UAE Akash Missile Explainer: पैट्रियट, पैंटसिर और THAAD के बावजूद UAE को क्यों भा रहा है भारत का ‘आकाश’ मिसाइल सिस्टम?

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📍नई दिल्ली | 1 week ago

UAE Akash Missile Explainer: भारत ने संयुक्त अरब अमीरात (UAE) को स्वदेशी आकाश एयर डिफेंस मिसाइल सिस्टम (Akash Missile) देने का ऑफर दिया है। यह पेशकश भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और भारत यात्रा पर आए दुबई के क्राउन प्रिंस और UAE के डिप्टी पीएम शेख हमदान बिन मोहम्मद बिन राशिद अल मकतूम के बीच प्रतिनिधि-स्तरीय बैठक में की गई। इसके अलावा दोनों देश अब सैन्य अभ्यास, ट्रेनिंग एक्सचेंज, रक्षा उद्योग में सहयोग, संयुक्त प्रोजेक्ट्स, रिसर्च और टेक्नोलॉजी ट्रांसफर जैसे क्षेत्रों में भी हाथ मिलाने जा रहे हैं। इससे पहले प्रधानमंत्री मोदी भी 10-12 फरवरी 2025 को पेरिस और मार्सिले की यात्रा के दौरान फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों को स्वदेशी आकाश एयर डिफेंस मिसाइल सिस्टम बेचने का ऑफर दे चुके हैं।

UAE Akash Missile Explainer: Why UAE Is Interested in India Akash Missile Despite Having THAAD, Patriot, and Pantsir Systems

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भारत ने ‘आकाश’ डिफेंस सिस्टम (Akash Missile) को स्वदेश में ही विकसित किया है। इसे डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गनाइजेशन (DRDO) ने बनाया है और ये 96% से ज्यादा स्वदेशी है। यह सिस्टम दुश्मन के लड़ाकू विमान, हेलीकॉप्टर, ड्रोन और सबसोनिक क्रूज़ मिसाइलों को 25 किलोमीटर की दूरी तक इंटरसेप्ट कर उन्हें नष्ट करने में सक्षम है। यह न केवल युद्ध के दौरान सुरक्षा प्रदान करती है, बल्कि किसी भी आकस्मिक खतरे को समय रहते रोकने में भी मददगार है। इस प्रणाली को पूरी तरह से भारत में ही विकसित किया गया है, जो ‘आत्मनिर्भर भारत’ की दिशा में एक ठोस कदम है।

यह पेशकश उस व्यापक रणनीति का हिस्सा है, जिसके तहत भारत अब ‘आकाश’, ‘पिनाका’ मल्टी-लॉन्च रॉकेट सिस्टम और ‘ब्रह्मोस’ सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल जैसे आधुनिक हथियारों को मित्र देशों को निर्यात करने में जुटा है। फिलीपींस को पहले ही ब्रह्मोस की तटीय बैटरियां निर्यात की जा चुकी हैं, और आर्मेनिया भारत से आकाश, पिनाका और 155 मिमी आर्टिलरी गन खरीदने वाला पहला विदेशी खरीदार देश बन चुका है। अब यूएई के साथ ये डील भारत के रक्षा निर्यात को जबरदस्त बूस्ट मिलेगा।

UAE Akash Missile Explainer: अभी यूएई के पास कौन-कौन से हैं सिस्टम?

