📍नई दिल्ली | 4 months ago
Pegasus spyware controversy: दुनिया की सबसे लोकप्रिय मैसेजिंग सेवा WhatsApp ने शुक्रवार को पेगासस स्पाइवेयर बनाने वाली इजराइली कंपनी NSO ग्रुप के खिलाफ एक बड़ी कानूनी जीत हासिल की। एक ऐतिहासिक फैसले में, अमेरिकी अदालत ने इजरायली कंपनी एनएसओ ग्रुप को पेगासस सॉफ्टवेयर के जरिए व्हाट्सएप हैकिंग के लिए जिम्मेदार ठहराया। कंपनी ने पेगासस सॉफ़्टवेयर के जरिए 1,400 से अधिक लोगों के फोन को निशाना बनाया था। बता दें कि इस सॉफ्टवेयर के इस्तेमाल का आरोप भारत की सरकार पर लगा है, जिसकी सुनवाई अभी होनी बाकी है।
Pegasus spyware controversy: जज ने दिया कठोर फैसला
केस की सुनवाई कर रहीं जज फिलिस हैमिल्टन ने NSO ग्रुप को अमेरिकी कंप्यूटर फ्रॉड एंड एब्यूज एक्ट (CFAA) और कैलिफोर्निया राज्य के एंटी-फ्रॉड कानूनों के उल्लंघन का दोषी पाया। इसके साथ ही कंपनी ने WhatsApp की सेवा शर्तों का भी उल्लंघन किया। उन्होंने यह भी कहा कि एनएसओ ने अदालत के आदेशों का पालन नहीं किया, जिसमें व्हाट्सएप को उनके स्पाईवेयर का सोर्स कोड सौंपने को कहा गया था।
अब मार्च 2025 में एक अलग जूरी ट्रायल में तय किया जाएगा कि NSO ग्रुप को WhatsApp को कितने नुकसान की भरपाई करनी होगी।
NSO ग्रुप ने इस मुकदमे के दौरान अमेरिकी कोर्ट में मुकदमे को टालने और देरी करने की रणनीति अपनाई। जज हैमिल्टन ने बताया कि कंपनी ने व्हाट्सएप को अपने स्पाइवेयर का सोर्स कोड उपलब्ध कराने के आदेश का पालन नहीं किया। NSO ने यह कोड केवल इजराइल में और इजरायली नागरिकों के लिए उपलब्ध कराया, जिसे जज ने “अव्यवहारिक” करार दिया। एनएसओ ग्रुप का दावा था कि उनके सरकारी ग्राहक पेगासस का उपयोग करते हैं और उन्हीं की जिम्मेदारी होती है। लेकिन अदालत ने इसे खारिज कर दिया और पाया कि एनएसओ खुद जानकारी एकत्रित करने और उसे इंस्टॉल करने में शामिल था। इसके अलावा, अदालत ने कंपनी द्वारा मुकदमे की प्रक्रिया में बाधा डालने और देरी करने की कोशिशों की आलोचना की।
Pegasus spyware controversy: 2019 में WhatsApp ने किया था केस
WhatsApp ने फैसले का स्वागत करते हुए कहा, “पांच साल की कानूनी लड़ाई के बाद, आज का फैसला हमारे लिए महत्वपूर्ण है। NSO अब अपने अवैध हमलों के लिए जिम्मेदारी से बच नहीं सकता। यह फैसला स्पाइवेयर कंपनियों को स्पष्ट संदेश देता है कि उनके गैरकानूनी काम बर्दाश्त नहीं किए जाएंगे।”
व्हाट्सएप ने 2019 में एनएसओ ग्रुप के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया था। आरोप था कि इस कंपनी ने अपने जासूसी पेगासस सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करते हुए 1,400 लोगों के फोन को हैक किया और उनकी जासूसी की।
इस हैकिंग का दायरा पत्रकारों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, राजनीतिक असंतुष्टों और राजनयिकों तक फैला था। व्हाट्सएप ने इसे अमेरिकी कानूनों और अपने सेवा शर्तों का उल्लंघन करार दिया।
