📍नई दिल्ली | 24 Feb, 2025, 12:57 PM
LCA Tejas Mk-1A Delay: हाल ही में बेंगलुरू एयरो इंडिया 2025 में एयर फोर्स चीफ मार्शल एपी सिंह ने हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड के चेयरमैन डीके सुनील को LCA तेजस Mk-1A की डिलीवरी में हो रही देरी को लेकर नाराजगी जाहिर की थी। दोनों के बीच की यह बातचीत गलती से एक कैमरे में रिकॉर्ड हो गई औऱ सोशल मीडिया पर वायरल हो गई। लेकिन लगता है कि एयर फोर्स चीफ की नाराजगी देख कर सरकार भी एक्टिव हो गई है। सरकार ने Mk-1A की डिलीवरी में हो रही देरी को लेकर तेजी से कदम उठाते हुए एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया है। रक्षा मंत्रालय ने तेजस की डिलीवरी में हो रही देरी और उसके उत्पादन में तेजी लाने के लिए रक्षा सचिव राजेश कुमार सिंह को उस समिति का अध्यक्ष बनाया है, जो एक महीने के भीतर रिपोर्ट सौंपेंगे।
रक्षा सूत्रों का कहना है कि रक्षा मंत्रालय ने इस देरी को गंभीरता से लिया है और इस मुद्दे को हल करने के लिए एक पांच-सदस्यीय समिति गठित की है। इस रिपोर्ट में तेजसका प्रोडक्शन बढ़ाने के लिए सुझाव दिए जाएंगे। इसमें निजी कंपनियों को भी शामिल करने की संभावनाओं पर विचार किया जाएगा ताकि प्रोडक्शन समय पर हो सके।
LCA Tejas Mk-1A Delay: तेजस की देरी क्यों बनी चिंता का कारण?
भारतीय वायुसेना पहले ही 2021 में 83 तेजस Mk-1A लड़ाकू विमानों का ऑर्डर दे चुकी है, जिसकी कीमत 48,000 करोड़ रुपये बताई जा रही है। इसके अलावा, 97 और नए तेजस Mk-1A खरीदने की योजना भी बनाई जा रही है, जिनकी अनुमानित कीमत 67,000 करोड़ रुपये हो सकती है। हालांकि, पहले ऑर्डर किए गए विमानों की डिलीवरी अभी तक पूरी नहीं हो पाई है। मार्च 2024 तक पहला विमान सौंपने का वादा किया गया था, लेकिन अब 2025 आ गया और एचएएल अभी तक पहला विमान देने में नाकाम रहा है।
बवायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल एपी सिंह ने हाल ही में इस देरी पर कड़ी नाराजगी जताई थी। बेंगलुरु में हुए एयरो इंडिया 2025 शो के दौरान उन्होंने हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाते हुए कहा था कि उन्हें एचएएल पर कोई भरोसा नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि एचएएल ने वायुसेना की जरूरतों को पूरा करने में गंभीरता नहीं दिखाई है।
LCA Tejas Mk-1A Delay: एचएएल चीफ ने दी थी ये सफाई?
एचएएल के चेयरमैन डीके सुनील ने इस आलोचना के जवाब में कहा कि “हम किसी बहस में नहीं पड़ना चाहते, हमारा पूरा ध्यान तेजस Mk-1A की डिलीवरी जल्द से जल्द करने पर है।” एचएएल का कहना है कि देरी की मुख्य वजह अमेरिकी कंपनी GE एयरोस्पेस की तरफ से F-404IN इंजन की सप्लाई में देरी और कुछ अन्य टेक्निकल सर्टिफिकेशन से जुड़ी दिक्कतें हैं। हालांकि, एचएएल ने यह भी स्पष्ट किया कि अब जल्द ही इंजन की सप्लाई शुरू हो जाएगी और कंपनी अगले साढ़े तीन सालों में 83 तेजस Mk-1A विमानों की डिलीवरी पूरी कर देगी।
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बता दें कि तेजस Mk-1A को भारतीय वायुसेना के बेड़े में शामिल करना बेहद जरूरी है क्योंकि वर्तमान में वायुसेना को लड़ाकू विमानों की संख्या में कमी का सामना करना पड़ रहा है। कागजों पर भारतीय वायुसेना के पास 43 स्क्वाड्रन की जगह मात्र 31 स्क्वाड्रन हैं। हालांकि यह डाटा पांच साल पुराना है और उसके बाद से लगातार विमानों को बेड़े से रिटायर करने की प्रक्रिया जारी है। वहीं, सरकार की योजना अगले कुछ सालों में तेजस Mk-1, Mk-1A और Mk-2 मिलाकर करीब 350 विमानों को वायुसेना में शामिल करने की है।
LCA Tejas Mk-1A Delay: क्या है एचएएल की रणनीति?
