Su-57 Vs F-35 में से किसे चुने भारत? पूर्व IAF और आर्मी चीफ ने कही ये बड़ी बात, पाकिस्तान के लिए FGFA नहीं, केवल मिसाइलें ही काफी हैं!

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By News Desk

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📍नई दिल्ली | 2 months ago

Su-57 Vs F-35: अमेरिका का पांचवी पीढ़ी की फाइटर जेट F-35 लाइटनिंग II भारत को खरीदना चाहिए या नहीं, इसे लेकर चर्चाओं का दौर जारी है। रक्षा विशेषज्ञों की इसे लेकर अपनी-अपनी राय है। कुछ इसे खरीदने के पक्ष में हैं तो कुछ का कहना है कि भारत को रूसी Su-57 फेलॉन की तरफ रुख करना चाहिए। लेकिन इसी बीच भारतीय वायुसेना और भारतीय थलसेना रिटायर्ड प्रमुखों का अहम बयान सामने आया है। पूर्व आईएएफ चीफ एयर चीफ मार्शल (सेवानिवृत्त) विवेक राम चौधरी और पूर्व सेना प्रमुख जनरल मनोज मुकुंद नरवणे ने भी अपनी इस पर अपनी प्रतिक्रिया दी है। वीआर चौधरी का कहना है कि भारत को अपने स्वदेशी AMCA प्रोजेक्ट पर फोकस करना चाहिए। वहीं, जनरल नरवणे ने कहा कि भारतीय वायुसेना को अपनी जरूरतों के हिसाब से ही अंतिम फैसला करे।

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Su-57 Vs F-35: भारत को FGFA की सख्त जरूरत

‘द प्रिंट’ के दो अलग-अलग वीडियो इंटरव्यू में दोनों ने अपनी प्रतिक्रिया जाहिर की। द प्रिंट के डिफेंस जर्नलिस्ट स्नेहेश एलेक्स फ़िलिप के साथ बातचीत में पूर्व वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल (सेवानिवृत्त) वी.आर. चौधरी ने कहा कि भारत को पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमानों (5th Generation Fighter Aircraft – FGFA) की सख्त जरूरत है और भारत को अपने स्वदेशी प्रोजेक्ट्स पर ध्यान देना चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि इन जहाजों में स्टील्थ टेक्नोलॉजी, डेटा और सेंसर फ्यूजन और बेहतर सुपर-मेन्युवरबिलिटी होती है। इन सभी फीचर्स का मॉर्डन वारफेयर में फायदा मिलता है। इन विमानों को इस तरह से डिजाइन किया जाता है कि ये दुश्मन के रडार सिस्टम से बच सकें और मिशन को सफलतापूर्वक अंजाम दे सकें।

Su-57 Vs F-35: 2018 में मोदी सरकार ने इसलिए तोड़ी रूस से साझेदारी

पूर्व वायुसेना प्रमुख ने बताया कि भारत ने पहले रूस के साथ मिलकर FGFA (Sukhoi Su-57) प्रोजेक्ट में भागीदारी की थी। 2007 में भारत ने इस प्रोजेक्ट में निवेश किया और 2010 में एक समझौते पर हस्ताक्षर किए। लेकिन 2018 में मोदी सरकार ने इस प्रोजेक्ट से बाहर निकलने का फैसला किया। उन्होंने कहा कि भारत के इस प्रोजेक्ट से बाहर निकलने के दो मुख्य कारण थे।

पहला कारण यह था कि भारत ने अपने स्वदेशी फाइटर जेट प्रोजेक्ट (AMCA – Advanced Medium Combat Aircraft) पर फोकस करने का फैसला किया। भारत को यह अहसास हो गया कि वह खुद भी एक पांचवीं पीढ़ी का फाइटर जेट बना सकता है। दूसरी वजह थी कि रूस के साथ हुई डील में टेक्नोलॉजी ट्रांसफर को लेकर क्लैरिटी नहीं थी। भारत को यह स्पष्ट नहीं था कि उसे इस प्रोजेक्ट में कितना तकनीकी ज्ञान मिलेगा और भविष्य में यह भारत के लिए कितना फायदेमंद रहेगा।

