📍नई दिल्ली | 2 months ago
Army Air Defence: रूस-यूक्रेन जंग में जिस तरह से ड्रोन का इस्तेमाल हुआ है, उससे भारतीय सेना ने बड़ाा सबक लिया है। भारतीय सेना अब मॉडर्न वॉरफेयर में ड्रोन की चुनौतियों से निपटने के लिए अपने एयर डिफेंस सिस्टम को और मजबूत करने की तैयारी कर रही है। ड्रोन हमलों के बढ़ते खतरे को देखते हुए सेना के आर्मी एयर डिफेंस खास रणनीति तैयार की है, जिसका मकसद दुश्मन के ड्रोन और हवाई हमलों को रोकना, उन्हें पहचानना और जरूरत पड़ने पर उन्हें नष्ट करना शामिल है।

भारतीय सेना की आर्मी एयर डिफेंस कॉर्प्स (AAD) के बारे में यह बताना जरूरी है कि यह पहले टेरिटोरियल आर्मी का हिस्सा थी, लेकिन 10 जनवरी 1994 को इसे आर्टिलरी से अलग कर एक स्वतंत्र इकाई बनाया गया। इसका मुख्य उद्देश्य किसी भी हवाई खतरे से समय रहते निपटना है, ताकि वह हमले में तब्दील न हो सके।
सेना का एयर डिफेंस सिस्टम देश के महत्वपूर्ण इलाकों और संवेदनशील ठिकानों की सुरक्षा करता है। यह सुरक्षा कई लेयर्स में काम करने वाले सिस्टम के जरिए दी जाती है, जिससे किसी भी खतरे का पहले ही पता लगाया जा सके और उसे खत्म किया जा सके।
Army Air Defence: ड्रोन हमलों का खतरा बढ़ा
आर्मी एयर डिफेंस कॉर्प्स के महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल सुमेर इवान डी’कुन्हा ने बताया कि हाल के कुछ सालों में ड्रोन से हुए हमले दुनिया भर चिंता का विषय बन गए हैं। 2019 में सऊदी अरब की ऑयल कंपनी अरामको पर हमला, 2020 में ईरानी जनरल कासिम सुलेमानी की ड्रोन हमले में मौत, 2021 में पठानकोट एयरबेस पर हमला और रूस-यूक्रेन युद्ध में ड्रोन के बड़े पैमाने पर इस्तेमाल ने यह साफ कर दिया है कि भविष्य की जंग में ड्रोन एक अहम हथियार होंगे।
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Army Air Defence: नैनो ड्रोन भी होंगे ट्रैक
भारतीय सेना ने इस खतरे को समझते हुए अपने एयर डिफेंस सिस्टम को अपग्रेड करने का फैसला किया है, ताकि किसी भी संभावित हमले को समय रहते रोका जा सके। भारतीय सेना छोटे और कम ऊंचाई पर उड़ने वाले ड्रोन का पता लगाने के लिए लो-लेवल लाइटवेट रडार (LLLR) को शामिल कर रही है। यह रडार छोटे से छोटे यानी नैनो ड्रोन को भी पहचान सकता है।
इसके अलावा, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) की मदद से अपने और दुश्मन के ड्रोन की पहचान करने की क्षमता भी डेवलप की जा रही है। महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल डी’कुन्हा के मुताबिक सेना के ‘आकाशतीर’ कमांड और रिपोर्टिंग सिस्टम को भी अपग्रेड किया जा रहा है, जिससे दुश्मन के ड्रोन को ट्रैक कर उसे समय रहते खत्म किया जा सके। उन्होंने बताया कि इलेक्ट्रॉनिक IFF (Identify Friend or Foe) और AI बेस्ड प्रोफाइलिंग के जरिए किसी भी संदिग्ध ड्रोन को व्हाइट लिस्ट किया जा सकता है।
