UK New Spying Laws: ब्रिटेन के नए राष्ट्रीय सुरक्षा कानून में चीनी जासूसों को छूट, रूस और ईरान पर रहेगा कड़ा पहरा, पढ़ें भारत पर क्या होगा असर?

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📍नई दिल्ली | 3 months ago

UK New Spying Laws: ब्रिटेन की सरकार अपने नए जासूसी कानून में चीन को सख्त प्रतिबंधों से छूट देने जा रही है। इस फैसले से संसद में विवाद खड़ा हो गया है, क्योंकि विपक्षी सांसद और राष्ट्रीय सुरक्षा विशेषज्ञ इसे देश की सुरक्षा के लिए खतरा बता रहे हैं। ब्रिटिश सरकार की योजना के अनुसार, रूस और ईरान जैसे देशों पर कड़े प्रतिबंध लागू किए जाएंगे, लेकिन चीनी जासूसों को इस सूची से बाहर रखा जाएगा।

UK Spying Laws: China Gets Exemption, Strict Rules for Russia & Iran – Impact on India?
File Photo: President Xi Jinping met with UK Prime Minister Keir Starmer.
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UK New Spying Laws: क्या है FIRS और क्यों है यह महत्वपूर्ण?

ब्रिटेन की सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत करने के लिए Foreign Influence Registration Scheme (FIRS) की योजना बनाई है, जिसका मकसद यह सुनिश्चित करना है कि कोई भी विदेशी ताकत ब्रिटेन की राजनीति, सुरक्षा या अर्थव्यवस्था को प्रभावित न कर सके। यह योजना दो स्तरों पर लागू की जाएगी। इनमें पहला है, राजनीतिक प्रभाव (Political Influence Tier)। यह विदेशी लॉबिंग को कंट्रोल करेगा और विदेश से जुड़े लोगों को ब्रिटेन के सांसदों, सरकारी अधिकारियों और चुनावी उम्मीदवारों से संवाद करने से पहले खुद को रजिस्टर्ड कराना होगा। वहीं दूसरा स्तर यानी एन्हांस्ड (Enhanced Tier), यह उन देशों पर लागू होगा, जो ब्रिटेन के लिए सीधा सुरक्षा खतरा हैं। इसमें रूस और ईरान को शामिल किया जाएगा, लेकिन चीन को फिलहाल इस सूची में नहीं रखा गया है।

हालांकि, सरकार का कहना है कि यह फैसला स्थायी नहीं है और भविष्य में चीन को भी इस सूची में जोड़ा जा सकता है।

UK New Spying Laws: चीन को क्यों दी गई छूट?

ब्रिटिश सरकार के इस फैसले के पीछे कई कारण बताए जा रहे हैं। चीन के साथ ब्रिटेन की आर्थिक साझेदारी को देखते हुए यह फैसला लिया गया है। हाल ही में ब्रिटेन की वित्त मंत्री रेचेल रीव्स (Rachel Reeves) ने चीन का दौरा किया था, जहां उन्होंने निवेश और व्यापार को बढ़ावा देने की बात कही थी। इसके अलावा, ब्रिटेन की विदेश मंत्री कैथरीन वेस्ट (Catherine West) ने कहा था कि ब्रिटेन को अपने आर्थिक हितों और राष्ट्रीय सुरक्षा के बीच संतुलन बनाए रखना होगा। जानकारों का कहना है कि ब्रिटेन के लिए चीन एक महत्वपूर्ण व्यापारिक साझेदार है। ब्रिटेन की कंपनियां चीन के बड़े बाजार पर निर्भर हैं, और सरकार नहीं चाहती कि इस कानून से उनके व्यापारिक हितों को नुकसान पहुंचे। वहीं, ब्रिटेन के चीन के साथ संबंध जटिल हैं, और ब्रिटेन नहीं चाहता कि वह अचानक कूटनीतिक संकट में फंस जाए। हालांकि सरकार का कहना है कि चीन को अभी छूट दी जा रही है, लेकिन भविष्य में इसे हटाया भी जा सकता है।

