📍नई दिल्ली | 2 months ago
Army Father’s Heartfelt Gift: बेटे को खोने का गम एक पिता के लिए कितना भारी होता है, इसका अंदाजा लगाना भी मुश्किल है। लेकिन जब दुख को हिम्मत में बदल दिया जाए, तो वही कहानी इंसानियत की मिसाल बन जाती है। सेना के हवलदार नरेश कुमार ने अपने 18 साल के बेटे अर्शदीप सिंह की एक हादसे में हुई असमय मौत के बाद जो कदम उठाया, उसने छह लोगों को नई जिंदगी दे दी।
8 फरवरी 2025 को हुए एक सड़क हादसे में अर्शदीप गंभीर रूप से घायल हो गए थे। तमाम कोशिशों के बावजूद डॉक्टर उनकी जान नहीं बचा सके। बेटे को खोने के इस असहनीय दर्द के बीच भी हवलदार नरेश कुमार ने ऐसा फैसला लिया, जिसने न सिर्फ कई लोगों को बचाया, बल्कि समाज में अंगदान को लेकर एक बड़ी सीख भी दी।
16 फरवरी को उन्होंने अपने बेटे के लिवर, किडनी, अग्न्याशय (पैंक्रियास) और कॉर्निया को दान करने की सहमति दी। यह फैसला उनके लिए आसान नहीं था, लेकिन उन्होंने सोचा कि अगर उनके बेटे का कोई अंग किसी और की जिंदगी संवार सकता है, तो इससे बड़ी श्रद्धांजलि कुछ नहीं हो सकती।
Army Father’s Heartfelt Gift: ग्रीन कॉरिडोर से मरीजों तक पहुंचाए अंग
अर्शदीप का लिवर और एक किडनी तुरंत ग्रीन कॉरिडोर के जरिए सेना अस्पताल रिसर्च एंड रेफरल, नई दिल्ली भेजा गया। दूसरी किडनी और लिवर पीजीआई चंडीगढ़ में ऐसे मरीज को ट्रांसप्लांट किए गए, जो टाइप-1 डायबिटीज और क्रॉनिक किडनी डिजीज से जूझ रहा था। इसके अलावा, दो जरूरतमंदों को रोशनी देने के लिए उनके कॉर्निया सुरक्षित रखे गए।
💙 A Father’s Ultimate Sacrifice: Turning Grief into Hope 💙
In an act of unimaginable courage & selflessness, Havildar Naresh Kumar of the 10 #MAHARRegiment chose to donate his 18-year-old son Arshdeep Singh’s organs after a tragic accident. His loss became a lifeline for six… pic.twitter.com/rrktASEK4e— Raksha Samachar *रक्षा समाचार*🇮🇳 (@RakshaSamachar) February 18, 2025
इस पूरी प्रक्रिया में चंडीमंदिर स्थित कमांड हॉस्पिटल की मेडिकल टीम ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह अस्पताल ऑर्गन ट्रांसप्लांट और ऑर्गन रिट्रीवल के लिए जाना जाता है। विशेषज्ञों ने हर जरूरी कदम उठाकर यह सुनिश्चित किया कि हर एक अंग सही समय पर सही मरीज तक पहुंचे।
भारत में हर साल हजारों लोग अंग प्रत्यारोपण के इंतजार में रहते हैं, लेकिन समय पर डोनर न मिलने के कारण कई जिंदगियां खत्म हो जाती हैं। हवलदार नरेश कुमार जैसे लोगों की प्रेरणादायक कहानियां इस धारणा को बदलने में मदद कर सकती हैं। उन्होंने अपने बेटे को खोने के गम को किसी और की जिंदगी की उम्मीद बना दिया।
हवलदार नरेश कुमार का यह फैसला केवल एक पिता के साहस की कहानी नहीं, बल्कि एक प्रेरणा भी है। उन्होंने अपने गम को सेवा में बदल दिया। यह कदम हमें सिखाता है कि मुश्किल हालात में भी हम दूसरों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए कुछ कर सकते हैं।