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यह पूछने पर कि 2018 में भारतीय वायुसेना ने 114 मल्टी-रोल फाइटर एयरक्राफ्ट (MRFA) प्रोजेक्ट के लिए रिक्वेस्ट जारी की थी। उस समय चर्चा थी कि अगर अमेरिका भारत को F-35 ऑफर करता है, तो भारतीय वायुसेना इस पर विचार कर सकती है। लेकिन अब जब अमेरिका ने F-35 को लेकर बातचीत शुरू की है, तो सवाल उठता है कि क्या भारत को इसे लेना चाहिए? इस पर पूर्व एयर चीफ मार्शल का कहना है कि भारत को सबसे पहले अपनी क्षमता को बढ़ाने और वायुसेना की ताकत बनाए रखने पर ध्यान देना चाहिए। उन्होंने कहा कि IAF का भविष्य LCA-Mk2, AMCA और MRFA प्रोजेक्ट्स पर निर्भर करेगा।

Su-57 Vs F-35: AMCA प्रोजेक्ट को दे प्राथमिकता

यह पूछने पर कि क्या भारत को F-35 लेना चाहिए या स्वदेशी AMCA पर ध्यान देना चाहिए?  इस सवाल का जवाब देते हुए पूर्व वायुसेना प्रमुख ने कहा कि F-35 भारत के लिए बहुत महंगा सौदा हो सकता है। इसके अलावा, यह विमान अमेरिका की कड़ी निगरानी के तहत आता है, जिसमें भारत को इस जेट ऑपरेशन, रिपेयरिंग औऱ मेंटेनेंस के लिए पूरी तरह अमेरिका पर निर्भर रहना पड़ेगा। भारत के पास पहले से ही AMCA प्रोजेक्ट है, जिसके 2035 तक तैयार होने की उम्मीद है। हालांकि, इसमें अभी समय लगेगा, लेकिन भारत को इस प्रोजेक्ट को प्राथमिकता देनी चाहिए।

पाकिस्तान के लिए केवल मिसाइलें काफी

वहीं चीन के पास पहले से ही J-20 पांचवीं पीढ़ी का लड़ाकू विमान है, और अब खबरें हैं कि पाकिस्तान भी चीन से पांचवीं पीढ़ी के जेट्स खरीदने की योजना बना रहा है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या भारत को भी तुरंत पांचवीं पीढ़ी का जेट खरीदना चाहिए? इस पर पूर्व एयर चीफ मार्शल ने कहा कि भारत को चीन के बढ़ते खतरे को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए, लेकिन पाकिस्तान को रोकने के लिए पांचवीं पीढ़ी का विमान जरूरी नहीं है। भारत के पास पहले से ही बियॉन्ड विजुअल रेंज मिसाइलें (BVR), ब्रह्मोस मिसाइलें और अत्याधुनिक एयर डिफेंस सिस्टम हैं, जो पाकिस्तान के किसी भी हमले का मुंहतोड़ जवाब दे सकते हैं।

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मेंटेनेंस काफी खर्चीला है F-35 का, बोले- जनरल नरवणे

वहीं पूर्व सेना प्रमुख जनरल नरवणे का भी कहना है कि अमेरिका का F-35 लाइटनिंग II दुनिया का सबसे एडवांस स्टील्थ फाइटर जेट है। यह लंबी दूरी के मिशन को आसानी से अंजाम दे सकता है। इसमें कोई शक नहीं है। लेकिन, यह विमान बहुत महंगा है और इसका मेंटेनेंस भी काफी खर्चीला है। इसके सभी कंपोनेंट्स और स्पेयर पार्ट्स के लिए भारत को पूरी तरह अमेरिका पर निर्भर रहना पड़ेगा। इसके अलावा, यह विमान अमेरिका की डिफेंस पॉलिसी से भी जुड़ा है जिससे भारत की स्ट्रेटेजिक ऑटोनोमी पर भी असर पड़ सकता है।

