📍नई दिल्ली | 2 months ago
Chabahar Port: पहले तो अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने 104 भारतीय नागरिकों को जबरन एक अमेरिकी मिलिट्री एयरक्राफ्ट सी-17 ग्लोबमास्टर के जरिए अमृतसर भेजा। वहीं अब ट्रंप ने भारत को दूसरा झटका दिया है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ईरान के चाबहार पोर्ट से जुड़े प्रतिबंधों पर दी गई छूट को रद्द करने का आदेश दिया है। यह कदम ऐसे समय में उठाया गया है जब भारत ने चाबहार पोर्ट के डेवलपमेंट के लिए ईरान के साथ 10 साल का समझौता किया था, जिससे अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक भारत की सीधी पहुंच सुनिश्चित होती।
Chabahar Port: पहले छूट दी, फिर वापस ली
अमेरिका ने पहले चाबहार पोर्ट के मॉडर्नाइजेशन को प्रतिबंधों से छूट दी थी, क्योंकि यह पोर्ट भारत के लिए अफगानिस्तान तक मानवीय मदद पहुंचाने का एक महत्वपूर्ण मार्ग था। नवंबर 2018 में राष्ट्रपति ट्रंप ने भारत को चाबहार पोर्ट के डेवलपमेंट के लिए छूट प्रदान की थी, जिससे भारत को पाकिस्तान को बायपास कर अफगानिस्तान तक सीधी पहुंच मिलती थी।
क्या है नेशनल सिक्योरिटी मेमोरेंडम में?
हालांकि, अब व्हाइट हाउस की तरफ से जारी ‘प्रेसिडेंशियल नेशनल सिक्योरिटी मेमोरेंडम’ में ईरान के खिलाफ कई कदम उठाने का एलान किया गया है। मेमोरेंडम में लिखा गया है, “विदेश मंत्री मार्को रुबियो को ऐसे सभी प्रतिबंध छूट को संशोधित या समाप्त करने का निर्देश दिया जाता है, जो ईरान को किसी भी प्रकार की आर्थिक या वित्तीय राहत प्रदान करते हैं, जिसमें ईरान के चाबहार पोर्ट प्रोजेक्ट से संबंधित छूट भी शामिल है।”
भारत के लिए क्यों है चिंता की बात?
पिछले साल मई में भारत और ईरान के बीच एक 10 वर्षीय समझौता हुआ था, जिसका उद्देश्य चाबहार पोर्ट को एक क्षेत्रीय कनेक्टिविटी हब के रूप में डेवलप करना था। इस पोर्ट के जरिए भारत को अफगानिस्तान, मध्य एशिया और यूरेशिया तक सीधी पहुंच मिलती। यह परियोजना न केवल व्यापारिक दृष्टि से बल्कि रणनीतिक लिहाज से भी भारत के लिए अत्यंत जरूरी थी।
इस परियोजना के तहत भारत पोर्ट के विकास के लिए करीब 120 मिलियन डॉलर का निवेश करने वाला था। इसके अलावा, भारत ने ईरान को चाबहार पोर्ट के बेसिक इंफ्रास्ट्रक्चर को डेवलप करने के लिए 250 मिलियन डॉलर का क्रेडिट भी ऑफर किया था। भारत पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड (IPGL) और ईरान के पोर्ट्स एंड मैरीटाइम ऑर्गनाइजेशन (PMO) के बीच हुए समझौते के मुताबिक IPGL अगले 10 सालों तक इस पोर्ट को विकसित और संचालित करने वाला था। इसके बाद दोनों देशों के बीच सहयोग को और आगे बढ़ाने की योजना थी।
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भारत के लिए Chabahar Port क्यों है अहम?
