1971 War Surrender Painting: थम नहीं रहा है पेंटिंग की जगह बदलने पर विवाद, रिटायर्ड ब्रिगेडियर ने सेना पर उठाए सवाल, कहा- मानेकशॉ सेंटर का बदलें नाम

By हरेंद्र चौधरी

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📍नई दिल्ली | 17 Dec, 2024, 12:25 PM

1971 War Surrender Painting: 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में पाकिस्तान के आत्मसमर्पण की ऐतिहासिक तस्वीर को भारतीय सेना के चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ (COAS) लाउंज से हटाने का मामला थमने का नाम नहीं ले रहा है। भले ही सेना ने 16 दिसंबर विजय दिवस के मौके पर इस एतिहासिक पेंटिंग को मानेकशॉ सेंटर में स्थापित कर दिया है, लेकिन इस फैसले पर वेटरंस अभी भी नाराज हैं। भारतीय पूर्व सेवा लीग (Indian Ex-Services League) के अध्यक्ष और रिटायर्ड ब्रिगेडियर इंद्र मोहन सिंह ने इस फैसले पर कड़ी आपत्ति जताई है। उन्होंने इसे न केवल इतिहास का अपमान बताया, बल्कि सेना के नेतृत्व पर गंभीर सवाल उठाए हैं।

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ब्रिगेडियर इंद्र मोहन सिंह ने 16 दिसंबर, 2024 को रक्षा मंत्रालय और तीनों सेनाओं के प्रमुखों को एक पत्र लिखकर अपनी नाराजगी जाहिर की। उनका कहना है कि यह तस्वीर केवल एक पेंटिंग नहीं है, बल्कि भारतीय सैन्य इतिहास का गौरवशाली प्रतीक है।

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1971 की पेंटिंग का ऐतिहासिक महत्व

1971 के युद्ध में भारतीय सेना ने पाकिस्तान को हराकर बांग्लादेश को आजाद कराया था। इस युद्ध के दौरान ढाका में भारतीय सेना के लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के सामने पाकिस्तान के जनरल ए ए के नियाज़ी ने आत्मसमर्पण के दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए थे। यह तस्वीर उस ऐतिहासिक क्षणों को दर्शाती है, जो भारत के लिए गर्व के पल थे।

ब्रिगेडियर इंद्र मोहन सिंह ने इस तस्वीर को हटाने पर कड़ा ऐतराज जताते हुए इसे “इतिहास को मिटाने की कोशिश” बताया। उन्होंने कहा, “द्वितीय विश्व युद्ध के बाद यह पहली ऐसी जीत थी, जहां एक देश ने औपचारिक रूप से आत्मसमर्पण किया। इस तस्वीर को हटाना उन सैनिकों के बलिदान का अपमान है, जिन्होंने इस ऐतिहासिक विजय को संभव बनाया।”

नई पेंटिंग पर सवाल

तस्वीर को हटाकर, उसकी जगह एक नई पेंटिंग लगाने के फैसले को लेकर ब्रिगेडियर सिंह ने तीखी आलोचना की। उन्होंने कहा, “नई पेंटिंग ऐसी लगती है जैसे किसी स्कूल स्तर की प्रतियोगिता में किसी बच्चे ने बनाई हो। इसमें पैंगोंग त्सो झील, पहाड़ और कुछ सैन्य हथियार और इक्विपमेंट्स दिखाए गए हैं। लेकिन इसका क्या महत्व है? हम तो फिंगर 4 से 8 तक अपने पेट्रोलिंग के अधिकार भी खो चुके हैं।”

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इसके अलावा, पेंटिंग में शामिल चाणक्य और महाभारत के रथ के चित्रण पर भी उन्होंने सवाल उठाए। उन्होंने तंज कसते हुए पूछा, “सशस्त्र बलों में धर्म को लाने की कोशिश क्यों की जा रही है? हमारी सेना की ताकत उसकी धर्मनिरपेक्षता और एकता में है। क्या हम अपनी जड़ों को मिटाना चाहते हैं?”

