📍नई दिल्ली | 10 Mar, 2025, 2:14 PM
Nepal Politics: हाल ही में नेपाल में एक ऐसी घटना घटी है, जिसने नेपाल के साथ-साथ भारत की सियासत में भी हलचल मचा दी है। रविवार को नेपाल की राजधानी काठमांडू के त्रिभुवन इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह के स्वागत में रैली आयोजित हुई। लेकिन सबसे बड़ी बात यह रही कि इस रैली में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के पोस्टर लगाए गए और ‘हिंदू हृदय सम्राट’ के नारे भी लगे। यह पोस्टर राष्ट्रवादी पार्टी ‘राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी’ (RPP) और अन्य हिंदू समर्थक संगठनों द्वारा पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह के स्वागत के लिए लगाए गए थे।
नेपाल के कई हिस्सों में राजशाही की वापसी और नेपाल को फिर से हिंदू राष्ट्र घोषित करने की मांग को लेकर रैलियां निकाली जा रही हैं। खास बात यह रही कि इन रैलियों में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के पोस्टर भी नजर आए। काठमांडू में त्रिभुवन अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर आयोजित एक बाइक रैली के दौरान योगी आदित्यनाथ के पोस्टर और बैनर देखे गए। यह रैली राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी (आरपीपी) ने आयोजित की थी, जिसमें पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह का भव्य स्वागत किया गया। पोस्टर्स में योगी आदित्यनाथ को “हिंदू हृदय सम्राट” बताया गया था। यह उपाधि हिंदुत्व विचारधारा से जुड़े नेताओं को दी जाती है।
Nepal Politics: योगी आदित्यनाथ का नेपाल कनेक्शन
‘हिंदू हृदय सम्राट’ के नारों से सजी इन रैलियों में योगी आदित्यनाथ का जिक्र भी हुआ। योगी का नेपाल के साथ ऐतिहासिक रिश्ता है। दरअसल, योगी आदित्यनाथ का नेपाल के शाही परिवार से ऐतिहासिक संबंध रहा है। योगी आदित्यनाथ जिस गोरखनाथ मठ के महंत हैं, उसका नेपाल के शाही परिवार से एक धार्मिक रिश्ता रहा है। नेपाल में गोरखनाथ मठ का खास महत्व है और इसे नेपाल के सांस्कृतिक इतिहास का हिस्सा माना जाता है। नेपाल में शाह वंश का शासन 16वीं सदी से लेकर 2008 तक था, जब राजतंत्र को समाप्त कर गणतंत्र की स्थापना की गई थी।
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Nepal Politics: नेपाल में राजशाही की वापसी की बढ़ती मांग
नेपाल में इन दिनों राजशाही की वापसी को लेकर कई रैलियां हो रही हैं। राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी (आरपीपी) ने हाल ही में काठमांडू में एक बाइक रैली का आयोजन किया, जिसमें भारी भीड़ ने हिस्सा लिया। रैली में ‘नारायणहिती खाली गर, हाम्रो राजा आउंदै छन्’ जैसे नारे लगे, जिसका अर्थ है – “नारायणहिटी खाली करो, हमारे राजा आ रहे हैं।”
नारायणहिती वही राजमहल है, जिसमें नेपाल के राजा निवास करते थे, लेकिन 2008 में गणतंत्र लागू होने के बाद इसे संग्रहालय में बदल दिया गया था। अब जब राजशाही की मांग फिर उठ रही है, तो नारायणहिती राजमहल एक बार फिर से चर्चा में आ गया है।
पूर्व राजा ज्ञानेंद्र के समर्थकों का मानना है कि वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था भ्रष्ट हो चुकी है और देश को बचाने के लिए राजशाही की वापसी जरूरी है। हालांकि, ज्ञानेंद्र ने अभी तक सार्वजनिक रूप से कोई राजनीतिक बयान नहीं दिया है, लेकिन उनकी उपस्थिति और स्वागत ने इस मुद्दे को राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण बना दिया है।
नेपाली सेना प्रमुख के बयान से बढ़ी बैचेनी
नेपाल के सेना प्रमुख ने हाल ही में एक बयान दिया। उन्होंने कहा कि “नेपाल सेना, जनता की सेना है और अंततः जनता की इच्छाओं का पालन करेगी।” यह बयान नेपाल के मौजूदा राजनीतिक हालात को देखते हुए बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है। नेपाल में लोगों का एक बड़ा वर्ग मौजूदा सरकार से नाराज है और बदलाव की मांग कर रहा है। राजशाही समर्थक इस नाराजगी को अपने पक्ष में भुनाने की कोशिश कर रहे हैं।
नेपाल में हाल ही में हुए कार्यक्रमों में भीड़ की उपस्थिति ने यह संकेत दिया है कि पूर्व राजा ज्ञानेंद्र के प्रति सहानुभूति बढ़ रही है। नेपाल के ग्रामीण इलाकों और कुछ शहरों में भी लोगों ने राजशाही के समर्थन में रैलियां निकाली हैं। इससे यह संकेत मिलता है कि एक बड़ा वर्ग मौजूदा व्यवस्था से असंतुष्ट है।
Nepal Politics: क्यों हो रही राजशाही की वापसी की मांग?
