1962 War Hero Jaswant Singh Rawat: 1962 के भारत-चीन युद्ध के नायक जसवंत सिंह रावत, जिन्होंने 300 से अधिक चीनी सैनिकों को मार गिराया

By हरेंद्र चौधरी

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📍नई दिल्ली | 19 Nov, 2024, 12:38 PM

1962 War Hero Jaswant Singh Rawat: 1962 के भारत-चीन युद्ध में भारतीय सेना के वीर सैनिक जसवंत सिंह रावत का नाम आज भी साहस और बलिदान का प्रतीक माना जाता है। कठिन हालात में अपने प्राणों की आहुति देकर उन्होंने अकेले ही 300 से ज्यादा चीनी सैनिकों का सामना किया और भारत की सैन्य परंपरा में अमर हो गए।

1962 War Hero Jaswant Singh Rawat: The Braveheart Who Took Down Over 300 Chinese Soldiers

जन्म और सेना में शामिल होने की कहानी

जसवंत सिंह रावत का जन्म 19 अगस्त 1941 को उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले के बऱ्युन गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम गुमान सिंह रावत था। जसवंत सिंह ने 19 साल की उम्र में 19 अगस्त 1960 को भारतीय सेना में भर्ती होकर 4 गढ़वाल राइफल्स में अपनी सेवा शुरू की। यह रेजिमेंट भारतीय सेना की सबसे बहादुर और सम्मानित रेजिमेंट्स में से एक है।

नुरानांग की लड़ाई

17 नवंबर 1962 को अरुणाचल प्रदेश (तब नॉर्थ-ईस्ट फ्रंटियर एजेंसी) के तवांग सेक्टर के नुरानांग क्षेत्र में चीनी सेना ने भारतीय सेना की पोस्ट पर हमला किया। जसवंत सिंह और उनके साथी सैनिकों ने चीनी सेना को रोकने के लिए अदम्य साहस का परिचय दिया। जब उनके साथी घायल हो गए या शहीद हो गए, तब जसवंत सिंह ने अकेले मोर्चा संभाला।

उनके पास केवल एक मशीन गन थी, लेकिन उन्होंने अपनी सूझबूझ और रणनीति से दुश्मन को 72 घंटे तक आगे बढ़ने नहीं दिया। चीनी सेना को लगा कि भारतीय सैनिकों की संख्या अधिक है, जबकि जसवंत सिंह अकेले लड़ रहे थे।

स्थानीय लड़कियों ने की मदद

इस लड़ाई में स्थानीय मोनपा समुदाय की दो लड़कियां, सेला और नूरा, ने जसवंत सिंह की मदद की। वे उनके लिए खाना और गोलियां लाती थीं। सेला ग्रेनेड विस्फोट में शहीद हो गईं और नूरा को चीनी सैनिकों ने पकड़ लिया।

अंतिम बलिदान

जब चीनी सैनिकों को यह पता चला कि बंकर में केवल जसवंत सिंह ही लड़ रहे हैं, उन्होंने बड़े पैमाने पर हमला किया। लेकिन जसवंत सिंह ने आखिरी समय तक लड़ाई जारी रखी। अंत में, उन्होंने अपनी आखिरी गोली से खुद को मार लिया ताकि दुश्मन के हाथों में न गिरें।

चीनी सैनिक उनकी वीरता से इतने प्रभावित हुए कि युद्धविराम के बाद उनका सिर और एक कांस्य की प्रतिमा भारत को लौटा दी।

सम्मान और स्मारक

राइफलमैन जसवंत सिंह रावत को मरणोपरांत महावीर चक्र, भारत का दूसरा सबसे बड़ा युद्धकालीन वीरता पुरस्कार, प्रदान किया गया। उनकी स्मृति में तवांग के पास जसवंतगढ़ नामक एक स्मारक बनाया गया है। यह स्मारक भारतीय सेना के साहस और बलिदान का प्रतीक है।

जसवंतगढ़ में अमर कहानी

जसवंतगढ़ स्मारक पर उनकी वर्दी और बिस्तर हर दिन तैयार किया जाता है। वहां के जवान मानते हैं कि जसवंत सिंह की आत्मा आज भी उस क्षेत्र की रक्षा कर रही है। यह स्थान देशभक्ति का प्रतीक बन चुका है और हर साल हजारों लोग यहां श्रद्धांजलि देने आते हैं।

एक प्रेरणादायक विरासत

जसवंत सिंह रावत की कहानी केवल एक वीरता की गाथा नहीं है, बल्कि यह हमें यह सिखाती है कि कर्तव्य के प्रति समर्पण और देशभक्ति से बड़ा कोई आदर्श नहीं है। उनकी वीरता और बलिदान आज भी भारतीय सेना के जवानों को प्रेरित करता है।

1962 के भारत-चीन युद्ध में उनकी भूमिका न केवल भारतीय इतिहास में अमर हो गई है, बल्कि यह आने वाली पीढ़ियों के लिए साहस और प्रेरणा का स्रोत बनी रहेगी।

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