📍नई दिल्ली | 4 months ago
Tejas Mk1 Fighters: भारतीय वायु सेना (IAF) ने पाकिस्तान के साथ अपनी पश्चिमी सीमा पर एयर डिफेंस क्षमता को मजबूत करने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। IAF ने अपने फाइनल ऑपरेशनल क्लियरेंस (FOC) तेजस Mk1 लड़ाकू विमानों को तैनात किया है। यह कदम पुराने हो चुके MiG-21 विमानों की धीरे-धीरे भारतीय वायुसेना से फेज आउट होने की प्रक्रिया के चलते लिया गया है, जिसके तहत 2026 तक MiG-21 विमानों को पूरी तरह से बाहर कर दिया जाएगा।

हाल ही में IAF ने तेजस Mk1 FOC फाइटर जेट्स को अपनी दक्षिणी वायु सेना ठिकानों (सुलुर) से पाकिस्तान से सटे वेस्टर्न बॉर्डर पर तैनात किया है। तेजस Mk1 FOC संस्करण अब राफेल डर्बी और वायमपल R-77 (AA-12 एडर) जैसी एडवांस एयर-टू-एयर मिसाइलों से लैस हैं। इन्हें खासकर जमनगर एयरफोर्स स्टेशन पर तैनात किया गया है।
रिपोर्ट्स के अनुसार, राजस्थान के बीकानेर स्थित नाल एयरबेस, जहां वर्तमान में मिग-21 का आखिरी ऑपरेशन स्क्वाड्रन तैनात है, उसे जुलाई 2024 में पहले तेजस स्क्वाड्रन बनाया जाना था। लेकिन तेजस की सप्लाई में देरी से इस योजना के क्रियान्वयन में देरी हो रही है। अपग्रेडेड तेजस Mk1A में Active Electronically Scanned Array (AESA) रडार जैसे उपकरण शामिल हैं। इसे मार्च 2025 तक IAF में औपचारिक रूप से शामिल किए जाने की उम्मीद है। हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) ने इन विमानों की कम से कम चार यूनिट्स की सप्लाई का वादा किया है।
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तेजस विमानों की तैनाती MiG-21 विमानों के बाहर होने के साथ ही रणनीतिक तौर पर की गई है, ताकि एयर डिफेंस कवरेज में कोई कमी न हो। तेजस अब उन कई ऑपरेशननल्स रोल्स को निभाएगा, जो पहले MiG-21 विमानों के पास थीं। तेजस Mk1 विमानों की पश्चिमी सीमा पर तैनाती न केवल युद्ध मिशनों में मदद करेगी, बल्कि यह एक प्रतिरोधक का भी काम करेगी।
इससे पहले खबरें आई थीं कि मिग-21 को और सेवा विस्तार दिया जा सकता है। पहले मिग-21 बायसन को 2025 तक पूरी तरह से वापस लिए जाने की डेडलाइन तय की गई थी। लेकिन अब यह डेडलाइन और आगे खिसक सकती है। भारतीय वायु सेना के सूत्रों ने बताया कि स्वदेशी तेजस एमके1ए फाइटर जेट्स के उत्पादन में देरी के चलते मिग-21 बायसन की फेज आउट करने की प्रक्रिया को आगे बढ़ा दिया गया है। हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) द्वारा निर्मित तेजस एमके1ए, जो अत्याधुनिक तकनीक और मल्टीरोल क्षमताओं से लैस है, मिग-21 का स्थान लेने के लिए तैयार है। परंतु इंजन सप्लाई की समस्या के कारण इसका उत्पादन समयसीमा से पीछे चल रहा है।
1964 में भारत के पहले सुपरसोनिक फाइटर जेट के रूप में शामिल किए गए मिग-21 ने दक्षिण एशिया में हवाई युद्ध के तौर-तरीकों को बदल दिया। 1971 के भारत-पाक युद्ध में इसने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और बांग्लादेश के गठन में योगदान दिया। 1999 के कारगिल युद्ध और 2019 के बालाकोट एयरस्ट्राइक में इसकी मौजूदगी ने इसे भारत के सैन्य इतिहास का अभिन्न हिस्सा बना दिया।
हालांकि, मिग-21 का इतिहास विवादों से भी अछूता नहीं रहा। इसे “फ्लाइंग कॉफिन” का नाम इसलिए दिया गया क्योंकि इसके फ्लाइट ऑपरेशन के दौरान 400 से अधिक दुर्घटनाएं हुईं, जिसमें कई पायलटों ने अपनी जान गंवाई। बावजूद इसके, मिग-21 की क्षमता और इसकी रणनीतिक उपयोगिता को नकारा नहीं जा सकता।
Tejas Mk1 Fighters: वायुसेना की मौजूदा जरूरत
वर्तमान में भारतीय वायुसेना में मिग-21 बायसन के दो स्क्वाड्रन हैं, जिनमें कुल 31 विमान शामिल हैं। जबकि वायुसेना को कुल 42 स्क्वाड्रन जरूरत है, लेकिन फिलहाल यह आंकड़ा केवल 30 के करीब है। ऐसे में तेजस एमके1ए जैसे अत्याधुनिक विमानों की तैनाती बेहद महत्वपूर्ण हो जाती है।
मिग-21 बायसन को सेवा विस्तार देने का मतलब यह है कि भारतीय वायुसेना को अपनी ऑपरेशनल कैपेबिलिटी बनाए रखने के लिए अभी भी पुराने विमानों पर निर्भर रहना पड़ रहा है। भारतीय वायुसेना के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, “मिग-21 ने वर्षों तक हमारी वायुसेना की रीढ़ की हड्डी के रूप में काम किया है। हालांकि अब समय आ गया है कि इसे आराम दिया जाए और अत्याधुनिक विमानों को उसकी जगह दी जाए।”