📍नई दिल्ली | 4 months ago
IMA Passing Out Parade: भारतीय सैन्य अकादमी के पासिंग आउट परेड हर बार संघर्ष की कहानियों से भरपूर होती है। जहां परेड में इस बार गर्व से भरे हुए परिवारों और सैनिकों के कदमों की गूंज सुनाई दे रही थी, तो परेड में एक कहानी ऐसी थी, जो हर किसी के दिल को छू गई। यह कहानी है लेफ्टिनेंट काबिलन वी (Lt Kabilan V) की, जो तमिलनाडु के एक छोटे से गांव से हैं और जिन्होंने भारतीय सेना में अफसर बनने का सपना साकार किया।

काबिलन के पिता वेटरिसेल्वम पी, जो एक दैनिक मजदूर के तौर पर काम करके रोजाना 100 रुपये ही कमा पाते थे। लेकिन अब वे व्हीलचेयर पर हैं। तीन महीने पहले एक भारी काम करते समय आए स्ट्रोक के कारण उनका शरीर आंशिक रूप से लकवाग्रस्त हो गया था। उनके चेहरे पर गर्व और खुशी की चमक साफ दिखाई दे रही थी। उनके पास पनमैयम्मल की एक तस्वीर रखी थी, जो काबिलन की मां की थी, जिनका तीन साल पहले कैंसर और कोविड-19 के कारण निधन हो गया था।
काबिलन की यात्रा बेहद कठिन रही है। “मैं कई बार असफल हुआ,” उन्होंने कहा, और उनके चेहरे पर जो मुस्कान थी, उससे यह एहसास हुआ कि उन असफलताओं को उन्होंने अपने संघर्ष से जीत लिया था। “मुझे सेना में जाना था, और मैंने वह किया। यह सिर्फ मेरी व्यक्तिगत सफलता नहीं है, बल्कि उन सभी की सफलता है जो भारतीय सेना में शामिल होने का सपना देखते हैं। अगर एक ऐसा व्यक्ति, जो एक दैनिक मजदूर का बेटा है, 100 रुपये रोज कमाता था, वह यह कर सकता है, तो कोई भी इसे कर सकता है।”
काबिलन का जन्म तमिलनाडु के मेलुर गांव में हुआ था। उन्होंने सरकारी स्कूल से पढ़ाई की और फिर अन्ना विश्वविद्यालय से सिविल इंजीनियरिंग में डिग्री हासिल की। बचपन से ही काबिलन का सपना था कि वह भारतीय सेना में जाएं, लेकिन हर बार वह असफल होते गए। उन्होंने एनसीसी से लेकर ग्रेजुएट एंट्री तक के हर रास्ते पर आवेदन किया, लेकिन हर बार उनका सपना अधूरा रह गया। फिर भी, काबिलन हार नहीं माने और अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते रहे।
“साहस मुझे प्रेरित करता है,” काबिलन ने अपनी यात्रा को इस शब्दों में समेटा। उनका साहस ही था, जिसने उन्हें उनके सपने को पूरा करने की दिशा दी। लेकिन साहस ही उनकी एकमात्र ताकत नहीं था। काबिलन ने अपनी मां के निधन के बाद अपने परिवार की जिम्मेदारी ली। उनका छोटा भाई सिविल सेवा की तैयारी कर रहा था और उनके पिता की सेहत भी गिर रही थी। ऐसे में काबिलन ने अपनी पढ़ाई के साथ-साथ एक कठिन नौकरी भी की। वह राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (एनडीआरएफ) के डेल्टा स्क्वाड में जलनाविक पर्यवेक्षक के रूप में काम करते थे।
काबिलन के मार्गदर्शक, सब लेफ्टिनेंट (रिटायर्ड) सुगल ईसान का कहना है, “उन्हें अपने परिवार का पालन-पोषण करते हुए अपने सपने को भी पूरा करना था।” “चेन्नई और कन्याकुमारी में आई बाढ़ के दौरान, काबिलन हमारे बचाव दल का हिस्सा थे। उन्होंने अन्य स्वयंसेवकों के साथ मिलकर लगभग 200 जानों को बचाया।”
काम और पढ़ाई की दोहरी जिम्मेदारी का बोझ काबिलन पर बहुत भारी हो सकता था, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। “मैं सुबह 10 बजे से शाम 4 बजे तक काम करता था, और फिर शाम 6 बजे से रात 10 बजे तक, सेना में भर्ती परीक्षा की तैयारी करता था,” उन्होंने कहा। उनका यह संघर्ष और बलिदान आखिरकार रंग लाया। आज उनके कंधे पर पैरा रेजिमेंट का चिन्ह है, जो उनके अगले चरण की शुरुआत का प्रतीक है। “सीखो, असफल हो, और फिर बेहतर असफल हो, तुम्हें सफलता मिलेगी। तुम्हारी दृढ़ता और समर्पण ही सफलता के दरवाजे तक पहुंचाएंगे,” काबिलन ने कहा।
काबिलन की यह कहानी उन लोगों के लिए प्रेरणा है जो मानते हैं कि जीवन में परिस्थितियां या सामाजिक स्थिति मायने रखती हैं। काबिलन ने यह साबित कर दिया कि अगर किसी के पास सच्ची मेहनत और समर्पण हो, तो कोई भी मुश्किल रास्ता कठिन नहीं होता।