📍नई दिल्ली | 2 months ago
भारत के रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO), उद्योग जगत और शैक्षणिक संस्थानों के संयुक्त प्रयास से आईआईटी हैदराबाद (IIT Hyderabad) में लार्ज एरिया एडिटिव मैन्युफैक्चरिंग (LAAM) सिस्टम का सफल प्रदर्शन किया गया है। यह उपलब्धि भारत में एडिटिव मैन्युफैक्चरिंग (Additive Manufacturing) यानी थ्री-डी प्रिंटिंग तकनीक के विकास की दिशा में एक बड़ी छलांग मानी जा रही है।

इस प्रोजेक्ट को आईआईटी हैदराबाद, डीआरडीओ के डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट लेबोरेटरी (DRDL), हैदराबाद और इंडस्ट्री पार्टनर्स ने मिलकर डेवलप किया है। इस तकनीक का उपयोग रॉकेट और अन्य डिफेंस इक्विपमेंट्स के निर्माण में किया जाएगा। इस महत्वपूर्ण उपलब्धि से भारत में डिफेंस और एयरोस्पेस सेक्टर में स्वदेशी उत्पादन क्षमता को बढ़ावा मिलेगा।
क्या है लार्ज एरिया एडिटिव मैन्युफैक्चरिंग (LAAM) सिस्टम?
यह सिस्टम पाउडर बेस्ड डायरेक्टेड एनर्जी डिपोजिशन (DED) तकनीक पर आधारित है, जिसमें लेजर और ब्लोन-पाउडर का उपयोग करके मेटल के जटिल और बड़े आकार के हिस्सों को 3D प्रिंट किया जाता है। यह भारत में अब तक की सबसे बड़ी मेटल एडिटिव मैन्युफैक्चरिंग मशीनों में से एक है।
यह मशीन भारत में बनी सबसे बड़ी मेटल एडिटिव मैन्युफैक्चरिंग मशीनों में से एक है, जिसकी बिल्ड वॉल्यूम 1 मीटर x 1 मीटर x 3 मीटर है। यह पाउडर आधारित डायरेक्ट एनर्जी डिपोजिशन (DED) तकनीक पर काम करती है, जिसमें लेजर और ब्लोन-पाउडर सिस्टम का उपयोग किया जाता है। इस प्रक्रिया में दोहरे हेड्स का इस्तेमाल किया जाता है, जिससे थर्मल बैलेंसिंग और निर्माण की गति में सुधार किया जा सकता है।
हाल ही में इस तकनीक का उपयोग करके 1 मीटर ऊंचा मेटलिक कंपोनेंट बनाया गया है, जो इस क्षेत्र में एक बड़ा मील का पत्थर माना जा रहा है।
क्या होंगे फायदे?
इस एडिटिव मैन्युफैक्चरिंग सिस्टम का इस्तेमाल रॉकेट और अन्य रक्षा उपकरणों के मुश्किल कंपोनेंट्स के निर्माण में किया जाएगा। पारंपरिक निर्माण तकनीकों की तुलना में यह तकनीक तेजी से उत्पादन करने, लागत घटाने और निर्माण की सटीकता बढ़ाने में मदद करेगी।
रक्षा क्षेत्र में योगदान:
- लाइटर और अधिक मजबूत हथियार प्रणालियां विकसित की जा सकती हैं।
- ड्रोन और मिसाइल सिस्टम के लिए हल्के लेकिन मजबूत घटकों का निर्माण किया जा सकता है।
- आधुनिक टैंक और तोपों के लिए जटिल मेटल कंपोनेंट्स बनाए जा सकते हैं।
अंतरिक्ष अनुसंधान में योगदान:
- कम वज़न वाले और जटिल डिजाइन के सैटेलाइट घटक बनाए जा सकते हैं।
- रॉकेट इंजनों के लिए एडवांस्ड पार्ट्स कम लागत में विकसित किए जा सकते हैं।
इस तकनीक के जरिए डिफेंस इंडस्ट्री को कई फायदे मिलेंगे। इससे बड़े और जटिल डिजाइन के कंपोनेंट्स को कम लागत में विकसित किया जा सकेगा। कम मटेरियल वेस्टेज और कम उत्पादन लागत की वजह से लागत में कमी आएगी। यह तकनीक बेहतर फिनिश और हाई-प्रिसीजन के साथ कंपोनेंट्स का निर्माण कर सकती है। मिसाइल, रॉकेट इंजन, उपग्रहों और अन्य रक्षा उपकरणों के निर्माण में आत्मनिर्भरता बढ़ेगी। इससे निर्माण प्रक्रिया तेज होगी, जिससे रक्षा उपकरणों की उपलब्धता जल्दी सुनिश्चित की जा सकेगी। साथ ही, इससे स्वदेशी रक्षा उत्पादन को मजबूती मिलेगी, जिससे आत्मनिर्भर भारत (Aatmanirbhar Bharat) अभियान को बल मिलेगा।
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डीआरडीओ प्रमुख ने दी बधाई
रक्षा अनुसंधान एवं विकास विभाग (Department of Defence R&D) के सचिव और डीआरडीओ के चेयरमैन डॉ. समीर वी. कामत (Dr. Samir V Kamat) ने इस सफलता के लिए डीआईए-सीओई (DIA-CoE) और आईआईटी हैदराबाद की टीम को बधाई दी। उन्होंने कहा कि “यह उपलब्धि भारत में बड़े पैमाने पर धातु के पुर्जों के निर्माण के नए रास्ते खोलेगी, जिससे एडिटिव मैन्युफैक्चरिंग के क्षेत्र में इनोवेशन और डेवलपमेंट को बढ़ावा मिलेगा।”
एडिटिव मैन्युफैक्चरिंग क्या है और यह क्यों जरूरी है?
एडिटिव मैन्युफैक्चरिंग को आमतौर पर थ्री-डी प्रिंटिंग (3D Printing) भी कहा जाता है। इसमें परत-दर-परत सामग्री जोड़कर किसी भी वस्तु का निर्माण किया जाता है। यह पारंपरिक काटने-छांटने वाली मशीनिंग प्रक्रियाओं के बजाय अधिक सटीक और कम वेस्टेज वाली प्रक्रिया है।
एयरोस्पेस, रक्षा, चिकित्सा उपकरण और ऑटोमोबाइल उद्योग में यह तकनीक तेजी से अपनाई जा रही है। अमेरिका, यूरोप और चीन पहले से ही बड़े पैमाने पर एडिटिव मैन्युफैक्चरिंग का उपयोग कर रहे हैं, और अब भारत भी इस दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है।
वहीं, IIT हैदराबाद और DRDO के इस संयुक्त प्रयास से न केवल रक्षा क्षेत्र को मजबूती मिलेगी, बल्कि यह तकनीक ऑटोमोबाइल, एयरोस्पेस और अन्य औद्योगिक क्षेत्रों में भी क्रांति ला सकती है। आने वाले समय में, यह तकनीक बड़े पैमाने पर उत्पादन, रिसर्च और डेवलपमेंट में भारत को आत्मनिर्भर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।