NSO ग्रुप के पेगासस सॉफ़्टवेयर का उपयोग कई पत्रकारों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, राजनयिकों और वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों के फोन हैक करने के लिए किया गया था। पेगासस का उपयोग iPhones और WhatsApp को हैक करने के लिए भी किया गया, जिससे यूजर्स के ईमेल, फोटो और संदेशों को एक्सेस किया गया।
अमेरिकी सरकार की सख्ती
पेगासस सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल व्हाट्सएप और आईफोन जैसे उपकरणों को हैक करने के लिए किया गया था। इसके जरिए तस्वीरें, ईमेल और टेक्स्ट मेसेज चोरी किए गए। जो बाइडन प्रशासन ने 2021 में NSO ग्रुप को एक ब्लैकलिस्ट पर डाल दिया और अमेरिकी सरकारी एजेंसियों को इसके प्रोडक्ट खरीदने से मना कर दिया। NSO को तानाशाही सरकारों द्वारा हैकिंग गतिविधियों में शामिल होने के आरोपों का सामना करना पड़ा है।
पेगासस स्पाइवेयर का उपयोग लंबे समय से विभिन्न देशों में विरोधियों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के खिलाफ किया जाता रहा है। NSO ने हमेशा यह दावा किया है कि उसके ग्राहक, यानी सरकारें, इस सॉफ़्टवेयर के उपयोग के लिए जिम्मेदार हैं। हालांकि, कोर्ट में पेश दस्तावेज़ों से यह साबित हुआ कि NSO खुद इस सॉफ़्टवेयर का उपयोग डेटा निकालने के लिए करता था।
मार्च 2025 में होने वाले जूरी ट्रायल में तय किया जाएगा कि NSO ग्रुप को WhatsApp को कितना हर्जाना देना होगा। यह मुकदमा स्पाइवेयर उद्योग के लिए एक महत्वपूर्ण मिसाल बनेगा और डिजिटल निजता की सुरक्षा के लिए एक बड़ा कदम होगा।
भारत में भी किया गया था इस्तेमाल
इजरायली कंपनी एनएसओ के पेगासस सॉफ्टवेयर से भारत में कथित तौर पर 300 से ज्यादा प्रमुख हस्तियों के फोन हैक किए गए थे। इनमें कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी, केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव, प्रह्लाद सिंह पटेल, पूर्व निर्वाचन आयुक्त अशोक लवासा और चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर जैसे दिग्गज शामिल थे। इसके अलावा, कई पत्रकारों के फोन भी हैक किए गए, जिनमें ‘हिन्दुस्तान टाइम्स’, ‘मिंट’, ‘इंडिया टुडे’, ‘द हिंदू’, ‘द इंडियन एक्सप्रेस’, और ‘फाइनैंशियल टाइम्स’ जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों के संवाददाता शामिल थे।
अक्टूबर 2021- सुप्रीम कोर्ट ने पेगासस के ज़रिए अनधिकृत निगरानी के आरोपों की जांच के आदेश दिए। इस उद्देश्य के लिए सुप्रीम कोर्ट ने तीन सदस्यों और एक पर्यवेक्षक वाली एक विशेष समिति बनाई। जिस पर सुनवाई होनी अभी बाकी है।
पेगासस क्यों खतरनाक है?
पेगासस सॉफ्टवेयर को केवल एक मिस कॉल के जरिए किसी फोन में इंस्टॉल किया जा सकता था, बिना यूजर की जानकारी या अनुमति के। एक बार इंस्टॉल होने के बाद, इसे हटाना लगभग असंभव है। यह सॉफ्टवेयर हैकर को स्मार्टफोन के माइक्रोफोन, कैमरा, ऑडियो, टेक्स्ट मैसेज, ईमेल और लोकेशन तक पहुंचने की अनुमति देता है। यह इसे बेहद खतरनाक और उपयोगकर्ता की गोपनीयता के लिए गंभीर खतरा बनाता है।