Explainer: Star Wars वाला हथियार अब भारत के पास! Laser-DEW से पलभर में तबाह होंगे दुश्मन के ड्रोन-मिसाइल

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By हरेंद्र चौधरी

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📍नई दिल्ली | 2 days ago

Laser-DEW: आपने अगर स्टार वार्स मूवीज देखी होंगी तो फिल्मों में वो चमकते लाइटसेबर और अंतरिक्ष में लेजर की गोलियां भी याद होंगी, जो दुश्मनों को पल में खत्म कर देती थीं? साइंस फिक्शन फिल्मों में दिखने वाले लेजर हथियार अब हकीकत बन चुके हैं, और यह कमाल किया है भारत ने! अब भारत भी स्टार वार्स के हथियारों वाली कैटेगरी में शामिल हो गया है। रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) ने अपने एमके-दो (ए) लेजर-गाइडेड एनर्जी वेपन (DEW) का सफल परीक्षण किया है। यह हथियार ड्रोन, मिसाइल और छोटे प्रोजेक्टाइल को जेडी नाइट की तरह चुटकियों में बरबाद कर सकता है।

Explained: What is India’s Laser-DEW System that Destroys Drones in Seconds?

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रविवार को पहली बार भारत ने अपने 30-किलोवाट लेजर-बेस्ड हथियार का शानदार टेस्ट किया। इस हथियार ने चुटकियों में ड्रोन, मिसाइल, स्वार्म ड्रोन और सेंसर को नष्ट कर दिया। इस कामयाबी के साथ भारत अमेरिका, रूस, चीन, ब्रिटेन और इजरायल जैसे देशों की फेहरिस्त में शामिल हो गया है, जो स्टार वॉर्स जैसे हथियारों की दौड़ में हैं।

Laser-DEW: 3.5 किमी दूर ड्रोन को निशाना बनाया

13 अप्रैल को आंध्र प्रदेश के कुरनूल में नेशनल ओपन एयर रेंज (एनओएआर) में यह परीक्षण हुआ। यह कोई साधारण टेस्ट नहीं था, बल्कि मानो स्टार वॉर्स की गैलेक्सी में जंग का सीन हो! डीआरडीओ की टीम ने दिखाया कि उनका लेजर-डीईडब्ल्यू मार्क-II(ए) हथियार कितना ताकतवर है। इसने 3.5 किलोमीटर की दूरी पर उड़ रहे ड्रोन को निशाना बनाया, सात ड्रोनों के झुंड को नष्ट किया और ड्रोन व जमीन पर लगे निगरानी कैमरों व सेंसर को “ब्लाइंड” कर दिया।

Laser-DEW: कैसे काम करता है यह हथियार?

अब आपके मन में सवाल उठ रहा होगा कि ये लेजर हथियार आखिर करता क्या है? हम सभी ने बचपन में टॉर्च की रोशनी देखी है, जो अंधेरे में एक जगह को रोशन कर देती है। लेकिन इस हथियार की रोशनी इतनी तेज और गर्म होती है कि यह ड्रोन या मिसाइल को पल में जला सकती है। जब रडार या इसके अपने सेंसर किसी टारगेट को पकड़ते हैं, तो यह हथियार उस पर लेजर की शक्तिशाली किरण छोड़ता है। यह किरणें टारगेट को ब्लाइंड कर देती हैं या उसे इतना नुकसान पहुंचाती हैं कि वह काम करना बंद कर देता है। और सबसे मजेदार बात? इसे बार-बार इस्तेमाल किया जा सकता है, बिना किसी महंगे रॉकेट या गोली की जरूरत के। हमारे वैज्ञानिकों का कहना है कि इस हथियार को चलाने की लागत इतनी कम है कि इसे दो-तीन लीटर पेट्रोल जितने खर्च में इस्तेमाल किया जा सकता है।

Laser-DEW: पूरी तरह से स्वदेशी हथियार

इस हथियार को डीआरडीओ के सेंटर फॉर हाई एनर्जी सिस्टम्स एंड साइंसेज (चेस), हैदराबाद ने बनाया है। इसमें कई दूसरी डीआरडीओ लैब्स, भारतीय उद्योगों और शिक्षण संस्थानों का भी योगदान रहा है। यह पूरी तरह स्वदेशी हथियार है। डीआरडीओ के चेयरमैन डॉ. समीर वी. कामत ने कहा, “यह तो बस शुरुआत है। हम लेजर के अलावा माइक्रोवेव और इलेक्ट्रोमैग्नेटिक पल्स जैसे हथियारों पर भी काम कर रहे हैं। ये तकनीकें हमें स्टार वार्स जैसी ताकत देंगी।”

क्यों है यह हथियार खास?