फिलहाल संयुक्त अरब अमीरात (UAE) के पास कई तरह के आधुनिक एयर डिफेंस सिस्टम है। यूएई के पास थाड (THAAD – Terminal High Altitude Area Defense) है। यूएई दुनिया का पहला देश है (अमेरिका के बाद) जिसके पास ये सिस्टम है। इसे अमेरिका से खरीदा गया और 2016 में तैनात किया गया था। इसकी रेंज 200 किलोमीटर तक है और ये लंबी दूरी के खतरों से निपटने में माहिर है। जनवरी 2022 में, यूएई ने इसका इस्तेमाल यमन के हूती विद्रोहियों की ओर से दागी गई मिसाइलों को रोकने के लिए किया था, जो इसका पहला जंगी इस्तेमाल था। अभी यूएई के पास दो THAAD बैटरी हैं, और 2022 में अमेरिका ने 96 और मिसाइलों के साथ दो अतिरिक्त कंट्रोल स्टेशन देने की मंजूरी दी थी।

इसके अलावा यूएई के पास अमेरिकी पैट्रियट PAC-3 और GEM-T सिस्टम ङी है, जो मध्यम और छोटी दूरी की मिसाइलों, ड्रोन्स और हवाई हमलों से बचाता है। पैट्रियट का PAC-3 वेरिएंट बैलिस्टिक मिसाइलों को आखिरी चरण में रोकता है, जबकि GEM-T पुराने मॉडल का अपग्रेड है, जो हवाई जहाजों और क्रूज मिसाइलों के खिलाफ बेहतर काम करता है। यह सिस्टम अबू धाबी जैसे बड़े शहरों और अल-धफरा एयर बेस जैसे अहम ठिकानों की रक्षा करता है।

इसके अलावा यूएई के पास रूसी पैंटसिर-एस1 (Pantsir-S1) सिस्टम भी है, जिसे यूएई ने 2000 में ऑर्डर किया था। 50 यूनिट्स की डिलीवरी 2009-2013 में पूरी हुई थी। पैंटसिर छोटी और मध्यम दूरी (20 किमी तक) के खतरों जैसे ड्रोन, हेलिकॉप्टर, और कम ऊंचाई पर उड़ने वाली मिसाइलों को रोकता है। इसमें मिसाइलों के साथ-साथ ऑटोमैटिक तोपें भी हैं, जो इसे “पॉइंट डिफेंस” के लिए शानदार बनाती हैं। यूएई इसका इस्तेमाल खास जगहों, जैसे तेल संयंत्रों और सैन्य ठिकानों की सुरक्षा के लिए करता है।

साथ ही यूएई के पास MIM-23 हॉक पुराना अमेरिकी सिस्टम भी है, जो कम और मध्यम ऊंचाई पर उड़ने वाले हवाई जहाजों और मिसाइलों को निशाना बनाता है। हालांकि ये अब पुराना हो चुका है, फिर भी यूएई के पास इसकी कुछ यूनिट्स हैं, जो बाकी सिस्टम्स के साथ मिलकर रक्षा को मजबूत करती हैं। यूएई इनका इस्तेमाल सपोर्टिंग रोल में करता है।

इसके अलावा उसके पास मध्यम दूरी का चेओंगुंग II (KM-SAM) सिस्टम भी है, जिसे यूएई ने 2022 में दक्षिण कोरिया से खरीदा था, जिसकी कीमत 3.5 बिलियन डॉलर थी। हालांकि ये अभी डिलीवरी के लिए तैयार हो रहा है। चेओंगुंग 40 किमी तक की रेंज में हवाई जहाज, क्रूज मिसाइलें और बैलिस्टिक मिसाइलों को रोक सकता है। यह रूस के S-400 जैसा है, और कम ऊंचाई के खतरों से निपटने में खास है। इसे यूएई के सुरक्षा में “लोअर-टियर” गैप को भरने के लिए लिया गया है, जहां THAAD और पैट्रियट कम प्रभावी हो सकते हैं।

वहीं, 2022 में हूती हमलों के बाद, यूएई ने इजराइल से स्पाइडर सिस्टम भी खरीदा था। ये मध्यम दूरी का सिस्टम है, जो ड्रोन, क्रूज मिसाइलों और हवाई जहाजों को निशाना बनाता है। इसकी रेंज 15-20 किमी है और ये मोबाइल है, यानी इसे आसानी से कहीं भी ले जाया जा सकता है। ये खासकर ड्रोन हमलों से बचाव के लिए लिया गया। अब्राहम समझौते के बाद इजराइल और यूएई के रिश्ते बेहतर हुए हैं, जिसके चलते ये डील हुई थी।

UAE Akash Missile Explainer: क्यों चाहिए यूएई को आकाश मिसाइल सिस्टम?