‘फोटो को IESL को सौंपें’

ब्रिगेडियर सिंह ने यह भी सुझाव दिया कि हटाई गई 1971 की ऐतिहासिक तस्वीर को भारतीय पूर्व सेवा लीग (IESL) को भेंट कर दिया जाए। उन्होंने कहा, “हम इस तस्वीर को अपने मुख्यालय में सम्मानजनक स्थान देंगे। यह तस्वीर हमारे लिए केवल इतिहास का हिस्सा नहीं है, बल्कि उन सैनिकों का स्मारक है, जिन्होंने देश के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया।”

सेना के नेतृत्व पर निशाना

ब्रिगेडियर सिंह ने सेना के वर्तमान नेतृत्व पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा, “आज की पीढ़ी के सैन्य अधिकारी फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ जैसी ऊंचाई कभी नहीं छू पाएंगे।”

उन्होंने सेना के कुछ हालिया फैसलों और राजनीतिक नेताओं के वादों पर कटाक्ष करते हुए कहा, “हरियाणा चुनाव के दौरान हमारे वरिष्ठ नेताओं ने कहा था कि छह महीने के भीतर हम पीओके (पाक अधिकृत कश्मीर) को वापस ले लेंगे। लेकिन यह भी एक सपना ही रह जाएगा।”

वेटरंस की अनदेखी

भारतीय पूर्व सेवा लीग (IESL) के अध्यक्ष ने यह भी आरोप लगाया कि सरकार और सेना के वरिष्ठ अधिकारी दिग्गज सैनिकों की चिंताओं को अनदेखा कर रहे हैं। उन्होंने कहा, “इस साल तीन चीफ सेवानिवृत्त हुए, लेकिन किसी ने भी IESL या अन्य वेटरन संगठनों द्वारा उठाए गए मुद्दों पर ध्यान नहीं दिया। यह हमारे लिए निराशाजनक है।”

रिटायर्ड ब्रिगेडियर सिंह ने अपने पत्र में यह भी कहा कि “फोटो-फिनिश” हमेशा प्रशंसा के योग्य होती है। उन्होंने लिखा, “चाहे वह जीत का क्षण हो या मामूली अंतर से हारने वाला पल, इतिहास को खत्म करना अक्षम्य है।”

मानेकशॉ सेंटर का नाम बदलें

उन्होंने फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ के योगदान और उनकी प्रतिमा का उल्लेख करते हुए चुटकी ली, “अगर इतिहास को बदलना ही है, तो मानेकशॉ सेंटर का नाम बदलकर ‘चाणक्य सेंटर’ क्यों न कर दिया जाए? और उनकी प्रतिमा की जगह चाणक्य की मूर्ति लगा दी जाए।” ब्रिगेडियर इंद्र मोहन सिंह ने अपने पत्र के अंत में सेना और रक्षा मंत्रालय से कहा, “आपमें से कोई भी फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ जैसा कद कभी हासिल नहीं कर पाएगा।”

लगातार उठ रही है नाराजगी

विजय दिवस जैसे पवित्र दिन पर इस बदलाव को लेकर कई सवाल उठ रहे हैं। पूर्व सैन्य अधिकारी और 1971 के युद्ध के दिग्गज इस बदलाव को अनुचित मानते हैं। एडमिरल अरुण प्रकाश और जनरल एच.एस. पनाग जैसे अधिकारियों ने नई पेंटिंग को लेकर अपनी असहमति जाहिर की है। उनका कहना है कि यह बदलाव न केवल इतिहास की अनदेखी करता है बल्कि सैनिकों की कुर्बानी को भी कम करके आंकता है। इस बदलाव के समय को भी लेकर सवाल उठ रहे हैं। 16 दिसंबर, विजय दिवस, जब पूरी दुनिया भारतीय सेना की इस महान जीत को याद करती है, ऐसे समय में पेंटिंग बदलना कई लोगों के लिए असंवेदनशील कदम माना जा रहा है।

रक्षा समाचार डॉट ने उठाया था मुद्दा

रक्षा समाचार डॉट कॉम ने इस मुद्दे को मुरजोर से उठाया था। पूर्व सैन्य अधिकारियों और रक्षा समाचार.कॉम के सवाल उठाने के बाद 16 दिसंबर को विजय दिवस के मौके पर सेना ने उस एतिहासिक पेंटिंग को नई जगह स्थापित किया।

