1971 India-pakistan War: 1971 भारत-पाक युद्ध के ऐतिहासिक समझौते के गवाह वीर विंग कमांडर महा बिर ओझा का निधन, भारतीय सेना की जीत के थे साक्षी

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By हरेंद्र चौधरी

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📍नई दिल्ली | 5 months ago

1971 India-Pakistan War: भारत के गौरवमयी सैन्य इतिहास में एक और धरोहर सदा के लिए शांत हो गई है। 1971 के भारत-पाक युद्ध के वीर योद्धा और पाकिस्तान के आत्मसमर्पण दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर करने के गवाह, विंग कमांडर महा बिर ओझा का 11 नवंबर 2024 को 89 वर्ष की आयु में निधन हो गया।

1971 India-Pakistan War- Heroic Wing Commander Maha Bir Ojha, Witness to Historic Surrender Agreement, Passes Away

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वह उस ऐतिहासिक दिन के प्रत्यक्षदर्शी थे जब पाकिस्तान ने भारतीय सेना के समक्ष आत्मसमर्पण किया था, और यह उनके जीवन का एक अविस्मरणीय क्षण था। अपने योगदान और वीरता के लिए देश ने उन्हें हमेशा सम्मान दिया।

उनका अंतिम संस्कार छत्तीसगढ़ के रायपुर में HQ छत्तीसगढ़ और उड़ीसा सब-एरिया द्वारा आयोजित एक भावुक कार्यक्रम में किया गया, जहां उनके योगदान और वीरता को याद करते हुए सभी ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की।

भारतीय सेना ने इस अवसर पर शोक संतप्त परिवार के प्रति गहरी संवेदना व्यक्त की और कहा, “हम एक नायक को अंतिम विदाई दे रहे हैं, और हम उनके उत्साह और देश के प्रति समर्पण को आगे बढ़ाएंगे।”

विंग कमांडर ओझा का निधन देश के लिए एक बड़ी क्षति है, लेकिन उनकी वीरता, त्याग और राष्ट्रभक्ति की प्रेरणा भारतीय सेना और जनमानस में सदा जीवित रहेगी। उनके अद्वितीय साहस और समर्पण ने न केवल युद्ध के मैदान में, बल्कि भारत के हर नागरिक के दिल में अपनी जगह बनाई है।

विंग कमांडर महा बिर ओझा, भारतीय वायु सेना के एक वीर और प्रेरणास्त्रोत अधिकारी थे, जिनका जीवन देश के प्रति समर्पण और वीरता की मिसाल था। 1971 के भारत-पाक युद्ध में उनकी भूमिका अद्वितीय थी, और वह इस युद्ध के एक महत्वपूर्ण क्षण के गवाह बने, जब पाकिस्तान ने भारतीय सेना के समक्ष आत्मसमर्पण किया था।

1971 India-Pakistan War- Heroic Wing Commander Maha Bir Ojha, Witness to Historic Surrender Agreement, Passes Away

भारत-पाक युद्ध 1971 और Instrument of Surrender पर हस्ताक्षर

विंग कमांडर ओझा को युद्ध के दौरान पाकिस्तान द्वारा आत्मसमर्पण दस्तावेज़ (Instrument of Surrender) पर हस्ताक्षर करते हुए देखा गया। यह दस्तावेज़ 16 दिसंबर 1971 को ढाका में हस्ताक्षरित हुआ था, जो भारतीय सेना और मुक्ति वाहिनी द्वारा पाकिस्तान को हराने के बाद बंगाल की मुक्ति का प्रतीक बना। उस ऐतिहासिक दिन की गवाहता ने महा बिर ओझा को एक महत्वपूर्ण स्थान दिलाया, क्योंकि उन्होंने युद्ध के अंतिम पल देखे और भारतीय सेना की जीत के साक्षी बने।

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