Galwan Clash: गलवान हिंसा में जख्मी PLA कमांडर को चीन ने दिया बड़ा सम्मान, क्या भारत के खिलाफ प्रोपेगेंडा फैलाने की है बड़ी तैयारी?

By News Desk

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📍नई दिल्ली | 3 Mar, 2025, 4:00 PM

Galwan Clash: चीन ने गलवान घाटी हिंसा के दौरान घायल हुए पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) के कमांडर क्यूई फाबाओ (Qi Fabao) को विशेष सम्मान से नवाजा है। उन्हें चीनी पीपुल्स पॉलिटिकल कंसल्टेटिव कॉन्फ्रेंस (CPPCC) के ‘आउटस्टैंडिंग परफॉर्मेंस अवार्ड’ से सम्मानित किया गया है। यह सम्मान चीन में उन लोगों को दिया जाता है जिन्होंने सरकारी एजेंडा को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई हो।

Galwan Clash: China Honors Injured PLA Commander – A New Propaganda Move Against India?

Galwan Clash: क्यों दिया गया क्यूई फाबाओ को यह सम्मान?

15 जून 2020 को गलवान घाटी में भारत और चीन के सैनिकों के बीच भीषण हिंसक संघर्ष हुआ था। इस झड़प में चीन के भी लगभग 50 से ज्यादा सैनिक मारे गए थे, हालांकि चीन ने इस पर हमेशा चुप्पी बनाए रखी। वहीं भारत ने आधिकारिक रूप से 20 सैनिकों के बलिदान की पुष्टि की थी। इस संघर्ष में क्यूई फाबाओ भी गंभीर रूप से घायल हो गए थे। फाबाओ उस समय PLA की एक रेजिमेंट के कमांडर थे।

चीन की सरकारी मीडिया के अनुसार, क्यूई फाबाओ ने ‘सीमा की रक्षा’ करने में बहादुरी दिखाई थी, और इसीलिए उन्हें 2021 में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (CPC) की केंद्रीय समिति द्वारा “हीरो रेजिमेंटल कमांडर फॉर डिफेंडिंग द बॉर्डर” की उपाधि दी गई थी। उन्हें बाद में ‘जुलाई 1 मेडल’ भी प्रदान किया गया था, जो CPC के सर्वोच्च नागरिक सम्मानों में से एक है।

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अब, 2024 में, क्यूई को CPPCC की ओर से ‘आउटस्टैंडिंग परफॉर्मेंस’ अवार्ड से सम्मानित किया गया है। यह दिखाता है कि चीन, गलवान संघर्ष की घटना को अपने राजनीतिक और प्रचार तंत्र में एक प्रमुख हथियार की तरह इस्तेमाल कर रहा है।

गलवान संघर्ष को राजनीतिक हथियार बना रहा चीन

क्यूई फाबाओ को सम्मानित किया जाना सिर्फ एक सैन्य फैसला नहीं, बल्कि चीन की राजनीतिक रणनीति का हिस्सा है। चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (CPC) अक्सर अपने राजनीतिक एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए इस तरह के सम्मान समारोह आयोजित करती है।

गलवान संघर्ष में चीन की छवि अंतरराष्ट्रीय मंच पर कमजोर हुई थी। चीन के लिए यह जरूरी था कि वह अपनी जनता को यह संदेश दे कि उसने इस संघर्ष में कोई कमजोरी नहीं दिखाई थी। यही कारण है कि चीन, गलवान घाटी की लड़ाई को अपने लिए एक ‘प्रचार अवसर’ के तौर में देख रहा है और इसके जरिये वह अपनी आक्रामक राष्ट्रवादी नीतियों को और मजबूत करना चाहता है।

चीन की सरकारी मीडिया गलवान संघर्ष की पूरी कहानी को एकतरफा ढंग से पेश कर रही है। सरकारी चैनल CCTV की रिपोर्ट के मुताबिक, भारतीय सेना ने ‘समझौते का उल्लंघन’ किया और चीनी सैनिकों पर हमला किया। हालांकि, भारत की ओर से इस दावे का बार-बार खंडन किया गया है और साफ किया गया है कि गलवान में चीन ने घुसपैठ कर भारतीय सीमा में निर्माण कार्य करने की कोशिश की थी, जिससे झड़प शुरू हुई।

Galwan Clash: क्यूई फाबाओ को राजनीति में लाने की रणनीति?