दरअसल यूएई खाड़ी क्षेत्र में एक अहम देश है, जिसके पास ढेर सारा तेल, गैस और पैसा है। लेकिन इसके साथ ही इसके दुश्मन भी कम नहीं हैं। पिछले कुछ सालों में यमन के हूती विद्रोहियों ने यूएई पर कई बार ड्रोन और मिसाइल हमले किए हैं। जनवरी 2022 में हूती मिसाइलों ने अबू धाबी को निशाना बनाया था, जिसमें तीन लोग मारे गए थे। इसके अलावा, ईरान की बढ़ती ताकत खासकर उसकी बैलिस्टिक मिसाइलें और ड्रोन भी यूएई के लिए चिंता का सबब है। ये खतरे छोटे-मोटे नहीं हैं, और यूएई को हर तरह के हवाई हमले से निपटने के लिए तैयार रहना पड़ता है।

वहीं, थाड और पैट्रियट जैसे सिस्टम लंबी दूरी की बैलिस्टिक मिसाइलों को रोक सकते हैं। लेकिन हूती जैसे समूह जो सस्ते ड्रोन और छोटी रेंज की मिसाइलों का इस्तेमाल करते हैं, उनके खिलाफ इन बड़े सिस्टम का इस्तेमाल महंगा पड़ता है। एक थाड मिसाइल की कीमत करीब 1-2 मिलियन डॉलर होती है, जबकि हूती का ड्रोन या मिसाइल उससे कई गुना सस्ता। ऐसे में यूएई को एक ऐसा सिस्टम चाहिए, जो किफायती हो और छोटे-मध्यम दूरी के खतरों से भी निपट सके। जिसमें आकाश सिस्टम फिट बैठता है।

वहीं, आकाश (Akash Missile) की एक मिसाइल की कीमत 5 लाख डॉलर से भी कम है, जो पैट्रियट या थाड की तुलना में बहुत सस्ती है। खासकर ड्रोन जैसे सस्ते खतरों से निपटने के लिए यह यूएई के लिए ये किफायती ऑप्शन है। आकाश की रेंज भी 25-30 किमी तक है और ये छोटी और मध्यम दूरी के खतरों जैसे ड्रोन, हेलिकॉप्टर, और क्रूज मिसाइलों पर सटीक निशाना साध सकता है। वहीं हूती हमलावर ज्यादातर ऐसे ही हथियार इस्तेमाल करते हैं।

इसके अलावा आकाश को ट्रक या ट्रैक वाले वाहनों पर आसानी से ले जाया जा सकता है। यूएई जैसे देश में, जहां तेल संयंत्र और शहर काफी दूर-दूर हैं, वहां आसानी से पहुंचाया जा सकता है। यूएई का रेगिस्तानी मौसम मुश्किल होता है, लेकिन आकाश हर हाल में काम करता है, जो इसे भरोसेमंद बनाता है।

इसके अलावा यूएई के पास THAAD और पैट्रियट जैसे सिस्टम लंबी दूरी और ऊंचाई के लिए हैं, जबकि पैंटसिर और स्पाइडर छोटी दूरी के लिए। लेकिन मध्यम दूरी (20-40 किमी) में एक गैप है। दक्षिण कोरिया का चेओंगुंग II (KM-SAM) इस गैप को भरने के लिए लिया गया है, जिसकी डिलीवरी में देरी है। लेकिन तब तक यूएई को एक तुरंत उपलब्ध सिस्टम चाहिए, और आकाश इस जरूरत को पूरा कर सकता है। साथ ही, आकाश की कीमत भी KM-SAM से कम है।