L-70 को रिप्लेस करेंगी स्मार्ट सक्सेसर गन
लेफ्टिनेंट जनरल सुमेर इवान डी’कुन्हा के मुताबिक सेना ने द्वितीय विश्व युद्ध के जमाने की पुरानी L-70 और ZU-23mm एंटी-एयरक्राफ्ट गन को नई स्वदेशी स्मार्ट सक्सेसर गनों से रिप्लेस करने का फैसला किया है। अब इनकी जगह स्मार्ट गोला-बारूद वाली नई तोपें तैनात की जाएंगी। इस प्रोजेक्ट के तहत 220 गनों के लिए पहले ही RFP (रिक्वेस्ट फॉर प्रपोजल) जारी कर दिया गया है। इसका अपग्रेडेड वर्जन स्मार्ट एम्यूनिशन के साथ जुलाई 2025 में ट्रायल के लिए तैयार होगा और 2026 के मई-जून तक कॉन्ट्रैक्ट पूरा होने की संभावना है। फिलहाल सेना बाहर से गन खरीदने के मूड में नहीं है।
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लेफ्टिनेंट जनरल डी’कुन्हा के अनुसार, स्मार्ट गोला-बारूद की खासियत यह होगी कि हर गोला पूर्व-निर्धारित प्रोग्रामिंग के तहत फायर किया जा सकेगा। स्मार्ट एम्युनिशन का सबसे बड़ा फायदा यह है कि 17 पारंपरिक राउंड के मुकाबले केवल एक स्मार्ट राउंड ही दुश्मन के ड्रोन को गिरा देगा। इसमें 17 हाई एक्सप्लोसिव राउंड की ताकत केवल एक स्मार्ट राउंड में मिल जाती है। इससे दुश्मन के ड्रोन को गिराने की संभावना बढ़ जाती है और लॉजिस्टिक्स की लागत कम हो जाती है। इसके अलावा, 23 एमएम की तोपों के लिए भी फ्रेगमेंटेड एम्युनिशन तैयार किया जा रहा है, जिससे वे और प्रभावी बन सकें।
VSHORADS: छोटे एयर डिफेंस सिस्टम की जरूरत
DRDO ने VSHORADS (वेरी शॉर्ट रेंज एयर डिफेंस सिस्टम) का कुछ ट्रायल्स पूरे कर लिए हैं, लेकिन इसे फाइनल होने में अभी कुछ समय लगेगा। सेना को इस सिस्टम की ज्यादा संख्या में जरूरत है, लेकिन वर्तमान में इसका प्रोडक्शन जरूरत के मुताबिक नहीं हो पा रहा है। इस कमी को पूरा करने के लिए जल्द ही भारतीय उद्योगों को आरएफआई जारी किया जाएगा, ताकि घरेलू रक्षा क्षेत्र को भी बढ़ावा मिल सके।
GM (SP) गन और मिसाइल का डेडली कॉम्बिनेशन
GM (SP) सिस्टम में फ्रैगमेंटेशन एम्यूनिशन वाली गन और 8-10 किमी तक मार करने वाली मिसाइल शामिल होगी। सेना के पास पहले से ही कई रूसी एयर डिफेंस सिस्टम मौजूद हैं, जिन्हें बनाए रखा जाएगा। हालांकि, नए गन सिस्टम के लिए अगले कुछ महीनों में RFP जारी होने की संभावना है। इसके लिए सेना की मैकेनाइज़्ड फॉर्मेशन (टैंक और बख्तरबंद वाहनों की टुकड़ियां) के लिए बड़ी संख्या में सिस्टम की जरूरत होगी। हालांकि, भारतीय रक्षा उद्योग ने कहा है कि इस परियोजना को पूरा करने में 7-8 साल लग सकते हैं। सेना इसे कम समय में पूरा करने की कोशिश कर रही है ताकि क्षमता की कमी को जल्द से जल्द दूर किया जा सके।
क्या है ‘सॉफ्ट किल’ और ‘हार्ड किल’?
