Syria clashes: सीरिया में अल्पसंख्यक शिया, अलावी और क्रिश्चियन क्यों हैं निशाने पर? असद सरकार के पतन के बाद क्यों मचा कोहराम? पढ़ें Explainer

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By हरेंद्र चौधरी

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📍नई दिल्ली | 1 month ago

Syria clashes: सीरिया एक बार फिर से हिंसा और अस्थिरता के दौर से गुजर रहा है। बशर अल-असद के शासन के पतन के बाद से देश में जारी अस्थिरता ने अब एक खतरनाक मोड़ ले लिया है। हाल ही में लताकिया और टार्टूस जैसे तटीय क्षेत्रों में सरकार समर्थित सेनाओं और असद समर्थक विद्रोही गुटों के बीच हिंसक संघर्ष की खबरें सामने आई हैं। इस संघर्ष का केंद्र असद शासन के वफादार माने जाने वाले अलावी समुदाय के इलाके रहे, जिनके खिलाफ अब नए सत्ताधारी गुटों द्वारा हमले तेज हो गए हैं। इस खूनी हिंसा के बाद सीरिया के भविष्य को लेकर सवाल खड़े हो गए हैं।

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Syria clashes: सीरिया का सत्ता परिवर्तन: क्यों बना संकट की जड़?

सीरिया में दशकों से सत्ता में रहे बशर अल-असद का शासन कुछ महीनों पहले समाप्त हो गया था। इस सत्ता परिवर्तन को लेकर दुनियाभर में अलग-अलग प्रतिक्रियाएं देखने को मिलीं। कुछ लोगों ने इसे लोकतंत्र की ओर एक कदम माना, जबकि कुछ ने चेतावनी दी थी कि इससे क्षेत्र में अस्थिरता और हिंसा बढ़ सकती है। असद शासन के पतन के बाद, हैयात तहरीर अल-शाम (HTS) जैसे समूहों ने सत्ता पर कब्जा जमाया। हालांकि, सत्ता परिवर्तन के बाद भी हिंसा का दौर नहीं थमा।

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तटीय इलाकों लताकिया-टार्टूस में क्यों छिड़ा संघर्ष?

सीरिया का लताकिया-टार्टस क्षेत्र भूमध्य सागर के किनारे स्थित है। लताकिया और टार्टूस सीरिया के प्रमुख तटीय शहर हैं, जहां अलावी समुदाय की संख्या अधिक है। यहां असद परिवार का गृहनगर अल-कर्दाहा भी स्थित है। जब बशर अल-असद का शासन गिरा, तो आशंका जताई गई थी कि अलावी समुदाय के खिलाफ बदले की कार्रवाई हो सकती है। यही कारण है कि असद समर्थकों ने अपने प्रभावशाली इलाकों से संघर्ष की शुरुआत की। बनियास शहर में तो सीरिया की सबसे बड़ा ऑयल रिफाइनरी भी है, जहां पर भी आतंकवादी गुटों ने हमला करने की कोशिश की, लेकिन सुरक्षाबलों ने इसे विफल कर दिया। लेकिन सत्ता परिवर्तन के बाद इन इलाकों में असद समर्थकों और नई सरकार के समर्थकों के बीच टकराव शुरू हो गया। इसकी शुरुआत 6 मार्च को हुई, जब, सरकारी बलों और असद समर्थक गुटों के बीच झड़पें शुरू हुईं। इस संघर्ष में अब तक सैकड़ों लोगों की जान जा चुकी है, जिनमें बड़ी संख्या में आम नागरिक भी शामिल हैं।

कैसे हुई संघर्ष की शुरुआत?

6 मार्च को, सीरियाई सरकारी बलों ने लताकिया, बनियास, टार्टूस और जबलेह जैसे तटीय शहरों में सैन्य अभियान शुरू किया। इसका उद्देश्य उन “रेजिम रेमनेंट्स” यानी असद शासन के वफादारों के खिलाफ कार्रवाई करना था, जिन्होंने नए सत्ता-व्यवस्था को मानने से इनकार कर दिया था। इन इलाकों में पूर्व राष्ट्रपति बशर अल-असद के समर्थक और उनके शासन से जुड़े सैन्य गुट सक्रिय बताए जा रहे हैं। 6 मार्च को असद समर्थक विद्रोही गुटों ने लताकिया के पास सुरक्षा बलों पर घात लगाकर हमला किया। इस हमले में कम से कम 16 सुरक्षाकर्मी और रक्षा मंत्रालय के अधिकारी मारे गए। बताया जा रहा है कि ये हमला अचानक नहीं था, बल्कि पहले से ही इसकी योजना बनाई गई थी। इस हमले के बाद संघर्ष तेज हो गया और अन्य तटीय शहरों में भी हिंसा फैल गई।

