📍नई दिल्ली | 4 months ago
IMA Passing Out Parade: इंडियन मिलिट्री एकेडमी (IMA) के पासिंग आउट परेड में चमचमाते बूट और मेडलों के पीछे कई प्रेरक कहानियां भी छुपी हुती हैं। ये कहानियां उन मेधावी छात्रों की होती हैं, जो बेहद गरीब तबके से उठ कर अपनी मेहनत और समघर्ष के बल पर यहां तक पहुंचे हैं। इस बार भी इस समारोह में ऐसी कई संघर्ष गाथाएं थीं। इनमें से दो युवा अधिकारी, लेफ्टिनेंट राहुल वर्मा और लेफ्टिनेंट रमन सक्सेना की कहानी भी कुछ ऐसी ही है।

IMA Passing Out Parade: कुक से अफसर तक का सफर
आगरा के रमन सक्सेना की कहानी बेहद प्रेरणादायक है। रमन का भारतीय सेना में भर्ती होने का रास्ता किसी भी अन्य अधिकारी से बिल्कुल अलग था। उनका सफर एक होटल के रसोईघर से शुरू हुआ था। 2007 में होटल मैनेजमेंट की डिग्री लेने के बाद, रमन ने होटल में रसोइये के तौर पर काम करना शुरू किया। लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। 2014 में उन्हें इंडियन मिलिट्री एकेडमी (IMA) में जनरल कैडेट्स (GC) मेस में रसोइये (कुक) के तौर पर नियुक्ति मिली। यहीं पर उनकी जिंदगी का अहम मोड़ आया।
रमन बताते हैं, “जब मैं होटल में काम कर रहा था, तब मेरे पिता ने मुझे भारतीय सेना में भर्ती होने के लिए प्रेरित किया।” उसी दौरान, रमन ने पहली बार सेना में अफसर बनने का सपना देखा। उन्हें मेस में खाने परोसते हुए वहां के गेस्ट और अफसरों को देख कर एक नई प्रेरणा मिली। वे कहते हैं, “यह मुझे बहुत प्रेरित करता था। मैंने तय किया कि मुझे एक दिन उनमें से एक बनना है।”
हालांकि, रमन का सफर इतना भी आसान नहीं था। उन्होंने पहले दो प्रयासों में वे ये परीक्षा पास नहीं कर पाए। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और अपनी कोशिश जारी रखी। “स्पेशल कमीशन ऑफिसर (SCO) स्कीम के तहत जूनियर कमीशन अधिकारियों को 28 से 35 साल की उम्र में अफसर बनने का अवसर मिलता है,” रमन बताते हैं। “34 साल की उम्र में, मैंने तीसरे प्रयास में सफलता हासिल की।”
रमन की सफलता के पीछे उनके पिता, जो एक सेवानिवृत्त कैप्टन रहे हैं, का सपोर्ट था। उन्होंने 30 साल तक सेना में सेवा दी थी। इसके अलावा, उनके वरिष्ठ अधिकारी कर्नल विक्रम सिंह का मार्गदर्शन भी बहुत महत्वपूर्ण था। कर्नल विक्रम सिंह ने हमेशा रमन को अपने सपने को पूरा करने के लिए सही दिशा दिखाई।
IMA Passing Out Parade: धोबी के बेटे से अफसर बनने तक का संघर्ष
दूसरी तरफ, राजस्थान के कोटा जिले के राहुल वर्मा की कहानी भी उतनी ही प्रेरणादायक है। राहुल के पिता धोबी व्यवसाय से जुड़े हैं। उनका बचपन घर के उस छोटे से कोने में बीता, जहां कपड़े प्रेस किए जाते थे। वहीं से उन्होंने अपनी मेहनत और संघर्ष से अपने सपनों को पंख दिए। उनके पिता हमेशा उन्हें यह कहते थे, “तुम ऐसा पेशा चुनो, जिससे सम्मान मिले।” राहुल के लिए, यह शब्द उनके जीवन का मूल मंत्र बने।
राहुल बताते हैं, “मेरे पिता मेरी सबसे बड़ी प्रेरणा हैं। वह हमेशा कहते थे कि अब यह जरूरी नहीं कि केवल राजा का बेटा ही राजा बने, बल्कि मेहनत करने वाला कोई भी व्यक्ति शिखर तक पहुंच सकता है।” उनके पिता के इन शब्दों ने राहुल को अपने सपनों की ओर आगे बढ़ने की शक्ति दी।
राहुल ने घर की परिस्थितियों के बावजूद अपनी पढ़ाई जारी रखी। “मैं रात को एक बल्ब की हल्की सी रोशनी में पढ़ाई करता था,” राहुल बताते हैं। घर में पैसे की कमी और अन्य कठिनाइयों के बावजूद राहुल ने अपनी मेहनत और लगन से इस मुश्किल सफर को पार किया।
दोनों की प्रेरक यात्रा
रमन सक्सेना और राहुल वर्मा दोनों ही उस जगह खड़े थे, जहां पहुंचना हर युवा का सपना होता है — भारतीय सेना में अफसर बनना। लेकिन इन दोनों के लिए यह यात्रा आसान नहीं थी। एक तरफ रमन ने होटल मैनेजमेंट की डिग्री लेकर सेना के कैटरिंग विभाग में काम करते हुए अपनी मंजिल पाई, वहीं दूसरी तरफ राहुल ने अपने पिता की प्रेरणा से उस छोटे से कमरे में अपने सपनों को पंख दिए, जहां कपड़े प्रेस किए जाते थे।
इन दोनों की कहानियाँ यह साबित करती हैं कि अगर मेहनत और समर्पण से किसी काम को किया जाए, तो किसी भी मुश्किल रास्ते से सफलता प्राप्त की जा सकती है। रमन और राहुल की मेहनत ही उनके सपनों को साकार करने का कारण बनी।