📍नई दिल्ली | 4 months ago
Indian Army: हाल ही में भारतीय सेना के प्रमुख जनरल की ऑफिस के बैकग्राउंड से एक ऐतिहासिक तस्वीर जो 1971 की जंग में पाकिस्तान सेना के सरेंडर की थी, उसे हटा लिया गया है। यह तस्वीर भारतीय सेना की एक बड़ी जीत की याद दिलाती रही है, जब एकक लाख से ज्यादा पाकिस्तान सेना ने पूर्वी पाकिस्तान यानी आज के बांग्लादेश के ढाका में भारतीय सेना के सामने बिना शर्त समर्पण किया था।
वहीं, इस फैसले पर अब रक्षा विशेषज्ञों ने गहरी चिंता जताई है। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि इस चित्र को हटाने के पीछे कोई विशेष विचारधारा हो सकती है, जो भारतीय सेना के ऐतिहासिक और सैन्य गौरव को नकारने की कोशिश कर रही है। बता दें कि 9 दिसंबर तक यह फोटो सेना प्रमुख के दफ्तर की दीवार पर मौजूद थी, जिसमें वे उस दिन भारतीय मिलिट्री हिस्ट्री पर किताबें लिखने वाले कुछ लेखकों से मिले थे।
किसने बनाई है नई पेंटिंग
सेना के सूत्रों ने कहा कि नई पेंटिंग, ‘कर्म क्षेत्र– कर्मों का क्षेत्र’, जिसे 28 मद्रास रेजिमेंट के लेफ्टिनेंट कर्नल थॉमस जैकब ने बनाई है। इस पेंटिंग में सेना को एक “धर्म के रक्षक” के रूप में दर्शाया गया है, जो केवल राष्ट्र का रक्षक नहीं बल्कि न्याय की रक्षा और देश के मूल्यों की सुरक्षा के लिए लड़ती है। यह पेंटिंग बताती है कि सेना तकनीकी रूप से कितनी एडवांस हो गई है। पेंटिंग बर्फ से ढकी पहाड़ियां पृष्ठभूमि में दिख रही हैं, दाएं ओर पूर्वी लद्दाख की पैंगोंग त्सो झील और बाएं ओर गरुड़ा और श्री कृष्ण की रथ, साथ ही चाणक्य और आधुनिक उपकरण जैसे टैंक, ऑल-टेरेन व्हीकल्स, इन्फैंट्री व्हीकल्स, पेट्रोल बोट्स, स्वदेशी लाइट कॉम्बेट हेलीकॉप्टर्स और एच-64 अपाचे अटैक हेलीकॉप्टर्स दिखाए गए हैं।
Indian Army: आधिकारिक चित्र हटाने की वजह
इस घटना ने सभी का ध्यान उस समय खींचा, जब सेना प्रमुख समेत तीनों सेनाओं के प्रमुख नेपाली सेना के आर्मी चीफ से मिले, जो इन दिनों 14 दिसंबर तक भारत दौरे पर हैं। उस समय यह तस्वीर दीवार से नादारद दिखी और उसके जगह एक दूसरे फोटो लगी थी। यह चित्र 16 दिसंबर 1971 को ढाका में पाकिस्तान की सेना के समर्पण के दौरान लिया गया था, जो भारतीय सेना की सबसे बड़ी जीतों में से एक मानी जाती है। वरिष्ठ रक्षा पत्रकार मान अमन सिंह चिन्ना ने इस पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा, यह कदम भारत की सैन्य विजय को सार्वजनिक रूप से नकारने की कोशिश के समान है। उन्होंने यह भी कहा कि यह कदम विशेष रूप से उन लोगों के लिए अपमानजनक है जिन्होंने 1971 के युद्ध में भाग लिया और अपने प्राणों की आहुति दी। उन्होंने कहा कि पहले च्यूवोडे क्रीडो (Chewode Credo) को हटाया गया और अब 1971 की जंग की पाकिस्तानी सेना के आत्मसमर्पण वाली फोटो हटा दी गई।
क्या है च्यूवोडे क्रीडो (Chewode Credo)
च्यूवोडे क्रीडो (Chewode Credo) भारतीय सेना का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है, जिसे फील्ड मार्शल कीथ च्यूवोडे ने पेश किया था। यह क्रीडो सेना के अफसरों और जवानों को उनके कर्तव्यों और नैतिकता के बारे में मार्गदर्शन करता है। इसका मुख्य उद्देश्य कर्म, समर्पण, वफादारी, ईमानदारी, सहनशीलता और धैर्य को बढ़ावा देना है। यह अफसरों को अपने सैनिकों के प्रति जिम्मेदारी, नेतृत्व और समानता की भावना को प्रोत्साहित करता है। च्यूवोडे क्रीडो भारतीय सेना के लिए एक जीवन दर्शन है, जो सैन्य नेतृत्व और कर्तव्य की भावना को स्पष्ट रूप से परिभाषित करता है।