UK New Spying Laws: सुरक्षा एजेंसियों ने भी जताई चिंता

ब्रिटिश सुरक्षा एजेंसी MI5 के प्रमुख केन मैककॉलम (Ken McCallum) ने 2022 में ही आगाह किया था कि चीन, रूस और ईरान ब्रिटेन के लोकतंत्र, राष्ट्रीय सुरक्षा और आर्थिक हितों के लिए सबसे बड़े खतरे हैं। उन्होंने कहा था कि रूस और चीन जैसे देश ब्रिटेन की राष्ट्रीय सुरक्षा को कमजोर करने की कोशिश कर रहे हैं, इसलिए ब्रिटेन को आधुनिक दौर के खतरों से निपटने के लिए नए, सख्त और प्रभावी कानूनों की जरूरत है। उन्होंने कहा कि ब्रिटेन रणनीतिक रूप से उन देशों के निशाने पर है, जो हमारी लोकतांत्रिक संस्थाओं और राष्ट्रीय सुरक्षा को कमजोर करना चाहते हैं। इस नई योजना के जरिए विदेशी प्रभाव को नियंत्रित किया जाएगा और जासूसी गतिविधियों पर नजर रखी जाएगी।

सरकार के इस फैसले पर क्यों मचा विवाद?

सरकार के इस रुख से विपक्ष और कई सांसद नाराज हैं। लेबर पार्टी के सांसदों ने कहा है कि ब्रिटेन को चीन को लेकर नरम रुख नहीं अपनाना चाहिए। सुरक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि चीन की जासूसी गतिविधियां, साइबर हमले और ब्रिटेन की राजनीति में हस्तक्षेप के मामले बढ़ रहे हैं, ऐसे में चीन को सख्त निगरानी सूची में शामिल करना जरूरी है।

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ब्रिटेन की संसद में इस फैसले को लेकर भारी विरोध हो रहा है। लेबर पार्टी के सांसद और सुरक्षा मामलों के जानकारों का कहना है कि चीन लगातार ब्रिटिश राजनीति और संस्थानों में घुसपैठ कर रहा है। कई मामलों में यह भी सामने आया है कि चीनी कंपनियां ब्रिटेन की सरकारी गोपनीय सूचनाओं तक पहुंचने की कोशिश कर रही हैं।

ब्रिटेन की कंजर्वेटिव पार्टी के वरिष्ठ सांसद और पूर्व मंत्री नील ओ’ब्रायन ने कहा कि मुझे भरोसा नहीं हो पा रहा है। बीजिंग हमारे सांसदों की जासूसी कर रहा है, और फिर भी सरकार उनके खिलाफ कार्रवाई करने से पीछे हट रही है।

वहीं, लेबर पार्टी की सांसद सारा चैंपियन ने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा, यह पागलपन है! मुझे खुद अपने संसदीय कंप्यूटर में चीनी स्पाइवेयर मिला था, और अब सरकार चीन को इस कानून से छूट दे रही है?

पूर्व गृह मंत्री प्रीति पटेल ने कहा, यह एक बेहद गैर-जिम्मेदाराना और खतरनाक फैसला है। चीन लगातार हमारी सुरक्षा और हितों को नुकसान पहुंचा रहा है।

रूस और ईरान पर सख्त कार्रवाई, लेकिन चीन पर नरमी क्यों?

ब्रिटेन सरकार ने FIRS के तहत रूस और ईरान को खतरनाक देशों की सूची में रखा है, लेकिन चीन को बाहर रखा गया है। सवाल यह उठ रहा है कि अगर रूस और ईरान ब्रिटेन के लिए खतरा हैं, तो चीन क्यों नहीं? कुछ सुरक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि ब्रिटेन अमेरिका से अलग रुख अपनाकर चीन के साथ व्यापारिक संबंध बनाए रखना चाहता है। हालांकि, यह फैसला ब्रिटेन और अमेरिका के बीच रिश्तों में तनाव भी पैदा कर सकता है, क्योंकि अमेरिकी सरकार चीन के खिलाफ सख्त कदम उठा रही है।

चीन की सुपर एंबेसी पर बढ़ी चिंता

ब्रिटेन में पहले ही चीन की बढ़ती गतिविधियों को लेकर चिंता जताई जा रही है। हाल ही में, चीनी व्यवसायी यांग तेंगबो के खिलाफ जासूसी के आरोप लगे थे, जिसके कथित संबंध प्रिंस एंड्रयू से भी बताए जा रहे हैं। इसके अलावा, चीन लंदन में एक सुपर एम्बेसी बनाने की योजना बना रहा है, जिसे लेकर ब्रिटिश खुफिया एजेंसियां सतर्क हो गई हैं। लंदन के बीच में बनाए जा रहे इस बड़े चीनी दूतावास को ब्रिटेन की खुफिया एजेंसियां एक सुरक्षा खतरा मान रही हैं। यह इलाका ब्रिटेन की संवेदनशील कम्यूनिकेशन सिस्टम के काफी करीब है, जिससे जासूसी की आशंका और बढ़ जाती है।