सरकारी मीडिया के अनुसार, यह हमला पहला नहीं था, बल्कि पिछले तीन महीनों में ऐसे कई हमले हो चुके हैं। इस घटना के बाद सीरिया की अंतरिम सरकार ने कड़े कदम उठाते हुए सैन्य ऑपरेशन शुरू किया। लेकिन इस बीच, लताकिया और आसपास के इलाकों में हत्या, अपहरण, लूट और उत्पीड़न की घटनाओं में तेजी आई है। रिपोर्टों के मुताबिक, नागरिकों को खुलेआम मारा जा रहा है, जिससे स्थानीय आबादी में भय का माहौल बना हुआ है और हजारों लोगों को विस्थापित होना पड़ा।

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सीरियन ऑब्जर्वेटरी फॉर ह्यूमन राइट्स (SOHR) की रिपोर्ट के अनुसार, इस संघर्ष में अब तक लगभग 1,311 लोग मारे जा चुके हैं, जिनमें से 830 आम नागरिक, 230 सुरक्षा कर्मी और 250 सशस्त्र लड़ाके शामिल हैं। हालांकि, इन आंकड़ों की स्वतंत्र रूप से पुष्टि नहीं हो पाई है, लेकिन घटनास्थल से मिल रही जानकारियां इसकी गंभीरता की पुष्टि करती हैं।

Syria clashes: अलावी समुदाय क्यों बना निशाना?

सत्ता परिवर्तन के बाद अलावी समुदाय को निशाना बनाए जाने की खबरें सामने आई हैं। असद शासन में अलावी समुदाय को शासन का प्रमुख समर्थक माना जाता था। लेकिन अब, जब नई सरकार सत्ता में है, तो विद्रोही गुटों ने अलावी समुदाय के खिलाफ हिंसा तेज कर दी है।

लताकिया और टार्टूस जैसे शहरों में रहने वाले अलावी लोगों के घरों पर हमले हुए, कई लोगों को अगवा कर लिया गया और महिलाओं के साथ भी अत्याचार की खबरें सामने आई हैं। इसके अलावा, कुछ रिपोर्ट्स में यह भी कहा गया है कि अलावी समुदाय के लोगों को उनके धर्म के आधार पर प्रताड़ित किया गया है।

Syria clashes: कौन लड़ रहा है किसके खिलाफ?

सरकारी सुरक्षा बलों ने असद शासन के वफादार माने जाने वाले पुराने सैन्य अधिकारियों के नेतृत्व में बने सशस्त्र गुटों से मोर्चा लिया है। इन गुटों को “मिलिट्री काउंसिल फॉर द लिबरेशन ऑफ सीरिया” के नाम से जाना जा रहा है।

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इस गुट का नेतृत्व असद की रिपब्लिकन गार्ड में शामिल रहे मेजर मुकदाद फतेहा और ब्रिगेडियर जनरल गियाथ सुलेमान डल्ला कर रहे हैं। इनका दावा है कि असद शासन के पतन के बाद अलावी समुदाय को निशाना बनाया जा रहा है। फतेहा ने सोशल मीडिया पर एक वीडियो संदेश जारी कर “हयात तहरीर अल-शाम” (HTS) के खिलाफ ‘सीरिया के स्वतंत्रता संघर्ष’ की बात कही थी। इसके अलावा, ब्रिगेडियर जनरल गियाथ सुलैमान डल्ला ने भी अल्पसंख्यक समुदायों की रक्षा और ‘सीरिया की मुक्ति के लिए सैन्य परिषद’ के गठन की घोषणा की थी।

Syria clashes: नागरिकों की हालत बेहद खराब

तटीय इलाकों में रह रहे नागरिक भय के साए में जी रहे हैं। लताकिया के एक निवासी ने सोशल मीडिया पर लिखा, “हम बाहर नहीं निकलते, खिड़कियां तक नहीं खोलते। यहां कोई सुरक्षा नहीं है, अलावी समुदाय के लिए तो बिल्कुल नहीं।” इन इलाकों से खबरें आ रही हैं कि अलावी नागरिकों को उनके घरों से खींचकर फांसी पर चढ़ाया जा रहा है। महिलाओं को अस्पतालों से घसीट कर ले जाया जा रहा है और उनका सामूहिक नरसंहार किया जा रहा है। कई चश्मदीदों के अनुसार, बंदूकधारियों ने लोगों को उनके घरों से बाहर निकाला और सार्वजनिक रूप से उनका सिर कलम कर दिया।