यूएई ज्यादातर अपने डिफेंस प्रोडक्ट्स अमेरिका, फ्रांस या यूरोपीय देशों से खरीदता रहा है। लेकिन 2022 के हूती हमलों के बाद उसे लगा कि अमेरिका का सपोर्ट उतना तेज नहीं था। बदले भू राजनीतिक समीकरणों के चलते अब यूएई चाहता है कि उसकी रक्षा आपूर्ति एक ही स्रोत पर निर्भर न रहे। वहीं, भारत और यूएई के बीच मजबूत होते रणनीतिक संबंधों को देखते हुए, यूएई को भरोसा है कि भारत से मिलने वाली टेक्नोलॉजी पर किसी तरह का राजनीतिक दबाव या शर्त नहीं होगी, जैसा कि अक्सर अमेरिकी डिफेंस प्रोडक्ट्स खरीदने पर होता है।

दूसरी ओर, यूएई भी अब तेल आधारित अर्थव्यवस्था से आगे बढ़कर खुद को एक आधुनिक, तकनीकी रूप से सक्षम और रणनीतिक रूप से मजबूत राष्ट्र के रूप में स्थापित करने की दिशा में काम कर रहा है। ऐसे में भारत जैसे देश के साथ रक्षा, तकनीक और उत्पादन के क्षेत्र में साझेदारी उसे नए अवसर प्रदान कर सकती है।

आकाश मिसाइल सिस्टम में किन देशों की है दिलचस्पी?

आकाश मिसाइल सिस्टम (Akash Missile) को लेकर कई देशों ने रूचि दिखाई है। इनमें आर्मेनिया पहला देश है जिसने आकाश सिस्टम को खरीदा। नवंबर 2024 तक एक बैटरी (चार लॉन्चर) की डिलीवरी हो चुकी है। करीब 6,000 करोड़ रुपये का ये सौदा भारत के रक्षा निर्यात में मील का पत्थर है।

फिलीपींस की नौसेना इसे अपने तटीय रक्षा सिस्टम में शामिल करने की योजना बना रही है। 2025 में 200 मिलियन डॉलर का ऑर्डर संभावित है। दक्षिण-पूर्व एशिया में भारत का करीबी दोस्त वियतनाम भी इसे खरीदने की सोच रहा है। ये क्षेत्र में चीन के खिलाफ संतुलन बनाने में मदद कर सकता है।

इसके अलावा दिसंबर 2023 की रिपोर्ट्स के मुताबिक, दक्षिण अमेरिका का ब्राजील और अफ्रीका का मिस्र भी इस सिस्टम में रुचि दिखा रहे हैं। साथ ही, बेलारूस, मलेशिया, थाईलैंड और सूडान जैसे देशों ने भी अलग-अलग मौकों पर आकाश सिस्टम को लेकर बात की है। सूडान में 2022 के एक मिलिट्री प्रदर्शनी में इसे देखा भी गया था।

आकाश सिस्टम की खूबियां

आकाश मिसाइल सिस्टम 18 किलोमीटर की ऊंचाई तक 25 से 30 किलोमीटर की दूरी तक हवा में आने वाले खतरों को नष्ट कर सकता है। ये सिस्टम एक बार में चार टारगेट को निशाना बना सकता है। दिसंबर 2023 में हुए “अस्त्रशक्ति” अभ्यास में भारत ने दिखाया था कि एक ही फायरिंग यूनिट से चार टारगेट को ढेर किया जा सकता है। ये दुनिया में अपनी तरह का पहला प्रदर्शन था।

चाहे बारिश हो, धूप हो या कोहरा, आकाश एयर डिफेंस सिस्टम हर मौसम में काम करता है। इसका रडार और मिसाइल सिस्टम हर मौसम में सटीक रहता है।

ये सिस्टम चलते-फिरते प्लेटफॉर्म पर काम करता है। सेना के लिए टी-72 टैंक चेसिस पर और वायुसेना के लिए ट्रक और ट्रेलर पर इसे लगाया जाता है। इससे इसे जल्दी कहीं भी ले जाया जा सकता है।

