यह मॉर्डन वारफेयर में ज्यादा प्रभावी साबित होगा। भारतीय सेना के पास ZU 23 मिमी और शिल्का हथियार प्रणाली जैसे एंटी-एयरक्राफ्ट गन हैं, लेकिन इनसे दागे जाने वाले मौजूदा गोला-बारूद का हिट करने का संभावित औसत कम है।

Anti-Drone Ammunition: होनी चाहिए ये खूबियां

23 मिमी एंटी-ड्रोन गोला-बारूद का डिज़ाइन भारतीय सेना की जरूरतों और मॉर्डन वारफेयर की चुनौतियों को ध्यान में रखकर किया गया है। इस गोला-बारूद को ZU 23 मिमी और शिल्का सिस्टम जैसे मौजूदा हथियारों के साथ इस्तेमाल किया जा सकेगा।

इन गोला-बारूद में एक प्रॉक्सिमिटी या टाइम्ड फ्यूज सिस्टम होगा, जैसे ही यह ड्रोन के पास पहुंचेगा यह सक्रिय हो जाएगा। टाइम्ड फ्यूज को पहले से प्रोग्राम किया जाएगा ताकि यह निश्चित दूरी (जैसे 1000 मीटर, 1500 मीटर, 2500 मीटर आदि) पर विस्फोट कर सके। इससे दुश्मन के ड्रोन को नष्ट करने में आसानी होगी।

प्री-फ्रैगमेंटेड शेल का डिज़ाइन इस तरह से तैयार किया गया है कि इसके टुकड़े बड़े क्षेत्र में फैलकर दुश्मन के ड्रोन को अधिकतम नुकसान पहुंचा सकें। ये टुकड़े उचित आकार, संख्या और डेनसिटी में होंगे, जिससे ड्रोन को नष्ट करने की संभावना बढ़ जाएगी।

वहीं, इस गोला-बारूद की शेल्फ लाइफ कम से कम 10 साल तक होनी चाहिए। इसका मतलब यह है कि यह लंबे समय तक बिना किसी खराबी के स्टोरेज में रखा जा सकता है। इससे भारतीय सेना की लॉजिस्टिक्स और कॉस्ट मैनेजमेंट में भी मदद मिलेगी।

साथ ही, यह गोला-बारूद -30°C से +45°C के बीच के तापमान में पूरी क्षमता से काम करने की खूबी होनी चाहिए। इसके अलावा, इसे बिना किसी स्पेशल स्टोरेज सिस्टम के कठिन परिस्थितियों में भी सुरक्षित रखा जा सके। भारत की जलवायु और सैन्य हालातों को देखते हुए यह बेहद जरूरी है।

रूस ने बनाया “ड्रोन किलर” सिस्टम

बता दें कि जेडएसयू-23-4 शिल्का सिस्टम का उपयोग पहले से ही रूसी सेना में किया जाता रहा है। इसकी फायरिंग रेंज 2.5 किमी है और यह तेजी से फायर कर सकता है। वहीं यूक्रेन के साथ चल रहे युद्ध को देखते हुए रूस ने “ड्रोन किलर” सिस्टम लॉन्च किया है। रूस ने ड्रोन से मुकाबला करने के लिए बीटीआर-82 व्हीकल पर ज़ेडएसयू-23-4 शिल्का सिस्टम की दो 23 मिमी एंटी-एयरक्राफ्ट गन लगााई हैं। यह सिस्टम विशेष रूप से ड्रोन जैसे आधुनिक हवाई खतरों से निपटने के लिए डिजाइन किया गया है।

‘मेक इन इंडिया’ पहल को बढ़ावा

रक्षा मंत्रालय के इस प्रस्ताव के तहत, सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों (DPSUs) और निजी उद्योगों को अपने-अपने सॉल्यूशंस पेश करने का मौका दिया गया है। मंत्रालय ने कंपनियों से आग्रह किया है कि वे इसमें हिस्सा लें और भारतीय सेना की जरूरतों को पूरा करने के लिए तकनीकी जानकारी और प्रपोजल साझा करें।

भारतीय सेना ने इस परियोजना के लिए एक “सिंगल स्टेज-टू बिड सिस्टम” अपनाया है। इसका मतलब है कि टेक्निकल और कॉमर्शियल प्रपोजल अलग-अलग लिफाफों में जमा किए जाएंगे। सभी तकनीकी प्रस्तावों का मूल्यांकन एक टेक्निकल इवैल्यूएशन कमेटी द्वारा किया जाएगा। वहीं, आरएफआई जमा करने की अंतिम तिथि 17 फरवरी 2025 तय की गई है।

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