📍नई दिल्ली | 7 Jan, 2025, 11:11 AM
Armed Forces Pension: सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि सशस्त्र बलों के कर्मियों और उनके परिवारों को बेवजह के कानूनी झंझटों में न फंसाया जाए। अदालत ने विशेष रूप से पेंशन से जुड़े विवादों को लेकर सरकार द्वारा बार-बार अदालतों में अपील करने की आलोचना भी की।
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अभय एस. ओका और जस्टिस उज्ज्वल भुयान की बेंच ने इस मामले पर केंद्र से नीति-निर्माण की आवश्यकता पर बल दिया। अदालत ने कहा, “जो लोग देश की सेवा करते हैं, उन्हें बार-बार अदालतों में घसीटना सही नहीं है। पहले से ही बहुत कम लोग सशस्त्र बलों में नौकरी करने के इच्छुक हैं। ऐसे में इन लोगों को कानूनी लड़ाइयों में क्यों फंसाया जाए?”
Armed Forces Pension: देश सेवा करने वालों को न घसीटा जाए कानूनी पचड़ों में
अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने केंद्र सरकार की अपील का बचाव करते हुए कहा कि कई मामलों में विकलांगता पेंशन के दावों को चुनौती दी जाती है, क्योंकि वे सर्विस से संबंधित नहीं होते। हालांकि, अदालत ने इस पर कड़ा रुख अपनाते हुए कहा, “यह अधिकारी कितने वर्षों तक सेवा में रहे? जो लोग देश की सेवा करते हैं, उन्हें ऐसी लड़ाइयों में क्यों घसीटा जाए? यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है।”
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की अपील को खारिज करते हुए कहा कि यह मामला न केवल देरी से पेश किया गया, बल्कि इसका कोई ठोस आधार भी नहीं था। यह मामला एक पूर्व भारतीय वायुसेना अधिकारी से जुड़ा था, जो 30 वर्षों की सेवा के बाद टाइप 2 डायबिटीज़ और प्राइमरी हाइपरटेंशन से पीड़ित थे।
रिलीज़ मेडिकल बोर्ड (आरएमबी) ने शुरू में इन स्थितियों को सेवा से संबंधित नहीं माना था। हालांकि, सशस्त्र बल न्यायाधिकरण (एएफटी) ने 2023 में दिए गए अपने फैसले में कहा कि वायुसेना की कठोर ट्रेनिंग और उससे जुड़ा तनाव इन बीमारियों का कारण हो सकता है।
एएफटी ने अधिकारी को विकलांगता पेंशन के “राउंडिंग ऑफ” का लाभ देते हुए उनकी पेंशन प्रतिशत को 50 फीसदी तक बढ़ाने का आदेश दिया था। इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने सही ठहराया और सरकार की अपील को खारिज कर दिया।
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Armed Forces Pension: क्यों किया था एएफटी का गठन?
सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा, “सशस्त्र बल न्यायाधिकरण (एएफटी) की स्थापना का उद्देश्य क्या था, अगर हर मामले को सुप्रीम कोर्ट तक लाना ही है? ये लोग आपके अपने लोग हैं। उन्होंने देश की सेवा की है।” अदालत ने सरकार को याद दिलाया कि एएफटी का गठन सशस्त्र बलों से संबंधित मामलों के तेजी से निपटारे के लिए किया गया था।
हालांकि यह मामला कोई नया नहीं है। दिसंबर 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने एक सैनिक की विधवा को परिवार पेंशन देने से इनकार करने के लिए सरकार और भारतीय सेना पर 50,000 रुपये का जुर्माना ठोका था। इस मामले में जवान की पत्नी को सालों तक न्याय के लिए संघर्ष करना पड़ा।
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अदालत ने तत्कालीन सरकार के रवैये को “कठोर” और “संवेदनहीन” करार दिया था। अदालत ने कहा था कि सरकार को अपने आंतरिक तंत्र को मजबूत करना चाहिए, ताकि पेंशन विवादों से संबंधित अनावश्यक अपीलों को रोका जा सके।
3,000 से अधिक मामले अदालतों में
जानकारी के अनुसार, सशस्त्र बलों के मृत्यु और विकलांगता लाभ से जुड़े मामलों पर रक्षा मंत्रालय की लगभग 3,000 अपीलें विभिन्न उच्च न्यायालयों और सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं। अदालत ने इस समस्या की गंभीरता पर ध्यान देते हुए कहा, “हर मामले को अदालत तक लाने का कोई औचित्य नहीं है। सरकार को ऐसी अपीलों को रोकने के लिए ठोस नीति बनानी चाहिए।”
अदालत ने स्पष्ट किया कि पेंशन और विकलांगता लाभ से संबंधित मामलों में सरकार का दृष्टिकोण मानवीय होना चाहिए। इन मामलों में अनावश्यक कानूनी लड़ाइयों से न केवल प्रभावित व्यक्ति, बल्कि उनके परिवारों को भी मानसिक और आर्थिक नुकसान होता है।
क्या है पेंशन विवाद के पीछे वजह?
कई मामलों में यह देखा गया है कि सरकार तकनीकी मुद्दों का हवाला देकर सैनिकों और उनके परिवारों को लाभ देने से इनकार करती है। अदालत ने इस रवैये की कड़ी आलोचना की और कहा कि पेंशन और विकलांगता लाभ सैनिकों का अधिकार है, न कि कोई विशेषाधिकार।