जनवरी 2023 में, ची फाबाओ को CPPCC के 14वें राष्ट्रीय समिति का सदस्य घोषित किया गया। CPPCC चीन की एक राजनीतिक सलाहकार संस्था है, जिसमें सरकार समर्थक व्यक्ति शामिल होते हैं। उन्हें एक ‘विशेष अतिथि’ के रूप में इस संस्था में जगह दी गई। इसका उद्देश्य चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की नीतियों को लागू करने में सहायता करना और जनता में पार्टी की छवि को मजबूत करना है।

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इस साल चीन की संसद की बैठक ‘टू सेशन्स’ (Two Sessions) के दौरान, ची फाबाओ की तस्वीरें और वीडियो चीनी सरकारी मीडिया पर खूब दिखाईं गई थीं। CCTV मिलिट्री चैनल ने उनके सिर पर दिख रहे निशान को प्रमुखता से दिखाया, ताकि इसे चीनी जनता के लिए एक ‘बलिदान’ और ‘देशभक्ति’ के प्रतीक के रूप में प्रचारित किया जा सके। 2024 के ‘टू सेशंस’ (चीनी संसद के सालाना सम्मेलन) के दौरान, उन्हें कई मंचों पर देखा गया, जहां उन्होंने चीन की ‘सीमा सुरक्षा’ और ‘राष्ट्रवादी नीतियों’ को लेकर भाषण दिए।

युद्ध नायकों के जरिये भड़का रहा है राष्ट्रवादी भावनाएं?

चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के नेतृत्व में, चीन लगातार राष्ट्रवाद को बढ़ावा दे रहा है। PLA के सैनिकों को “राष्ट्र की ताकत” के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है, और इसके जरिये देश की जनता को यह संदेश दिया जा रहा है कि चीन को सैन्य रूप से मजबूत रहना चाहिए।

क्यूई फाबाओ जैसे सैन्य अधिकारियों को प्रचारित करना भी इसी रणनीति का हिस्सा है। चीन इससे पहले भी अपने ‘युद्ध नायकों’ को राजनीतिक रूप से इस्तेमाल कर चुका है। उदाहरण के लिए, कोरियाई युद्ध (1950-53) के दौरान शामिल चीनी सैनिकों को भी लंबे समय तक प्रचार माध्यमों में नायक के रूप में पेश किया गया था।

गलवान संघर्ष की सच्चाई और चीन का दोहरा रवैया

भारत और चीन के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर कई बार तनाव देखने को मिला है। हालांकि, गलवान संघर्ष 45 वर्षों में पहली ऐसी घटना थी, जिसमें सैनिकों की जान गई। इस संघर्ष में भारत के 20 जवान वीरगति को प्राप्त हुए थे, लेकिन चीन ने काफी समय तक अपने हताहतों की संख्या को छुपाए रखा।

2021 में, चीन ने स्वीकार किया कि उसके चार सैनिक इस संघर्ष में मारे गए थे। लेकिन कई रिपोर्ट्स और सैटेलाइट इमेजरी विश्लेषण बताते हैं कि वास्तविक संख्या इससे कहीं ज्यादा हो सकती है। वहीं चीन का मीडिया यह दावा करता है कि गलवान हिंसा के दौरान भारतीय सैनिकों ने चीनी सीमा में घुसपैठ की और टेंट लगाए, जिसके बाद ची फाबाओ बातचीत करने गए। लेकिन भारतीय सेना ने समझौते का पालन नहीं किया और हिंसा भड़क गई। यह दावा पूरी तरह से चीन का सरकारी प्रोपेगेंडा है, क्योंकि भारत ने हमेशा यह स्पष्ट किया है कि गलवान में संघर्ष चीन द्वारा की गई घुसपैठ और सीमा उल्लंघन का नतीजा था।

इस हिंसा के बाद, भारत ने चीन के खिलाफ आर्थिक प्रतिबंध लगाए और चीनी ऐप्स पर बैन लगा दिया। इसके अलावा, भारतीय सेना ने भी LAC पर अपनी तैनाती को मजबूत किया और चीन को कड़ा जवाब दिया।

Galwan Clash: क्या यह चीन की नई प्रचार रणनीति है?

विशेषज्ञों का मानना है कि ची फाबाओ को बार-बार सम्मानित करना चीन की एक सुनियोजित रणनीति का हिस्सा है। चीन इस तरह से अपने नागरिकों के बीच भारत के खिलाफ एक नकारात्मक छवि बनाने की कोशिश कर रहा है। इससे पहले भी चीन अपने सैनिकों को ‘गुमनाम नायक’ बताकर प्रचारित करता रहा है। लेकिन असलियत यह है कि चीन गलवान संघर्ष के दौरान अपने नुकसान को छिपाने में लगा रहा और जब अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ा, तो उसने सिर्फ 4 सैनिकों की मौत स्वीकार की। चीनी सरकार अब ची फाबाओ को एक ‘राष्ट्रवादी प्रतीक’ के रूप में प्रस्तुत कर रही है, ताकि जनता का ध्यान घरेलू आर्थिक संकट और अन्य आंतरिक मुद्दों से हटाया जा सके।

जबकि भारत इस पूरे मामले को संतुलित दृष्टिकोण से देख रहा है। भारत की ओर से गलवान संघर्ष को लेकर कोई आक्रामक प्रचार अभियान नहीं चलाया गया, बल्कि कूटनीतिक और सैन्य स्तर पर जवाब दिया गया।

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