📍नई दिल्ली | 15 Feb, 2025, 10:41 PM
F-35 GAO Report: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत को अपने एडवाांस F-35 फाइटर जेट को देने की पेशकश की है। यह वही विमान है जिसे अमेरिका अपने सबसे आधुनिक और घातक फाइटर जेट के तौर पर प्रचारित करता है। लेकिन इसी बीच अमेरिकी सरकार की निगरानी एजेंसी – गवर्नमेंट अकाउंटेबिलिटी ऑफिस (GAO) की एक रिपोर्ट सामने आई है। इस रिपोर्ट में हुए खुलासों से विमान को लेकर कई बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं।
GAO की रिपोर्ट के मुताबिक F-35 की ऑपरेशनल एफिशिएंसी पिछले पांच सालों में लगातार गिर रही है, और इसके सभी वेरिएंट (F-35A, F-35B और F-35C) परफॉरमेंस के तय मानकों को पूरा नहीं कर पा रहे हैं। यानी कि यह विमान जितना एडवांस बताया जाता है, उतना भरोसेमंद साबित नहीं हो रहा है। बता दें कि यह विमान अमेरिकी वायुसेना, नौसेना और मरीन कॉर्प्स में भी शामिल है।
F-35 GAO Report: : सबसे महंगा मिलिट्री प्रोजेक्ट, लेकिन प्रदर्शन उम्मीद से कम
F-35 लड़ाकू विमान को अमेरिकी रक्षा विभाग (DOD) ने अपने सबसे महत्वपूर्ण वेपन सिस्टम्स के तौर पर डेवलप किया था। वर्तमान में अमेरिका के पास 630 से अधिक F-35 फाइटर जेट हैं, और वह 1,800 और खरीदने की योजना बना रहा है, जिन्हें 2088 तक इस्तेमाल किया जाएगा।
लेकिन समस्या यह है कि F-35 की लागत तेजी से बढ़ रही है। 2018 में इस विमान की अनुमानित ऑपरेटिंग कॉस्ट्स 1.1 ट्रिलियन डॉलर (91.3 लाख करोड़ रुपये) थी, जो 2023 में बढ़कर 1.58 ट्रिलियन डॉलर (131.14 लाख करोड़ रुपये) हो गई। और यह तब है जब अमेरिकी वायुसेना, नौसेना और मरीन कॉर्प्स ने इसके उड़ान घंटों को कम करने का फैसला लिया है, क्योंकि इसकी विश्वसनीयता पर सवाल उठ रहे हैं।
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रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिकी वायुसेना के लिए एक F-35 को उड़ाने की वार्षिक लागत 4.1 मिलियन डॉलर (34.03 करोड़ रुपये) आंकी गई थी, लेकिन अब यह बढ़कर 6.8 मिलियन डॉलर (56.44 करोड़ रुपये) प्रति वर्ष हो गई है।
F-35 GAO Report: ये हैं दिक्कतें; क्यों उठ रहे हैं सवाल?
अमेरिकी सरकार की निगरानी एजेंसी गवर्नमेंट अकाउंटेबिलिटी ऑफिस (GAO) की रिपोर्ट में F-35 लड़ाकू विमान को लेकर कई तकनीकी खामियों और लॉजिस्टिक्स चुनौतियों की बात भी की गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि सबसे बड़ी समस्या मेंटेनेंस में लगने वाला लंबा वक्त है। F-35 के कई कंपोनेंट्स इतने मुश्किल हैं कि छोटे-छोटे रिपेयर्स में भी महीनों लग जाते हैं। इसका मतलब है कि अगर कोई विमान तकनीकी खराबी की वजह से ग्राउंडेड हो जाता है, तो उसे फिर से उड़ान के लिए तैयार करने में बेहद लंबा वक्त लग सकता है।
इसके अलावा, कंपोनेंट्स की भारी कमी भी एक बड़ी चुनौती बन गई है। GAO की रिपोर्ट बताती है कि स्पेयर पार्ट्स की न मिलने से कई विमान ज़मीन पर खड़े रहते हैं और उन्हें मिशन के लिए तैयार नहीं किया जा सकता। अमेरिकी वायुसेना और नौसेना के लिए यह एक गंभीर चिंता का विषय है, क्योंकि इससे उनकी तैयारियों पर असर पड़ता है।
तकनीकी दिक्कतों में सॉफ्टवेयर अपडेट में देरी भी एक बड़ी समस्या है। F-35 को एक “फ्लाइंग कंप्यूटर” कहा जाता है, क्योंकि इसमें एडवांस डिजिटल सिस्टम और सॉफ्टवेयर-बेस्ड टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया गया है। लेकिन यह सॉफ़्टवेयर लगातार अपग्रेड होते रहना चाहिए। कई बार जरूरी अपग्रेड समय पर न होने की वजह से F-35 को मिशन से हटाना पड़ता है।
अमेरिकी सप्लाई चेन और मेंटेनेंस सिस्टम पर रहना होगा निर्भर
ट्रंप के प्रस्ताव के बाद भारत के लिए सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या F-35 वाकई में एक अच्छा ऑप्शन है? यह विमान अपनी स्टील्थ टेक्नोलॉजी और एडवांस फीचर्स के लिए मशहूर है, लेकिन इसकी कमियों को भी अनदेखा नहीं किया जा सकता। भारत इस समय अपने वायुसेना बेड़े को मजबूत और मॉर्डन बनाने पर फोकस कर रहा है। भारत के पास पहले से ही राफेल, तेजस और सुखोई-30MKI जैसे बेहतरीन विकल्प हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या भारत को एक ऐसा विमान खरीदना चाहिए, जिसकी खुद अमेरिका में आलोचना हो रही है?
अगर भारत F-35 को अपनाता है, तो इस पर न केवल भारी भरकम खर्च करना पड़ेगाा, बल्कि इसके मेंटेनेंस और टेक्नोलॉजी अपग्रेड पर भी निर्भर रहना होगा। क्योंकि यह विमान पूरी तरह से अमेरिकी सप्लाई चेन और मेंटेनेंस सिस्टम पर निर्भर है।
हालांकि अभी तक भारत सरकार की तरफ से इस प्रस्ताव पर कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है। लेकिन यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या भारत अमेरिका से F-35 खरीदने की दिशा में कदम बढ़ाएगा, या फिर अपने स्वदेशी AMCA और मौजूदा बेड़े को ही मजबूत करेगा।