DRDO के मुताबिक, ये तकनीक ‘बीम किल’ पर आधारित है, यानि किसी भी लक्ष्य को भेदने के लिए कोई रॉकेट या मिसाइल नहीं, बल्कि प्रकाश की रफ्तार से चलने वाली लेज़र बीम का इस्तेमाल किया जाता है। पारंपरिक मिसाइलों और हथियारों को चलाने में लाखों रुपये खर्च होते हैं। लेकिन इस हथियार का सबसे बड़ा फायदा यह है कि यह बेहद सस्ता पड़ता है, जितना खर्च दो लीटर पेट्रोल का है, उतने में दुश्मन का एक ड्रोन खत्म किया जा सकता है। यानी एक तरफ दुश्मन के पास कम लागत वाले ड्रोन हैं, और दूसरी तरफ भारत के पास उसे हराने के लिए कम खर्च वाली लेजर टेक्नोलॉजी।

इस तकनीक की खास बात यह है कि इसमें पारंपरिक मिसाइल या गोला-बारूद की तरह विस्फोट नहीं होता, न ही भारी खर्च होता है। इसमें सिर्फ ऊर्जा का उपयोग होता है और वह भी इतनी तेज़ कि एक बार टारगेट पर पड़ते ही उसका काम तमाम हो जाता है। आजकल सस्ते ड्रोन हमले एक बड़ा खतरा बन गए हैं। ऐसे में यह हथियार उनसे निपटने का सबसे सस्ता और प्रभावी तरीका है। साथ ही, यह आसपास के इलाकों को नुकसान पहुंचाए बिना सटीक निशाना लगाता है, जिससे जानमाल की हिफाजत होती है।

डीआरडीओ के सेंटर फॉर हाई एनर्जी सिस्टम्स एंड साइंसेज (चेस) के वैज्ञानिक डॉ. बी.के. दास ने बताया कि यह तकनीक भविष्य की है। आजकल दुनिया में युद्ध का तरीका बदल रहा है। पहले जहां बड़े-बड़े टैंक और मिसाइलों की बात होती थी, अब छोटे-छोटे ड्रोन और उनके झुंड दुश्मनों के लिए सिरदर्द बन रहे हैं। ऐसे में यह लेजर हथियार हमारे लिए गेम-चेंजर साबित हो सकता है। यह न सिर्फ सस्ता है, बल्कि इसे गाड़ियों पर लादकर कहीं भी ले जाया जा सकता है। यानी चाहे बॉर्डर हो या कोई और जगह, ये हथियार हमारी सेना के साथ तैयार रहेगा।

इसका बड़ा साइज है बड़ी चुनौती

हमारे वैज्ञानिकों के सामने अभी बड़ी चुनौती इसका बड़ा साइज है। अभी ये हथियार इतना बड़ा है कि इसे आसानी से हवाई जहाज या युद्धपोतों पर नहीं लगाया जा सकता। इसे और छोटा करने की कोशिशें की जा रही हैं, ताकि ये हर तरह की जंग में काम आ सके। इसके अलावा, डीआरडीओ अब और भी ताकतवर लेजर हथियार बनाने की योजना बना रहा है, जो 50 से 100 किलोवाट की ताकत के हों। साथ ही, वे एक और नई तकनीक पर काम कर रहे हैं, जिसे हाई-एनर्जी माइक्रोवेव कहते हैं।