ड्रोन हमलों को रोकने के लिए सेना ने पहले ही L-70 गन को “ज़ेन एंटी-ड्रोन एयर डिफेंस सिस्टम” (ZADS) के साथ जोड़ा है। इसे ‘सॉफ्ट किल’ सिस्टम कहा जाता है। इस सिस्टम में रेडियो फ्रिक्वेंसी के जरिए 10 मीटर से 10 किमी तक ड्रोन को ट्रैक करने और उसे जाम करने की क्षमता है, जिससे दुश्मन की ओर से आने वाले छोटे ड्रोन खतरों को नाकाम किया जा सकता है। हालांकि, अगर ड्रोन जाम होने के बावजूद आगे बढ़ता है, तो ‘हार्ड किल’ यानी L-70 की अपग्रेडेड गन उसे तुरंत मार गिरा सकती है।
उन्होंने बताया कि भारतीय सेना ने भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BEL) और DRDO के बनाए इंटीग्रेटेड ड्रोन डिटेक्शन और इंटरडिक्शन सिस्टम (IDD&IS) को भी शामिल किया है। यह सिस्टम हाई-पावर लेजर और माइक्रोवेव हथियारों का इस्तेमाल करता है, जिससे दुश्मन के ड्रोन को हवा में ही नष्ट किया जा सकता है।
ड्रोन हमलों से निपटेंगी मिसाइलें
इसके अलावा भारतीय सेना ड्रोन हमलों से निपटने के लिए कई नई मिसाइलें भी शामिल कर रही हैं। लेफ्टिनेंट जनरल डी’कुन्हा के मुताबिक, QRSAM (Quick Reaction Surface-to-Air Missile) सिस्टम को जल्द ही सेना में शामिल किया जाएगा। यह मिसाइल 30 किलोमीटर तक के दुश्मन ड्रोन या एयरक्राफ्ट को मार गिराएगी। यह DRDO का बेहद सफल प्रोजेक्ट माना जा रहा है और सेना इस पर काफी भरोसा जता रही है। अगले चार से पांच महीनों में इसका कॉन्ट्रैक्ट फाइनल हो सकता है।
साथ ही, AKASH मिसाइल सिस्टम की दो रेजीमेंट पहले ही सेना में शामिल की जा चुकी हैं, और इनका हाई एल्टीट्यूड इलाकों में ट्रायल भी किया जा रहा है। इसके अलावा MRSAM (Medium Range Surface-to-Air Missile) को भी सेना में तैनात कर दिया गया है और इसकी टेस्ट फायरिंग जल्द शुरू होगी।
Army Air Defence: ड्रोन किल सिस्टम
भारतीय सेना अब ‘ड्रोन किल सिस्टम’ विकसित कर रही है, जिसमें ड्रोन के खिलाफ ड्रोन टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जाएगा। यानी कि इस प्रणाली में “ड्रोन ऑन ड्रोन” या “रॉकेट ऑन ड्रोन” टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल होगा। इसके अलावा, रॉकेट बेस्ड काउंटर-ड्रोन सिस्टम और सेना ट्रैक-माउंटेड (वाहनों पर तैनात) काउंटर-ड्रोन सिस्टम पर भी काम कर रही है, जिसमें 64 रॉकेट तैनात होंगे, जो दुश्मन के ड्रोन को पल भर में गिरा देंगे।
‘मेक इन इंडिया’ पर फोकस
लेफ्टिनेंट जनरल डी’कुन्हा जोक देकर कहते हैं कि भारतीय सेना अब स्वदेशी टेक्नोलॉजी को बढ़ावा देने पर जोर दे रही है। इसके तहत देश की निजी कंपनियों और स्टार्टअप्स के साथ मिलकर नई एयर डिफेंस टेक्नोलॉजी को डेवलप किया जा रहा है। इससे न केवल आत्मनिर्भरता बढ़ेगी, बल्कि महंगे विदेशी हथियारों पर निर्भरता भी कम होगी।
वह कहते हैं कि सेना के सामने सबसे बड़ी चुनौती हजारों ड्रोन को सीमित हवाई क्षेत्र में ट्रैक और नष्ट करना है। खासकर तब, जब दुश्मन देश ड्रोन वॉरफेयर में तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। वह कहते हैं कि ड्रोन हमलों को रोकने के लिए भारतीय वायुसेना (IAF) के साथ तालमेल बेहद जरूरी है, क्योंकि देश के एयर डिफेंस की प्राथमिक जिम्मेदारी वायुसेना की है। सेना और वायुसेना मिलकर एयर डिफेंस से जुड़ीं नई रणनीतियां बना रही हैं, ताकि फ्यूचर वॉरफेयर में किसी भी हवाई खतरे से प्रभावी तरीके से निपटा जा सके।