ईरान के तटीय शहर चाबहार में स्थित यह पोर्ट भारत के रणनीतिक और आर्थिक हितों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। भारत और ईरान के बीच चाबहार पोर्ट के डेवलपमेंट को लेकर 2003 में सहमति बनी थी, लेकिन इस परियोजना ने असल रफ्तार 2016 में पकड़ी, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ईरान का दौरा किया। 15 सालों में यह किसी भारतीय प्रधानमंत्री का पहला ईरानी दौरा था, और इसी दौरान चाबहार पोर्ट के डेवलपमेंट के समझौते को मंज़ूरी मिली।
2019 में पहली बार चाबहार पोर्ट के जरिए पाकिस्तान को साइडलाइन करके अफगानिस्तान से माल भारत लाया गया। यह पोर्ट इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर (INSTC) का हिस्सा है, जो भारत, ईरान, अफगानिस्तान, रूस, और यूरोप के बीच 7,200 किलोमीटर लंबा ट्रांसपोर्ट नेटवर्क है। इससे भारत की मध्य एशिया और यूरोप तक पहुंच आसान हो जाती है, जो न केवल आर्थिक तौर पर बल्कि कूटनीतिक तौर से भी फायदेमंद है।
हालांकि 2020 में कुछ रिपोर्ट्स में दावा किया गया था कि ईरान ने भारत को एक रेलवे प्रोजेक्ट से अलग कर दिया है, जिससे दोनों देशों के रिश्तों में तनाव आया। लेकिन अब दोनों देशों के बीच फिर से चाबहार पर अहम समझौता हुआ है, जिसे रिश्तों में सुधार के संकेत के तौर पर देखा गया।
चाबहार पोर्ट का पाकिस्तान और चीन के ग्वादर पोर्ट के मुकाबले भारत के लिए रणनीतिक तौर पर बेहद अहम है। ग्वादर पोर्ट चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) का हिस्सा है, भारत के लिए चिंता का विषय रहा है। ऐसे में चाबहार पोर्ट न केवल भारत के लिए व्यापार का एक वैकल्पिक मार्ग है, बल्कि यह चीन की अरब सागर में बढ़ती मौजूदगी को संतुलित करने का एक साधन भी है।
तालिबान की अफगानिस्तान में वापसी के बाद भारत का मध्य एशिया से संपर्क सीमित हो गया था। ऐसे में चाबहार पोर्ट भारत को काबुल तक अपनी पहुंच बनाए रखने और मध्य एशियाई देशों के साथ व्यापारिक संबंध मजबूत करने का मौका देता है। इस पोर्ट के माध्यम से भारत अफगानिस्तान को मानवीय मदद भी पहुंचा सकता है, जिससे उसकी इस क्षेत्र में पकड़ भी बनी रहती है।
चाबहार को INSTC से जोड़ने की तैयारी
चाबहार पोर्ट को इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर (INSTC) से भी जोड़ा जाएगा, जिससे भारत, ईरान, अफगानिस्तान, रूस और यूरोप के बीच 7,200 किलोमीटर लंबा परिवहन नेटवर्क तैयार होगा। इससे भारत को मध्य एशिया और यूरोप के साथ व्यापारिक कनेक्टिविटी बढ़ाने में मदद मिलेगी और पाकिस्तान को दरकिनार कर सीधा व्यापार मार्ग मिलेगा। साथ ही, यह पोर्ट अरब सागर में चीन की मौजूदगी को चुनौती देने के लिए भारत के लिए एक अहम रणनीतिक साधन भी साबित होगा।
ट्रंप के फैसले का क्या पड़ेगा असर
अमेरिका के इस फैसले से भारत की कई योजनाओं पर असर पड़ सकता है। चाबहार बंदरगाह के दो पोर्ट हैं- शाहिद बेहेस्ती और शाहिद कलंतरी। चाबहार पोर्ट के जरिए भारत, चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) को टक्कर देने की रणनीति पर काम कर रहा था। यह पोर्ट भारत को चीन-पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट के विकल्प के तौर पर अपनी पकड़ मजबूत करने का मौका देता है। इसके अलावा भारत और ईरान के बीच चाबहार पोर्ट के जरिए मजबूत होते संबंधों को भी इस फैसले से झटका लग सकता है। ईरान, भारत के लिए एक महत्वपूर्ण रणनीतिक साझेदार रहा है, खासकर ऊर्जा क्षेत्र में।
इसके अलावा, भारत अफगानिस्तान में निर्माण परियोजनाओं, दवाइयों और खाद्य आपूर्ति के लिए चाबहार पोर्ट का इस्तेमाल करता रहा है। चाबहार पोर्ट का इस्तेमाल भारत के लिए एक सस्ता और सुरक्षित विकल्प था। अब अमेरिका द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के बाद भारत को वैकल्पिक मार्गों की तलाश करनी पड़ सकती है, जिससे लागत और समय दोनों बढ़ सकते हैं। साथ ही, अमेरिका के इस कदम के बाद भारत को अपने निवेश और पोर्ट ऑपरेशन के लिए नए विकल्प तलाशने पड़ सकते हैं, या फिर अमेरिकी दबाव के तहत इन योजनाओं को सीमित करना पड़ सकता है।
तालिबान से हुई थी बैठक
8 जनवरी 2025 को दुबई में भारत और तालिबान के बीच चाबहार पोर्ट को लेकर एक महत्वपूर्ण बैठक हुई थी। भारत के विदेश सचिव विक्रम मिस्री और अफगानिस्तान के कार्यवाहक विदेश मंत्री मौलवी आमीर खान मुत्ताकी के बीच हुई इस हाई-लेवल मीटिंग में चाबहार पोर्ट के जरिए व्यापार बढ़ाने पर चर्चा हुई। इस बैठक के बाद चीन और पाकिस्तान की चिंताएं बढ़ गईं, क्योंकि चाबहार पोर्ट ग्वादर पोर्ट के लिए एक बड़ा रणनीतिक विकल्प है, जिसे चीन और पाकिस्तान मिलकर विकसित कर रहे हैं।
बैठक के बाद भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जयसवाल ने सोशल मीडिया पर बताया था कि दोनों पक्षों ने अफगानिस्तान को दी जा रही मानवीय सहायता, द्विपक्षीय मुद्दों और सुरक्षा स्थिति पर चर्चा की। चाबहार पोर्ट के माध्यम से व्यापार को बढ़ावा देने पर सहमति व्यक्त की। अब तक भारत चाबहार के जरिए अफगानिस्तान को 25 लाख टन गेहूं और 2 हजार टन दालें भेज चुका है।