एचएएल ने नासिक में एक नई प्रोडक्शन लाइन तैयार की है, जहां हर साल 8 तेजस Mk-1A लड़ाकू विमान बनाए जाएंगे। इसके अलावा, बेंगलुरु स्थित उत्पादन लाइन में हर साल 16 तेजस Mk-1A बनाए जाते हैं। इन दोनों प्लांट्स की क्षमता बढ़ाकर हर साल 24 लड़ाकू विमान तैयार करने की योजना बनाई जा रही है। इसके बावजूद, तेजस के प्रोडक्शन की रफ्तार को और तेज करने की जरूरत है ताकि वायुसेना की जरूरतों को पूरा किया जा सके। वहीं, सरकार अब इस प्रोजेक्ट में निजी कंपनियों को भी शामिल करने पर विचार कर रही है, ताकि उत्पादन को तेजी से बढ़ाया जा सके। रक्षा मंत्रालय के अनुसार, अगर एचएएल डिलीवरी तय समय पर नहीं कर पाता है, तो अन्य कंपनियों को इस प्रोजेक्ट में शामिल किया जा सकता है।
एयर फोर्स चीफ बोले- इंतजार हुआ बेहद लंबा
हालांकि एयर चीफ मार्शल पहले भी तेजस का प्रोडक्शन बढ़ाने के लिए पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप मॉडल को अपनाने की बात कह चुके हैं। पिछले दिनों दिल्ली में आयोजित 21वें सुब्रतो मुखर्जी सेमिनार ‘Atmanirbharta in Aerospace: Way Ahead’ में एयर चीफ मार्शल एपी सिंह ने कहा था कि भारत में फाइटर जेट्स के उत्पादन में तेजी लाने के लिए पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप मॉडल को अपनाने की जरूरत है। उन्होंने यह भी कहा कि रिसर्च एंड डेवलपमेंट अगर समय पर पूरा नहीं होता, तो उसकी उपयोगिता खत्म हो जाती है। उन्होंने कहा कि इंडियन एयरफोर्स को अपने बेड़े को मजबूत करने के लिए तेजस की सप्लाई जल्द से जल्द पूरी करनी होगी, लेकिन मौजूदा हालात में यह उम्मीद से काफी पीछे है। उन्होंने इस समस्या के समाधान के लिए डिफेंस सेक्टर में निजी कंपनियों की भागीदारी को बढ़ावा देने और रिसर्च एंड डेवलपमेंट पर अधिक खर्च करने की जरूरत पर जोर दिया था।
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वायुसेना प्रमुख ने कहा था कि तेजस फाइटर जेट को भारतीय वायुसेना ने 2016 में अपने बेड़े में शामिल करना शुरू किया था, जबकि इसकी परिकल्पना 1984 में की गई थी। पहली उड़ान के 17 साल बाद इसे आधिकारिक रूप से इंडक्शन मिला। अब तक भारतीय वायुसेना के पास तेजस के केवल दो स्क्वाड्रन ही एक्टिव हैं, जबकि 83 तेजस MK-1A के ऑर्डर दिए जा चुके हैं। इसके अलावा, 97 और तेजस खरीदने की योजना पर काम किया जा रहा है। एयरफोर्स को अपनी जरूरतों के हिसाब से तेजस की डिलीवरी समय पर चाहिए, लेकिन उत्पादन में देरी एक बड़ी समस्या बनी हुई है। हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड को इस चुनौती को हल करने के लिए अपने उत्पादन में तेजी लानी होगी और समयसीमा के भीतर फाइटर जेट्स की सप्लाई सुनिश्चित करनी होगी।
पूर्व चीफ ने भी की थी पीपीपी मॉडल की सिफारिश
वहीं मौजूदा एयर चीफ से पहले उनके पूर्ववर्ती रिटायर्ड एय़र चीफ मार्शल वीआर चौधरी भी पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप के तहत एलसीए की मैन्युफैक्चरिंग के लिए ज्यादा से ज्यादा प्रोडक्शन लाइनें बनाने की सिफारिश कर चुके हैं। पिछले साल जोधपुर में वायुसेना की मल्टीनेशनल एयर एक्सरसाइज तरंग शक्ति के दूसरे फेज की समाप्ति पर प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए तत्कालीन एयर चीफ मार्शल वीआर चौधरी ने कहा था कि तेजस फाइटर जेट की सप्लाई में हो रही देरी को दूर करने के लिए पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप मॉडल के तहत ज्यादा से ज्यादा प्रोडक्शन लाइनें बनाई जानी चाहिए। उन्होंने कहा था कि एचएएल को प्रोडक्शन बढ़ाने और तय समयसीमा पर विमानों की डिलीवरी करने के लिए समाधान खोजने में अहम भूमिका निभानी चाहिए।
बढ़ेंगी निर्यात की संभावनाएं!
वहीं अगर तेजस की मैन्युफैक्चरिंग में प्राइवेट सेक्टर को भी शामिल किया जाता है, तो डिफेंस प्रोडक्शन में शानदार बढ़त देखने को मिल सकती है। कुछ समय पहले ही मलेशिया, अर्जेंटीना और मिस्र जैसे देशों ने तेजस विमान में रुचि दिखाई थी। वायुसेना प्रमुख ने भी कहा है कि एचएएल को अपनी उत्पादन क्षमता बढ़ाकर भारतीय वायुसेना की जरूरतों के साथ-साथ निर्यात के अवसरों को भी देखना चाहिए। क्योंकि अगर एचएएल इस मौके को गंवा देता है, तो यह न केवल भारतीय डिफेंस सेक्टर में उसकी विश्वसनीयता पर सवाल खड़े करेगा, बल्कि अन्य देशों को तेजस निर्यात की संभावनाओं को भी कमजोर कर देगा।