नेपाल की मौजूदा राजनीतिक स्थिति को देखते हुए, भ्रष्टाचार, महंगाई और सत्ताधारी दलों के प्रति जनता का गुस्सा चरम पर है। लोग मौजूदा व्यवस्था से थक चुके हैं और राजतंत्र की वापसी को एक विकल्प के रूप में देख रहे हैं। पूर्व राजा ज्ञानेंद्र के स्वागत में 4 लाख से अधिक लोग सड़कों पर उतरे, जिसमें ‘राजा आओ, देश बचाओ’ जैसे नारे लगे।
राजशाही की वापसी की मांग करने वाली राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी (आरपीपी) के वरिष्ठ नेता रविंद्र मिश्रा ने कहा, “नेपाल में वर्तमान व्यवस्था से लोगों का मोहभंग हो गया है। जनता अब एक स्थिर और निष्पक्ष शासन चाहती है।” उन्होंने यह भी कहा कि नेपाल में भारत विरोधी भावना भी बढ़ी है, जिसका समाधान केवल सांस्कृतिक और ऐतिहासिक जड़ों को मजबूत करके ही किया जा सकता है।
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क्या हैं राजशाही की संभावनाएं?
हालांकि नेपाल में राजशाही की वापसी के आसार फिलहाल कम ही नजर आते हैं। नेपाल के वरिष्ठ पत्रकार चंद्रकिशोर का मानना है कि मौजूदा असंतोष के बावजूद नेपाल में राजशाही की वापसी संभव नहीं है। उनका कहना है कि जनता मौजूदा व्यवस्था से नाराज जरूर है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वे फिर से राजशाही की स्थापना चाहते हैं।
नेपाल के एक अन्य पत्रकार उमेश चौहान का भी यही मानना है कि राजशाही की वापसी का समर्थन करने वाले लोग सीमित संख्या में हैं। उन्होंने कहा कि लोग मौजूदा सरकार से जरूर नाराज हैं, लेकिन यह नाराजगी इतनी मजबूत नहीं है कि राजशाही की वापसी का आधार बन सके।
भारत-नेपाल संबंधों पर क्या पड़ेगा असर
नेपाल में हो रहे इन सियासी बदलावों का असर भारत-नेपाल संबंधों पर भी पड़ सकता है। नेपाल हमेशा से भारत की विदेश नीति का महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है। भारत के उत्तर प्रदेश में गोरखनाथ मठ का नेपाल के राजघराने से ऐतिहासिक संबंध रहा है। ऐसे में योगी आदित्यनाथ के पोस्टरों का नेपाल में दिखना, भारत-नेपाल संबंधों की दिशा में एक नया संकेत दे सकता है।
नेपाल में भारत विरोधी भावना को लेकर भी चिंता जताई जा रही है। आरपीपी के नेताओं का मानना है कि मौजूदा कम्युनिस्ट सरकार भारत विरोधी एजेंडे को बढ़ावा दे रही है। ऐसे में राजशाही समर्थक दल नेपाल को फिर से हिंदू राष्ट्र बनाने के पक्षधर हैं, ताकि भारत-नेपाल संबंधों को और मजबूत किया जा सके।
मेजर जनरल (सेवानिवृत्त) जीडी बक्शी कहते हैं, “नेपाल के पूर्व राजा ने हाल ही में देश का दौरा किया था और काठमांडू लौटने पर उनका स्वागत 4 लाख से अधिक नेपाली नागरिकों ने भव्य तरीके से किया। बीते महीने नेपाल के कई शहरों और कस्बों में राजा के समर्थन में दर्जनों मोटरसाइकिल रैलियां आयोजित की गईं। 2007 में, जब मैंने नेपाल में एनडीसी प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व किया था, तब से मैं कहता आ रहा हूं कि भारत ने नेपाल में माओवादियों को सत्ता में लाकर और दुनिया के एकमात्र हिंदू साम्राज्य को समाप्त करके एक गंभीर रणनीतिक भूल की है।”