ब्रिटेन के कुछ मंत्री एंजेला रेयनेर (Angela Rayner) और यवेट कूपर (Yvette Cooper) इस प्रोजेक्ट के समर्थन में हैं, जबकि कई सांसदों और सुरक्षा अधिकारियों ने इसे रोकने की मांग की है।

भारत पर क्या पड़ेगा असर?

ब्रिटेन का यह फैसला भारत के लिए चिंता का विषय बन सकता है। भारत पहले से ही चीन की आक्रामक नीतियों और सीमा विवाद से निपटने की कोशिश कर रहा है। ब्रिटेन ने अगर चीन पर सख्ती नहीं दिखाई, तो इससे चीन को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक तरह से अप्रत्यक्ष समर्थन मिल सकता है।

वहीं, भारत अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान के साथ क्वाड (Quad) के तहत इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव को रोकने की कोशिश कर रहा है। यदि ब्रिटेन चीन के प्रति नरम रवैया अपनाता है, तो इससे क्वाड देशों के साथ ब्रिटेन के सहयोग पर असर पड़ सकता है और भारत को चीन के खिलाफ अपनी रणनीति को और मजबूत करना पड़ सकता है।
ब्रिटेन भी इंडो-पैसिफिक में अपनी भूमिका बढ़ा रहा है, तो वहीं, चीन भी लगातार इंडो-पैसिफिक में अपनी नौसेना और सैन्य ताकत बढ़ा रहा है। अगर ब्रिटेन चीन के खिलाफ ठोस कार्रवाई नहीं करता, तो इससे चीन को इस क्षेत्र में अपनी पकड़ मजबूत करने का मौका मिल सकता है।

डाटा चोरी होने का डर

ब्रिटेन ने चीन पर साइबर सुरक्षा और आर्थिक जासूसी के मामलों में नरमी दिखाई है। लेकिन चीन पर कई देशों ने साइबर जासूसी और डेटा चोरी के आरोप लगाए हैं। अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और भारत कई बार चीन के साइबर हमलों से प्रभावित हुए हैं। यह फैसला भारतीय टेक्नोलॉजी कंपनियों के लिए घातक हो सकता है। भारतीय आईटी और स्टार्टअप सेक्टर ब्रिटेन के साथ मिलकर काम करता है, लेकिन अगर ब्रिटेन ने चीन को प्राथमिकता दी, तो भारतीय कंपनियों के लिए व्यापार करना मुश्किल हो सकता है।

क्या करेगा अमेरिका?

वहीं, अमेरिका की बात करें, तो वह लंबे समय से चीन के खिलाफ सख्त नीति अपनाए हुए है और वह चाहता है कि उसके सहयोगी देश भी इसी दिशा में कदम उठाएं। हुआवेई पर बैन, चीनी कंपनियों पर प्रतिबंध और दक्षिण चीन सागर में सैन्य मौजूदगी बढ़ाकर अमेरिका ने चीन को कड़ा संदेश दिया है।

यदि ब्रिटेन चीन को सख्त निगरानी सूची में नहीं रखता, तो इससे अमेरिका और ब्रिटेन के संबंधों में तनाव बढ़ सकता है। अमेरिका पहले ही चीन के खिलाफ सख्त आर्थिक और सुरक्षा प्रतिबंध लागू कर चुका है। ऐसे में ब्रिटेन का यह फैसला अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों के लिए चिंता का विषय बन सकता है।

ब्रिटेन यूरोप का एक प्रमुख देश है, और उसकी नीतियों का असर यूरोपीय संघ (EU) के अन्य देशों पर भी पड़ता है। यदि ब्रिटेन चीन के प्रति नरम रहता है, तो यह संभव है कि अन्य यूरोपीय देश भी इसी राह पर चलें। इससे चीन को यूरोप में अधिक व्यापारिक और राजनीतिक लाभ मिल सकता है, जिससे पश्चिमी देशों की सुरक्षा और व्यापार नीति प्रभावित हो सकती है।

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