1971 युद्ध की अहमियत
दूसरी तरफ, एयर वाइस मार्शल (रिटायर्ड) मनमोहन बहादुर ने इस मामले पर टिप्पणी करते हुए कहा कि 1971 का युद्ध भारत के रक्षा इतिहास में सबसे बड़ी जीत थी। उन्होंने यह भी कहा कि यह युद्ध भारत के एकीकृत राष्ट्र के रूप में पहली सैन्य विजय का प्रतीक है, और इस चित्र को हटाना भारतीय सेना की इस महान उपलब्धि को नजरअंदाज करना है। उनका कहना था कि यह चित्र कई देशों के सैन्य प्रमुखों और गणमान्य व्यक्तियों के लिए भारत की सामरिक ताकत और उसकी सफलता का प्रतीक था।
सांस्कृतिक और राजनीतिक विमर्श
वहीं, रक्षा विशेषज्ञ संदीप मुखर्जी का मानना है कि भारतीय सरकार की नीतियां अब भारतीय इतिहास और संस्कृति के मध्यकालीन दृष्टिकोण को महत्व देती हैं, जबकि 1971 की जीत आधुनिक, धर्मनिरपेक्ष और संविधानिक भारत का प्रतीक है। उन्होंने कहा कि इस तरह की कोशिशें इतिहास से जुड़ी वास्तविकताओं को नकारने की ओर इशारा करती हैं और वर्तमान सरकार अपनी नीतियों को सांस्कृतिक प्रतीकों और मिथक के आधार पर स्थापित करना चाहती है, जो भारत के आधुनिक और लोकतांत्रिक मूल्य से मेल नहीं खाता।
1971 की समर्पण तस्वीर का महत्व
भारतीय सेना के रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल एच एस पांग ने कहा कि यह चित्र पिछले 1000 सालों में भारत की पहली बड़ी सैन्य विजय का प्रतीक था। यह न केवल सैन्य दृष्टिकोण से बल्कि भारतीय एकता और शक्ति का प्रतीक भी था। उन्होंने आरोप लगाया कि जो लोग इस चित्र को हटाने का कारण बने हैं, वे भारतीय सेना के गौरव को मिटाने की कोशिश कर रहे हैं, और इस कदम के पीछे एक विशेष विचारधारा काम कर रही है जो भारत के प्राचीन और मध्यकालीन इतिहास को बढ़ावा देती है।
बताया- बदलाव समय की जरूरत
इस मुद्दे पर रिटायर्ड पश्चिमी कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल कमलजीत सिंह ने भी अपनी राय दी। उनका कहना था कि बिना पूरे हालात को देखे इस चित्र पर टिप्पणी करना सही नहीं होगा। उन्होंने सुझाव दिया कि बदलाव समय की जरूरत है और आने वाली पीढ़ियों को इसे समझने और उनका दृष्टिकोण बदलने का अवसर देना चाहिए। उनका यह भी मानना है कि यह मामला राजनीतिक और सांस्कृतिक विमर्श का हिस्सा बन चुका है और इससे आगे बढ़ने की जरूरत है।
वहीं, इस मामले को लेकर भारतीय जनता और सेना के परिवारों के बीच मिश्रित प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही हैं। कुछ लोग इसे एक राजनीतिक कदम मानते हुए भारतीय सेना की ऐतिहासिक जीत के महत्व को कम करने की कोशिशों के रूप में देख रहे हैं, जबकि कुछ अन्य इसे केवल एक परिवर्तनात्मक कदम मानते हैं, जो शायद समय के साथ उचित हो सकता है।
हालांकि इस मुद्दे पर कई तरह की प्रतिक्रियाएं आ रही हैं, लेकिन यह स्पष्ट है कि भारतीय सेना की 1971 की जीत को अनदेखा करने की कोशिशों से भारतीय जनता और सैन्य समुदाय में नाराजगी फैल रही है। यह चित्र न केवल भारतीय सेना की वीरता का प्रतीक था, बल्कि भारत की एकता और सामरिक ताकत का भी प्रतीक था। जो लोग इस चित्र को हटाने के पीछे हैं, उन्हें यह समझना चाहिए कि यह सिर्फ एक चित्र नहीं, बल्कि भारतीय सेना की संकल्प और शौर्य का प्रतीक है।