सेना ने अपनी पोस्ट में लिखा,  “विजय दिवस के मौके पर, जनरल उपेन्द्र द्विवेदी COAS और AWWA की प्रेसिडेंट सुनीता द्विवेदी के साथ , 1971 की आत्मसमर्पण पेंटिंग को उसके सबसे उपयुक्त स्थान, मानेकशॉ सेंटर में स्थापित किया। यह सेंटर 1971 युद्ध के आर्किटेक्ट और नायक, फील्ड मार्शल सम मानेकशॉ के नाम पर है। इस अवसर पर भारतीय सेना के वरिष्ठ अधिकारी और सेवानिवृत्त अधिकारी उपस्थित थे।”

“यह पेंटिंग भारतीय सशस्त्र बलों की सबसे बड़ी सैन्य जीतों में से एक का प्रतीक है और भारत की न्याय और मानवता के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाती है। मानेकशॉ सेंटर में इसे प्रतिष्ठापित करने के बाद, यहां आने वाले गणमान्य व्यक्तियों और दर्शकों को इसका दर्शन करने का अवसर मिलेगा।”

किसने बनाई है नई पेंटिंग

सेना के सूत्रों ने कहा कि नई पेंटिंग, ‘कर्म क्षेत्र– कर्मों का क्षेत्र’, जिसे 28 मद्रास रेजिमेंट के लेफ्टिनेंट कर्नल थॉमस जैकब ने बनाई है। इस पेंटिंग में सेना को एक “धर्म के रक्षक” के रूप में दर्शाया गया है, जो केवल राष्ट्र का रक्षक नहीं बल्कि न्याय की रक्षा और देश के मूल्यों की सुरक्षा के लिए लड़ती है। यह पेंटिंग बताती है कि सेना तकनीकी रूप से कितनी एडवांस हो गई है। पेंटिंग बर्फ से ढकी पहाड़ियां पृष्ठभूमि में दिख रही हैं, दाएं ओर पूर्वी लद्दाख की पैंगोंग त्सो झील और बाएं ओर गरुड़ा और श्री कृष्ण की रथ, साथ ही चाणक्य और आधुनिक उपकरण जैसे टैंक, ऑल-टेरेन व्हीकल्स, इन्फैंट्री व्हीकल्स, पेट्रोल बोट्स, स्वदेशी लाइट कॉम्बेट हेलीकॉप्टर्स और एच-64 अपाचे अटैक हेलीकॉप्टर्स दिखाए गए हैं।

वहीं, पुरानी पेंटिंग, जो सेना मुख्यालय के चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ के कार्यालय में प्रमुखता से लगाई गई थी, 1971 की युद्ध-विजय को दर्शाती थी। यह वही पेंटिंग है, जो 1971 की जीत भारतीय सेना की सबसे बड़ी सैन्य उपलब्धियों में से एक थी। इस युद्ध में फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ, जनरल अरोड़ा और उनके साथियों की रणनीतिक कुशलता ने एक नया इतिहास रच दिया। इस जीत ने न केवल पाकिस्तान को दो टुकड़ों में बांट दिया बल्कि यह भी साबित कर दिया कि भारतीय सेना के जज्बे और नेतृत्व के सामने कोई टिक नहीं सकता।

नई पेंटिंग: फ्यूचरिस्टिक दृष्टिकोण या इतिहास से दूर?

हाल ही में, इस ऐतिहासिक पेंटिंग को हटा कर एक नई पेंटिंग लगाई गई है। नई पेंटिंग में माइथोलॉजिकल और फ्यूचरिस्टिक तत्वों का समावेश है। इसमें एक ऋषि, जिन्हें चाणक्य का रूप दिया गया है, आक्रोशित मुद्रा में आदेश देते हुए दिखाई देते हैं। उनके पीछे महाभारत का रथ, श्रीकृष्ण और अर्जुन का प्रतीक, और ऊपर गरुड़ जैसी संरचना नजर आती है।

पेंटिंग के निचले हिस्से में आधुनिक सैन्य उपकरण जैसे T-90 टैंक, अपाचे हेलीकॉप्टर, ड्रोन और पैरा-कमांडो दर्शाए गए हैं। यह पेंटिंग भविष्य की सेना की तकनीकी क्षमताओं और आधुनिक युद्ध के लिए तैयार भारत का संदेश देने की कोशिश करती है।

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