इस हिंसा के चलते हजारों लोगों को घर छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा है। रिपोर्ट्स के अनुसार, अलावी समुदाय के लोग डर के कारण शहरों से भाग रहे हैं, क्योंकि उन्हें निशाना बनाया जा रहा है। कुछ लोगों ने बताया कि उनके पड़ोसियों को जबरन घर से निकालकर अगवा किया गया। वहीं, कई लोगों को डर है कि हिंसा का अगला शिकार वे न बन जाएं।

अल्पसंख्यकों की स्थिति

सीरिया में अलावी, शिया और ईसाई समुदायों की स्थिति बेहद चिंताजनक है। अल जज़ीरा की एक रिपोर्ट के अनुसार, आतंकवादी संगठन अलावी समुदाय के बच्चों को सुन्नी बनाने की साजिश कर रहे हैं। सोशल मीडिया पर भी कई वीडियो सामने आए हैं, जिनमें इन समुदायों के खिलाफ हिंसा और हत्या को बढ़ावा देने वाले बयान देखे जा सकते हैं।

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सीरियाई सरकार की प्रतिक्रिया

सीरिया के अस्थायी राष्ट्रपति अहमद अल-शराआ ने इस संकट से निपटने के लिए दो समितियों का गठन किया है। पहली समिति मार्च 6 के हमलों की जांच करेगी, जबकि दूसरी समिति ‘सुप्रीम कमेटी फॉर सिविल पीस’ प्रभावित क्षेत्रों में नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने का प्रयास करेगी। राष्ट्रपति अल-शराआ ने हाल ही में एक मस्जिद में संबोधन के दौरान कहा कि देश को एकजुट रखने और शांति बहाल करने के लिए सरकार पूरी कोशिश कर रही है। उन्होंने हिंसा में शामिल दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई का आश्वासन भी दिया।

अंतरराष्ट्रीय समुदाय की भूमिका

सीरिया में बढ़ती हिंसा पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय की नजर बनी हुई है। संयुक्त राष्ट्र ने सीरिया में हो रही हिंसा की निंदा की है और सभी पक्षों से संयम बरतने की अपील की है। इसके अलावा, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने भी सीरिया में जारी हिंसा पर चर्चा के लिए आपातकालीन बैठक बुलाई है। यूरोपीय संघ (EU), अमेरिका और रूस ने इस मुद्दे पर चिंता जताई है और सीरिया सरकार से हिंसा रोकने की अपील की है।

हालात हो सकते हैं बेकाबू

सत्ता परिवर्तन के बाद अलावी और शिया समुदायों के खिलाफ हो रही हिंसा को लेकर चिंता बढ़ गई है। अभी भी असद समर्थक गुट तटीय इलाकों में संघर्ष कर रहे हैं, लेकिन उनके पास हथियारों की कमी है। जानकारों का मानना है कि अगर यही स्थिति रही, तो ईरान, इराक और हिजबुल्लाह जैसे गुट इन अल्पसंख्यकों को समर्थन देना शुरू कर सकते हैं।

इसके अलावा, ऐसी भी खबरें हैं कि कई अलावी नागरिक रूस के तारतूस में स्थित नौसैनिक अड्डे पर शरण लिए हुए हैं। अगर रूस या ईरान इन गुटों को हथियार और समर्थन देने लगते हैं, तो संघर्ष और तेज हो सकता है।

विशेषज्ञों का मानना है कि यदि स्थिति को नियंत्रित नहीं किया गया तो यह हिंसा गृहयुद्ध का रूप ले सकती है। साथ ही, इससे पूरे मध्य पूर्व में अस्थिरता बढ़ सकती है।

विशेषज्ञों का मानना है कि सीरिया में शांति बहाली के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय को सख्त कदम उठाने होंगे। अमेरिका और रूस को एक साथ मिलकर संघर्षरत पक्षों पर दबाव बनाना चाहिए ताकि वे नागरिकों पर हमले बंद करें। इसके अलावा, मानवाधिकार संगठनों को भी इस संकट में सक्रिय भूमिका निभानी होगी, ताकि हिंसा के शिकार लोगों को राहत पहुंचाई जा सके।

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