वह आगे कहते हैं, आज नेपाल के लोग माओवादियों की भ्रष्ट और विफल नीतियों से तंग आ चुके हैं। वे किसी भी रूप में राजा की वापसी की कामना कर रहे हैं—चाहे वह संवैधानिक सम्राट के रूप में हो, सांस्कृतिक प्रमुख के रूप में या फिर किसी राजनीतिक दल के संरक्षक के रूप में। राजा नेपाली जनता के लिए भगवान विष्णु के प्रतीक हैं और नेपाल में फिर से एक हिंदू राज्य की स्थापना का महत्वपूर्ण आधार बन सकते हैं।
वहीं रैली में योगी आदित्यनाथ के पोस्टर दिखने पर मेजर जनरल बख्शी का कहना है, “नेपाल में हो रही रैलियों में योगी आदित्यनाथ के पोस्टर दिखाई देना इस बात का संकेत है कि नेपाल की जनता हिंदू पहचान को फिर से मजबूत करने की इच्छा रखती है। जनता की इच्छा सर्वोपरि है, क्योंकि लोगों की आवाज ही भगवान की आवाज होती है।”
पहले हिंदू राष्ट्र था नेपाल
नेपाल का राजतंत्र समाप्त होने से पहले दुनिया का एकमात्र हिंदू राष्ट्र था। 2008 में गणतंत्र बनने के बाद इसे धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र घोषित कर दिया गया। लेकिन अब एक वर्ग फिर से नेपाल को हिंदू राष्ट्र बनाने की मांग कर रहा है। भारत में भी इस विचारधारा को समर्थन मिला है। 2006 में बीजेपी के तत्कालीन अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने कहा था कि “नेपाल की मौलिक पहचान हिंदू राष्ट्र की है और इसे खत्म नहीं किया जाना चाहिए।” यही वजह है कि नेपाल में योगी आदित्यनाथ के पोस्टर लगने को सांस्कृतिक और राजनीतिक दोनों ही नजरिए से देखा जा रहा है।
क्या नेपाल फिर से हिंदू राष्ट्र बनेगा?
नेपाल में मौजूदा असंतोष का मुख्य कारण भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और सुस्त आर्थिक विकास है। जनता को लगता है कि मौजूदा राजनीतिक व्यवस्था उनकी समस्याओं का समाधान नहीं कर पा रही है। हालांकि, जानकारों का मानना है कि इसका समाधान राजशाही में नहीं है, बल्कि लोकतांत्रिक संस्थाओं को मजबूत करने में है।
नेपाल की वर्तमान राजनीतिक परिस्थिति को देखते हुए, राजतंत्र की वापसी और हिंदू राष्ट्र की स्थापना आसान नहीं है। हालांकि, जनता का बढ़ता असंतोष, राजनीतिक अस्थिरता और धार्मिक भावना इस विचार को समर्थन दे रही है। लेकिन क्या यह आंदोलन राजनीतिक सफलता में बदल पाएगा, यह देखना बाकी है।
विशेषज्ञ मानते हैं कि यह मुद्दा राजनीतिक रूप से संवेदनशील है और इसका असर भारत-नेपाल संबंधों पर भी पड़ सकता है। साथ ही, चीन की भूमिका भी महत्वपूर्ण हो सकती है, क्योंकि नेपाल की मौजूदा सरकार चीन के साथ मजबूत संबंध रखती है।