Su-57 फेलॉन का प्रोडक्शन धीमी रफ्तार से

जनरल नरवणे ने आगे कहा कि रूस का Su-57 फेलॉन को अमेरिका के F-35 के मुकाबले तैयार किया गया है। इसमें स्टील्थ डिजाइन, एडवांस सेंसर और बेहतरीन सुपर-मेन्युवरबिलिटी जैसी खूबियां हैं। साथ ही इस जेट को भारतीय वायुसेना के मौजूदा रूसी फाइटर जेट्स के साथ आसानी से इंटीग्रेट किया जा सकता है, जिससे इसे वायुसेना में शामिल करना ज्यादा आसान होगा। वहीं इसकी ऑपरेशनल कॉस्ट F-35 की तुलना में कम है। साथ ही, रूस इस विमान से जुड़ी कुछ टेक्नोलॉजी को भी भारत को ट्रांसफर भी कर सकता है, जिससे देश की आत्मनिर्भरता को बढ़ावा मिलेगा। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि Su-57 की स्टील्थ क्षमता F-35 के मुकाबले कमजोर है, और इसका प्रोडक्शन धीमी रफ्तार से हो रहा है। फिलहाल, इसकी सीमित संख्या उपलब्ध है, और यह अभी तक पूरी तरह डेवलप नहीं हुआ है।

Su-57 की स्टील्थ कैपेबिलिटी F-35 के मुकाबले कमजोर

उन्होंने आगे कहा कि भारत के पास तीन विकल्प हैं। पहला, F-35 खरीदना, जिससे भारतीय वायुसेना को लेटेस्ट स्टील्थ कैपेबिलिटी मिलेगी, लेकिन इससे स्ट्रेटेजिक ऑटोनोमी पर असर पड़ सकता है। दूसरा, Su-57 खरीदना, जिससे भारत को रूसी तकनीक और कम लागत का फायदा मिलेगा, लेकिन इसमें स्टील्थ कैपेबिलिटी थोड़ी कमजोर हो सकती है। तीसरा, AMCA प्रोजेक्ट पर फोकस करना, जिससे भारत आत्मनिर्भर बनेगा, लेकिन इसमें 10-15 साल लग सकते हैं। यह प्रोजेक्ट अभी शुरुआती डिजाइन स्तर पर है और इसे ऑपरेशनल होने में 2035-2040 तक का समय लग सकता है।

भारतीय वायुसेना की जरूरतों को देखे भारत

जनरल एम.एम. नरवणे ने कहा कि भारतीय वायुसेना को ही अंतिम निर्णय लेना चाहिए। उन्होंने कहा कि भारत को अपनी सुरक्षा जरूरतों को ध्यान में रखते हुए किसी भी फाइटर जेट का चुनाव करना चाहिए। उन्होंने कहा कि भारत को अपने वायुसेना बेड़े को मजबूत करने के लिए जल्द ही फैसला लेना होगा। अगर भारत F-35 को चुनता है, तो यह अमेरिका के साथ रक्षा संबंधों को और मजबूत करेगा। यदि भारत Su-57 को चुनता है, तो रूस के साथ उसकी रक्षा साझेदारी और गहरी हो जाएगी। लेकिन अगर भारत AMCA प्रोजेक्ट पर फोकस करता है, तो यह आत्मनिर्भरता की दिशा में एक बड़ा कदम होगा, लेकिन इसे पूरा होने में वक्त लगेगा। अब यह भारत को तय करना होगा कि उसे F-35, Su-57 या AMCA में से किसे चुनना चाहिए। अंतिम फैसला भारतीय वायुसेना की जरूरतों और राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखकर ही लिया जाना चाहिए।

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2044 से पहले F-35 की डिलीवरी नहीं!