इसमें इलेक्ट्रॉनिक काउंटर-काउंटर मेजर्स (ECCM) हैं, यानी दुश्मन अगर रडार को जाम करने की कोशिश करे, तो भी ये काम करता रहेगा।

आकाश की कीमत दूसरे देशों के सिस्टम से 8-10 गुना कम है। मिसाल के तौर पर, अमेरिका का पैट्रियट सिस्टम इससे कहीं महंगा है, लेकिन आकाश की सटीकता और मोबिलिटी इसे खास बनाती है।

इसमें रॉकेट-रामजेट सिस्टम है, जो मिसाइल को टारगेट तक पूरी स्पीड से ले जाता है। जो ये इसे रूस के SA-6 जैसा बनाता है।

इसका “राजेंद्र” रडार सिस्टम 60 किलोमीटर तक ट्रैक कर सकता है और एक साथ 64 टारगेट को देख सकता है। ये 8 मिसाइलों को गाइड कर सकता है, वो भी चार अलग-अलग टारगेट की ओर।

पहली मिसाइल से टारगेट को हिट होने की संभावना 88% है, और दूसरी मिसाइल के साथ ये 99% तक पहुंच जाती है। यानी ये लगभग अचूक है।

भारत ने बनाया एडवांस आकाश-एनजी सिस्टम

भारत ने इसका आकाश-एनजी (नेक्स्ट जेनरेशन) सिस्टम भी तैयार कर लिया है। आकाश-एनजी की शुरुआत 2010 के दशक में हुई, जब DRDO ने फैसला किया कि पुराने आकाश को और बेहतर करने की जरूरत है। इसे बनाने में भारत डायनामिक्स लिमिटेड (BDL) और टाटा पावर जैसे प्राइवेट सेक्टर की कंपनियों ने भी सहयोग किया है। इसका पहला टेस्ट जुलाई 2021 में ओडिशा के चांदीपुर टेस्ट रेंज में हुआ था, जिसमें इसने एक ड्रोन पर सटीक निशाना साधा। इसके बाद जनवरी 2024 में एक और कामयाब टेस्ट हुआ, जिसमें इसने हाई-स्पीड टारगेट को ढेर कर दिया।

आकाश-एनजी (नेक्स्ट जेनरेशन) 70-80 किलोमीटर तक मार कर सकता है। यानी दुश्मन को सीमा के पास आने से पहले ही रोक देगा। इसकी ऊंचाई सीमा भी 20-25 किलोमीटर तक है, जो इसे ऊंचाई पर उड़ने वाले टारगेट के खिलाफ कारगर बनाती है। वहीं पुराने आकाश की तुलना में ये हल्का है। इसका वजन करीब 300 किलोग्राम है, जबकि पुराने सिस्टम का वजन 700 किलो है। ये 2.5 मैक की स्पीड (ध्वनि से ढाई गुना तेज) तक जा सकता है।

इसमें एक एक्टिव इलेक्ट्रॉनिकली स्कैन्ड ऐरे (AESA) मल्टी-फंक्शन रडार लगा है। ये रडार 100 किलोमीटर से ज्यादा दूर तक टारगेट को देख सकता है और एक साथ कई निशानों को ट्रैक कर सकता है। ये पुराने “राजेंद्र” रडार से कहीं एडवांस है।

आकाश-एनजी सिस्टम एक बार में कई दुश्मनों पर निशाना साध सकता है। इसका “सीकर” (मिसाइल का गाइडेंस सिस्टम) इतना सटीक है कि तेजी से बदलते टारगेट को भी मात दे सकता है। इसके अलावा बारिश, कोहरा या रात का अंधेरा आकाश-एनजी हर मौसम में काम करता है। इसका ऑल-वेदर सिस्टम इसे भरोसेमंद बनाता है।

डीआरडीओ की योजना है कि 2026 तक आकाश-एनजी को भारतीय वायुसेना में शामिल कर लिया जाए।

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