भारतीय सेना के पास 23 ऐसे सिस्टम

फिलहाल भारतीय सेना के पास 2 किलोवॉट और 10 किलोवॉट क्षमता वाले करीब 23 ऐसे सिस्टम हैं, जिनकी मारक दूरी 1-2 किलोमीटर तक है। लेकिन अब जो नया Mk-II(A) सिस्टम तैयार हुआ है, वह इससे कहीं ज्यादा शक्तिशाली है। आने वाले 1 से डेढ़ साल में इसका यूजर ट्रायल शुरू किया जा सकता है, और DRDO इस तकनीक को भारतीय कंपनियों को सौंपने की प्रक्रिया में है ताकि इसका उत्पादन बड़े पैमाने पर हो सके।

तेज बारिश या धुंध में नहीं कर सकते काम

इस तरह के लेजर हथियारों में कुछ देश हमसे काफी आगे हैं। मिसाल के तौर पर, दुनिया के कुछ ही देशों के पास यह तकनीक है — जैसे अमेरिका, रूस, चीन, ब्रिटेन और इज़राइल। अमेरिका ने 60 किलोवॉट क्षमता वाली ‘Helios’ नामक लेज़र प्रणाली को अपनी युद्धपोतों पर तैनात किया है, जिसे 120 किलोवॉट तक बढ़ाया जा सकता है। वहीं इज़राइल भी अपनी ‘Iron Beam’ प्रणाली को अंतिम रूप दे रहा है, जिसकी रेंज 10 किलोमीटर है।

अब आप सोच रहे होंगे कि ये लेजर हथियार इतने कमाल के हैं, तो इन्हें अभी तक हर जगह क्यों नहीं इस्तेमाल किया जा रहा? इसका जवाब है कि अभी इनमें कुछ कमियां भी हैं। मिसाल के तौर पर, ये हथियार पारंपरिक हथियारों जितनी दूरी तक मार नहीं कर सकते। साथ ही, अगर मौसम खराब हो जैसे तेज बारिश या धुंध, तो इनका असर कम हो सकता है। लेकिन हमारे वैज्ञानिक इन कमियों को दूर करने में जुटे हैं। DRDO का कहना है कि जैसे-जैसे तकनीकी प्रगति होगी, वैसे-वैसे इन चुनौतियों को भी दूर कर लिया जाएगा। नई तकनीक जैसे बीम स्टीयरिंग और अडैप्टिव ऑप्टिक्स इस दिशा में मदद करेंगी।

नए एयरो इंजन पर काम कर रहा है DRDO

डीआरडीओ सिर्फ इस हथियार तक सीमित नहीं है। डॉ. कामत ने भारत के पहले पांचवीं पीढ़ी के स्टील्थ विमान, एडवांस्ड मीडियम कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एएमसीए) के बारे में भी बताया। इस विमान को तैयार होने में 10-15 साल लग सकते हैं। यह प्रोजेक्ट 2024 में शुरू हुआ है और 2035 तक इसके तैयार होने की उम्मीद है। इसके अलावा, डीआरडीओ एक नए एयरो इंजन प्रोग्राम पर काम कर रहा है, जो छठी पीढ़ी की तकनीक पर आधारित होगा। इसके लिए भारत किसी विदेशी कंपनी के साथ साझेदारी की योजना बना रहा है।

VSHORADS: DRDO का यह नया एयर डिफेंस सिस्टम कम ऊंचाई पर उड़ने वाले टारगेट को पलक झपकते ही कर देगा तबाह, ये हैं खूबियां

इसके अलावा DRDO के चेयरमैन डॉ. समीर वी. कामत ने यह भी बतााया, “कई प्रोजेक्ट अब मैच्योरिटी की ओर बढ़ रहे हैं। अगले छह महीने से एक साल के भीतर VSHORAD, MPATGM, LCA Mark II जैसे कई सिस्टम्स का इंडक्शन शुरू हो जाएगा। LCA Mark II की पहली उड़ान भी इस अवधि में होने की उम्मीद है।”

उनके मुताबिक, DRDO की कई बड़ी तकनीकों और प्रणालियों को जल्द भारतीय सेना के इस्तेमाल के लिए तैनात किया जाएगा, जिससे देश की आत्मनिर्भर रक्षा क्षमता को नई मजबूती मिलेगी।

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