वहीं, रक्षा विशेषज्ञ और पूर्व सैन्य अधिकारी ब्रिगेडियर संदीप थापर ने इस पूरे मसले पर अपना नजरिया साझा किया है। उनका कहना है कि अमेरिका ने F-35 के लिए कोई सॉलिड कमिटमेंट नहीं दिया है, बल्कि सिर्फ एक संभावित विकल्प के तौर पर इसका उल्लेख किया है। यह बात सही है कि F-35 को दुनिया का सबसे एडवांस फाइटर जेट माना जाता है, लेकिन इसकी कीमत और रखरखाव बेहद महंगा साबित हो सकता है। दूसरी ओर, रूस का Su-57 अपेक्षाकृत सस्ता विकल्प हो सकता है, लेकिन तकनीकी रूप से F-35 से कुछ हद तक पीछे है।

उन्होंने आगे कहा कि F-35 की खरीद को लेकर सबसे बड़ी समस्या इसका महंगा होना और लंबा डिलीवरी टाइम है। क्योंकि अमेरिका को अपने सहयोगी देशों की जरूरकतों को पूरा करने के लिए लगभग 2500 F-35 बनाने होंगे, जिसमें लंबा वक्त लग सकता है। अमेरिका पहले अपने NATO सहयोगी देशों को प्राथमिकता देगा, जिसके चलते भारत को यह विमान मिलने में 2044 तक का वक्त लग सकता है।  इसके अलावा, अमेरिका ने अब तक यह साफ नहीं किया है कि वह इस विमान की टेक्नोलॉजी ट्रांसफर करेगा या नहीं, जो कि भारत के लिए बेहद जरूरी है। ब्रिगेडियर थापर ने कहा कि अमेरिका की डिफेंस सप्लाई को लेकर ट्रस्ट इश्यू भी रहा है, क्योंकि कई मौकों पर उसने भारत को वादा करके भी जरूरी मिलिट्री इक्विपमेंट्स तय समय पर नहीं दिए।

क्या 10-15 साल का इंतजार कर पाएगा भारत?

ब्रिगेडियर थापर के मुताबिक रूस का Su-57 एक किफायती विकल्प हो सकता है। Su-57 का इंजन और सुपर-मेन्युवरबिलिटी इसकी बड़ी खबूियां हैं, लेकिन यह तकनीकी रूप से F-35 जितना एडवांस नहीं है। हालांकि, रूस भारत को इस विमान के साथ टेक्नोलॉजी ट्रांसफर देने के लिए तैयार है, जिससे भारत अपनी आत्मनिर्भरता को और बढ़ा सकता है। उनका कहना है कि भारत के लिए सबसे बड़ी चुनौती यह है कि उसकी वायुसेना की स्क्वाड्रन क्षमता लगातार घट रही है। मौजूदा जरूरतों को देखते हुए भारत को जल्द से जल्द नए लड़ाकू विमान खरीदने की जरूरत है। भारतीय वायुसेना का स्वदेशी AMCA (Advanced Medium Combat Aircraft) प्रोजेक्ट अभी शुरुआती दौर में है और इसे तैयार होने में 2035 से 2040 तक का लंबा समय लग सकता है। ऐसे में, अगले 10-15 वर्षों के लिए भारत को किसी अन्य देश से विमान खरीदना ही होगा।

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दोनों खरीदने का है विकल्प, लेकिन?

ब्रिगेडियर थापर भी मानते हैं कि अगर भारत F-35 को चुनता है, तो यह उसे अमेरिका के करीब ले जाएगा और उसे पश्चिमी देशों के मिलिट्री नेटवर्क से जोड़ देगा। वहीं दूसरी ओर, Su-57 को चुनने से भारत रूस के साथ अपनी पारंपरिक रक्षा साझेदारी को मजबूत करेगा। उन्होंने कहा कि भारत के पास एक और विकल्प यह भी है कि वह दोनों विमानों को खरीदे, लेकिन इससे पहले देश की वित्तीय हालत और डिफेंस बजट को देख कर चलना होगा। यह फैसला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारत सरकार को लेना है कि क्या वे अमेरिका की ओर झुकेंगे, रूस को तरजीह देंगे, या दोनों के बीच संतुलन बनाए रखेंगे।

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